हलाकू : जब प्राण ने कटाई अपनी मूंछ…


मीना कुमारी जो फिल्म की नायिका थीं को जब निर्देशक से यह पता चला कि हलाकू की भूमिका प्राण कर रहे हैं तो थोड़ी निराश हुईं। लेकिन सेट पर आते ही जब उन्होंने प्राण का मेकअप और गेट अप देखा तो उसकी तारीफ किए बिना ना रह सकीं।


अजय कुमार शर्मा
मनोरंजन Updated On :

प्राण ने अपने अधिकतर साक्षात्कारों में अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप मे ‘हलाकू’ का उल्लेख करते थे और अन्य पसंदीदा फिल्मों में ‘मधुमति’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘शहीद’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘उपकार’, ‘विक्टोरिया नंबर 203’ और ‘जंजीर’ का नाम लेते थे।

डीडी कश्यप द्वारा निर्मित निर्देशित फिल्म ‘हलाकू’ 1956 में रिलीज हुई थी। प्राण इसमें मुख्य भूमिका यानी हलाकू के रूप में थे और मीना कुमारी, अजीत, बीना, शम्मी आदि अन्य कलाकार थे। प्राण की नजर में फिल्म की कई खासियतें थीं जैसे यह पहली फिल्म थी जिसका टाइटल खलनायक के नाम पर रखा गया था, यह एक ऐतिहासिक कास्टयूम ड्रामा फ़िल्म थी और सबसे खास बात थी फिल्म में प्राण का अनोखा मेकअप विशिष्ट पोशाकें यानी गेट अप और जोरदार संवाद।

हलाकू मंगोल और तातार जनजातियों के खूंखार नायक चंगेज खान का पोता था। मीना कुमारी जो फिल्म की नायिका थीं को जब निर्देशक से यह पता चला कि हलाकू की भूमिका प्राण कर रहे हैं तो थोड़ी निराश हुईं। लेकिन सेट पर आते ही जब उन्होंने प्राण का मेकअप और गेट अप देखा तो उसकी तारीफ किए बिना ना रह सकीं। इस फिल्म के यादगार संवाद आगा जानी कश्मीरी के थे जिन्हें प्राण ने रुक- रुक कर एक खास अंदाज में बोला था। इस किरदार को निभाने के लिए उन्होंने पहली बार अपनी प्रिय मूंछों का भी त्याग किया था।

कहानी के अनुसार युद्ध के समय पकड़ी गई मीना कुमारी को जब दासी के रूप में हलाकू के सामने लाया गया तो वह उसके सौंदर्य पर आसक्त हो उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है लेकिन वह अजीत को प्यार करती है। ऐसे में हलाकू की पत्नी की भूमिका कर रही बीना और उनकी नौकरानी मीना कुमारी को उनके आशिक से मिलाने की कोशिश करती है और अंत में कामयाब होती हैं।

उस समय की सबसे लोकप्रिय फिल्म पत्रिका फिल्मफेयर ने ‘हलाकू’ की समीक्षा करते हुए लिखा था-कई सितारों के बीच हलाकू की शीर्ष भूमिका में प्राण का ही जलवा रहा।

चलते-चलते

60 साल के अपने लंबे और सक्रिय फिल्मी जीवन में प्राण का कभी किसी से कोई विवाद नहीं हुआ… हां एक विवाद उनसे जुड़ा लेकिन इसकी पृष्ठभूमि खुद उन्होंने किसी और को उचित सम्मान दिलाने के लिए तैयार की थी। उस समय सबसे बड़ा और लोकप्रिय फिल्म पुरस्कार फिल्मफेयर पुरस्कार होता था जिसे पाने की तमन्ना सभी रखते थे।

सन् 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘बेईमान’ जिसमें प्राण ने ईमानदार कांस्टेबल की भूमिका निभाई थी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार देने की घोषणा की गई। पुरस्कार समारोह 21 अप्रैल 1973 को संपन्न होना था किंतु प्राण ने पुरस्कार के कर्ताधर्ता और फिल्मफेयर के संपादक बीके करंजिया को एक पत्र (19 अप्रैल 1973) लिखकर इसे लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि इस वर्ष संगीतकार का पुरस्कार जो उनकी ही फिल्म ‘बेईमान’ के लिए शंकर जयकिशन को दिया जा रहा था उन्हें ना देकर ‘पाकीजा’ फिल्म के संगीतकार स्वर्गीय गुलाम मोहम्मद को दिया जाना चाहिए। उनके इस साहसिक कदम से फिल्म इंडस्ट्री में खलबली मच गई और लोग दो खेमों में बंट गए।

फिल्मफेयर ने इस पर जब यह तर्क दिया कि पुरस्कार उनके स्वर्गीय होने के कारण नहीं दिया गया तब प्राण ने कहा कि अगर ऐसा था तो यह सब को सूचित किया जाता… उन्होंने विगत में स्वर्गीय लोगों को दिए पुरस्कारों के बारे में भी बताया… खैर प्राण पुरस्कार समारोह में नहीं गए लेकिन उनके पुरस्कार की घोषणा के समय पूर्व में लिखे उनके पत्र का कोई जिक्र नहीं किया गया…

इस विवाद के चलते अगले 25 वर्षों तक कोई भी फिल्मफेयर अवार्ड उन्हें नहीं दिया गया… हां वर्ष 1997 में फिल्मफेयर ने उन्हें विशेष वरिष्ठ पुरस्कार से सम्मानित कर इस विवाद से मनों मुक्ति पाई।