जब हृषीकेश मुखर्जी, बिमल रॉय और ऋत्विक घटक ने पैराडाइस कैफ़े में मृणाल सेन को अकेले छोड़ दिया था

बांग्ला फिल्मों में अगर सत्यजीत रे के बाद किसी निर्देशक को लोग अच्छी तरह से पहचानते है तो वो निसंदेह रूप से मृणाल सेन है। बर्लिन और कांन्स फिल्म फेस्टिवल में अपनी फिल्मों से धूम मचाने वाले मृणाल सेन के खाते में सात नेशनल फिल्म अवार्ड दर्ज है। भुवन शोम, एक दिन प्रतिदिन, खंडहर, पदातिक,अकलेर संधाने जैसे सधी हुई फिल्में बनाने वाले मृणाल सेन भारतीय फिल्मों के एक मजबूत स्तम्भ है जिनके योगदान को फिल्म की दुनिया हमेशा याद रखेगी।

सन् 1923 में बंगाल के फरीदपुर (अब बांग्ला देश) में जन्मे मृणाल सेन का सानिध्य बचपन से ही बड़े लोगों के साथ था। जब उन्होंने मोटर गाडी में अपनी माँ के साथ बचपन में पहली सवारी की थी तब उनकी माँ के बगल में बिपिन चंद्र पॉल बैठे थे। बचपन में जब उनको एक बार दांत के दर्द की शिकायत हुई थी तब उनकी परेशानी दूर की थी सुभाष चंद्र बोस ने। जब आज़ादी की लड़ाई की गूँज परवान चढ़ने लगी थी तब दुनिया के तौर तरीको से वो वाफिक होने लगे थे और अपने मित्र मंडली की वजह से वो भी बंगाल मे तब आग की तरह फैली कम्युनिस्ट विचारधारा के करीब आये और आगे चल कर उसको अपनाया।

कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में जब उन्होंने दाखिला लिया तब उन्हें पता चला की जीवन क्या होता है क्योंकि उसके पहले बड़े ही नाज़ो मे उनका समय घर पर बीता था। लेकिन जल्द ही उन्होंने खुद को संभाल लिया और जब उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के युथ विंग एसएफआई की सदस्यता ली तब उनको अपने भविष्य की झलक मिलनें लगी। इप्टा की स्थापना तब तक हो चुकी थी और कलकत्ता में इससे जुड़े लोगो के साथ मृणाल का उठना बैठना शुरू हो गया था। 

जब बात नौकरी की आयी तब उन्होंने पत्रकार बनने की सोची और इस बाबत आनंद बाजार पत्रिका को ज्वाइन भी किया लेकिन प्रूफ रीडिंग से आगे वो कुछ ज्यादा नहीं कर पाए। किताबों के बेहद शौक़ीन मृणाल सेन ने जब एक दिन लाइब्रेरी में रुडोल्फ अर्न्हेइम की किताब ‘फिल्म’ पढ़ी तब उनको एक तरह से झटका लगा।
युवा मृणाल फिल्म मीडियम के बारे में जानने को इतने आतुर हुए की उन्होंने एक के बाद एक फिल्मों के उपर लिखी गई कई किताबें पढ़ डाली। 1947 में कलकत्ता की फिल्म सोसाइटी की स्थापना हो चुकी थी और सत्यजीत रे, बंसी चंद्रगुप्त, चिदानंद दासगुप्ता उसके सदस्य थे। बंसी (आगे चल कर बंसी ने रे की कई फिल्मों को शूट किया था) से दोस्ती होने की वजह से उनको वहा पर फिल्मों को देखने की इजाजत मिल गयी। फिल्मों की चाहत परवान चढ़ने लगी और वो आगे चलकर फिल्मों के बारे में लिखने लगे। शायद कम लोग को ये बात पता होगी की जब 1950 में मृणाल सेन ने चार्ली चैपलिन के ऊपर एक किताब लिखी थी तब उसका कवर डिज़ाइन सत्यजीत रे ने बनाया था। 

पैसे की तंगी की वजह से उनको हावड़ा में प्राइमरी स्कूल टीचर की नौकरी को हाँ कहना पड़ा था लेकिन घर से दूरी और फिल्मों में रुचि की वजह से उन्होंने उस नौकरी को बाद मे ज्वाईन करने के पहले ही मना कर दिया। उसी दौरान 1947 में कालीघाट ट्राम सेंटर के पास एक चाय के अड्डा – पैराडाइस कैफ़े में उनका उठना बैठना शुरू हुआ। पैराडाइस कैफ़े नए फिल्म मेकर्स का उन दिनों अड्डा हुआ करता था जिसमे सबसे प्रमुख नाम था ऋत्विक घटक का। नए निर्देशकों की ये जमात बेरोज़गार थी और हालात के मारे हुए थे। सभी के पास अपनी अपनी फिल्मों का प्रपोजल उनकी जेब में हुआ करता था और तलाश फाइनेंसर की हुआ करती थी। जो लोग अड्डे पर आते थे उनमे हृषिकेश मुखर्जी, बिमल राॅय, सलिल चौधरी और तापस सेन जैसे नाम शामिल थे। जब हृषिकेश मुखर्जी को बतौर एडिटर के फिल्म प्रोडक्शन कंपनी में काम मिला तब ये उनकी जिम्मेदारी थी की बाकी सभी के चाय बिस्कुट का खर्चा वही वहन करेंगे। 

नए क्रन्तिकारी सोच रखने वाले लोग की संगत में रह कर मृणाल को भी फिल्म बनाने का चस्का लग गया। पैराडाइस कैफ़े के ऐतिहासिक माहौल ने मृणाल सेन की सोच को एक नयी दिशा दी. आगे चल कर उस कैफ़े से जुड़े लोगों ने देश और विदेशो में अपने टैलेंट का नज़ारा पेश किया। ये कैफ़े घटक के दिल के इतने करीब था की आगे चल कर जब ये बंद हो गया तब उन्होंने अपनी पहली फिल्म नागरिक में एक सीन वहां पर फिल्मा कर एक तरह से अपनी श्रद्धांजलि दी थी। 

लेकिन पैराडाइस कैफ़े और उससे जुड़े लोग भला हमेशा के लिया वहां कहा रहने वाले थे। सबसे पहले कूच किया बिमल रॉय ने, फिर बारी आयी हृषीकेश मुखर्जी की जो बिमल रॉय के पीछे बम्बई हो लिए उनकी फिल्मों को एडिट करने के लिए। आगे चल कर सलिल चौधरी ने भी बम्बई को अपनी कर्म भूमि बना ली। लेकिन मृणाल सेन को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब ऋत्विक घटक ने फिल्मिस्तान स्टूडियो के स्टोरी डिपार्टमेंट में नौकरी ले ली। मृणाल सेन तब तक अकेले हो चुके थे। उनका संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ था। पहली फिल्म रात भोरे के पहले उनको मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की नौकरी की खाई लांघनी थी।  

First Published on: May 13, 2020 11:06 AM
Exit mobile version