कैसे मिली थी मेहबूब खान की मदर इंडिया सुनील दत्त को


विभाजन के बाद कई कलाकार पाकिस्तान से हिंदुस्तान पलायन कर गए थे। प्रतिभा के धनी इन लोगों की भीड़ में एक नाम बलराज दत्त का भी था। बलराज दत्त ने जब हिंदी फिल्मों मे काम करना शुरु किया तब उनकी पहली फिल्म रेलवे प्लेटफार्म के निर्देशक रमेश सहगल ने उनको सलाह सलाह दी की बलराज साहनी फिल्म जगत में एक जाना माना नाम है इसलिए अगर वो अपना नाम बदल ले तो अच्छा रहेगा। और इसके बाद बलराज दत्त सुनील दत्त के रूप में तब्दील हुये।


नागरिक न्यूज admin
मनोरंजन Updated On :

हिंदी सिने प्रेमियों को एंग्री यंग मैन का किरदार सबसे पहले फिल्म ज़ंजीर में अमिताभ बच्चन के किरदार विजय में देखने को मिला था। लेकिन ऐसे कई और भी लोग है जो इस विचार से अपनी सहमति नहीं रखते है। उनके हिसाब से मेहबूब खान खान ने अपनी फिल्म मदर इंडिया में बिरजू के किरदार से इसकी नींव १९५७ में ही रख दी थी। 

भले ही सुनील दत्त की डेब्यू फिल्म रेलवे प्लेटफार्म और मदर इंडिया के बीच तीन फिल्मों का फासला था लेकिन मेहबूब खान ने सुनील दत्त को अपनी शाहकार फिल्म मदर इंडिया, रेलवे प्लेटफार्म के रिलीज़ के तुरंत बाद उनको ऑफर कर दी थी। सुनील दत्त उस दौरान रेडियो सीलोन के लिए के उद्धघोषक का काम किया करते थे और फिल्म जगत के लोगो के साथ उनकी पहचान बननी शुरु हो गई थी। तभी एक दिन अभिनेता मुकरी ने उनको मेहबूब स्टूडियो चलने का न्योता दिया। एक फिल्म में काम करने के बाद उनकी रूचि फिल्मो में बढ़ गयी थी लिहाजा मुकरी के इस ऑफर को उन्होंने तुरंत हाँ कह दिया। मेहबूब स्टूडियो में उन्ही दिनों मदर इंडिया की कास्टिंग चल रही थी। सुनील दत्त ने यही सोचा की जब वो वही पर है तो फिल्म के लिए ऑडिशन देने में कोई हर्ज़ नहीं है। सुनील दत्त जब रोल के लिये लोगो से मिलने गये तब उनको वहा पर रुकने के लिए कहा गया।

स्टूडियो मे काम कर रहे दोस्तों की मदद से उनको फिल्म की कहानी का सार पता चल गया। विभाजन के बाद दत्त परिवार को सरकार ने खेती के लिए ज़मीन दी थी और इस वजह से उनको लगा की बिरजू के रोल के साथ वो न्याय कर सकते है। स्टूडियो में घूमते वक़्त और दोस्तों से बातचीत के दौरान उनको ये भी पता चला की स्टूडियो की आर्थिक स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं है और इसके बाद उन्होंने तय किया की अगर उनको फिल्म में काम करने का मौका मिला तो वो मुफ्त में भी काम करने को तैयार रहेंगे। 

जब सुनील दत्त को फिल्म मिल गयी तब शूटिंग के दौरान उनको मेहबूब खान की शख्शियत के बारे में पता चला। जिस तरह का माहौल उन्होंने फिल्म के सेट पर बनाया था उनको देखकर उनको यही लगा की वो किसी बड़े परिवार के मुखिया जैसे है जो अपने हर परिवार के सदस्य का ध्यान रखता है। सेट पर सुनील दत्त मेहबूब खान को साहब कह कर सम्बोधित करते थे जबकी बाकी लोग उनको बाबा बुलाते थे।

मदर इंडिया आगे चल कर सुनील दत्त के फ़िल्मी करियर में एक मील का पत्थर साबित हुई। प्रोफेशनल फ्रंट पर ये फिल्म ऑस्कर के मंच पर गयी जबकि पर्सनल लेवल पर इसी फिल्म के सेट पर उनको नरगिस के रूप में उनको अपनी जीवन संगिनी मिली। 

फिल्म के आग वाले सीन की शूटिंग के बारे में लेखिका गायत्री चटर्जी की किताब मदर इंडिया में सुनील दत्त ने उन पलो को याद किया है। शूटिंग के कुछ दिनों पहले जो लड़की नरगिस के लिए डबल का काम कर रही थी वो एक दुर्घटना में घायल हो गयी थी. वो लड़की उसी गांव की थी जहां पर फिल्म की शूटिंग चल रही थी (फिल्म की शूटिंग गुजरात मे बिल्लीमोरा के दूरदराज इलाकों में हुई थी)। इस घटना के बाद नरगिस यही चाहती थी की किसी और लड़की की जान को कोई जोखिम ना हो लिहाजा उन्होंने तय किया की की वो आग वाले सीन के लिए किसी डबल की सहायता नहीं लेंगी और खुद ही वो उस सीन में शिरकत करेंगी।

१ मार्च १९५७ को शूटिंग के दौरान तेज़ हवा की वजह से नियंत्रित आग बेकाबू हो गयी जिस वजह से आग की तेज़ लपटों ने नरगिस को घेर लिया था। सुनील दत्त बिना कुछ सोचे समझे एक कम्बल लेकर आग में कूद पड़े और नरगिस को सही सलामत आग की लपटों से बाहर निकाला। जब फिल्म पूरी हो गयी तब सुनील दत्त और नरगिस ने विवाह करने का निश्चय किया। जब ये खबर मेहबूब खान को पता चली तब कुछ समय के लिये वो थोड़े परेशान हो गए। उनका यही मानना था की फिल्म में दोनों माँ-बेटे के रोल में है और शादी के बाद जब लोग मदर इंडिया को देखेंगे तब मुमकिन है की वो किरदारों के साथ खुद को रिलेट ना कर पायें। 

लेकिन मेहबूब खान की यह शंका निराधार साबित हुई। मदर इंडिया ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़े और आगे चल कर ये हिन्दू-मुस्लिम शादी धर्म निरपेक्ष फिल्म इंडस्ट्री में मिसाल बनी।