अगर अमोल पालेकर ने हिंदी फिल्मों में आम आदमी का प्रतिनिधित्व किया तो अमोल के नायब रंजीत चौधरी थे…


मुमिकन है कि आज की पीढ़ी के कलाकार और लोग रंजीत चौधरी नाम सुनकर चौक जाये और शायद ये भी कह दे कि ये कलाकार आखिर है कौन। लेकिन अगर बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी आम आदमी के व्यक्तितव को पर्दे पर चित्रित करने में सफल रहे थे तो उसमें थोड़ा बहुत हाथ रंजीत चौधरी की अदाकारी को भी जाता है।



अभिषेक श्रीवास्तव

अगर अभिनेता रंजीत चौधरी के बारे में ये कहे कि अभिनय की बारीकियां उन्होंने अपनी मां से सीखी तो ये कहीं से भी गलत नहीं होगा। लेकिन उनकी इस सीख में पुणे के मशहूर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट का भी बेहद महत्वपूर्ण हाथ है। भले ही रंजीत वहां के आफिशियल छात्र ना रहे हो लेकिन कालेज के दौरान उनका एक लंबा वक्त एफटीआईआई के गलियारों में बीता था। और इसके पीछे की वजह थी उनके दोस्त जो वहां पर छात्र थे और उनके साथ एफटीआईआई कैंपस में किये गये उनके साथ क्रियेटिव कोलाबोरेशन। अभिनेता रंजीत चौधरी को लोग प्यार से छोटू कह कर बुलाते थे। मुमकिन है कि उनके इस पेट नाम के पीछे उनकी कद काया रहा हो। लेकिन रंजीत चौधरी का कद भले ही छोटा रहा हो, लेकिन रुपहले पर्दे पर उनकी अदाकारी इसके बिल्कुल उलट थी। मुमिकन है कि आज की पीढ़ी के कलाकार और लोग रंजीत चौधरी नाम सुनकर चौक जाये और शायद ये भी कह दे कि ये कलाकार आखिर है कौन ? लेकिन अगर बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी आम आदमी के व्यक्तितव को पर्दे पर चित्रित करने में सफल रहे थे तो उसमे थोड़ा बहुत हाथ रंजीत चौधरी की अदाकारी को भी जाता है। उजड़े बिखरे बाल, छोटी कद काया औरअलसाई बाडी लैंग्वेज,जी हां ! हिंदी फिल्मों में रंजीत की यही पहचान थी जिसके मुरीद बासु दा और ऋषि दा सरीखे निर्देशक भी थे।   

रंजीत की पहचान उनके परिवार से भी है। उनकी मां पर्ल पद्मसी मुंबई थियेटर सर्किट की एक जानी- मानी हस्ती थी जिनके खाते में कुछ उम्दा फिल्में भी शामिल है। रंजीत के बायोलाजिकल पिता के बारे में किसी को ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन उनके सौतेले पिता एलक पद्मसी थे और वो भी एडवरटाइंजिंग और थियेटर की दुनिया की जानी मानी हस्ती थे। अपनी पत्नी और 16 साल के बच्चे के साथ न्यूयार्क मे रहने वाले रंजीत अपने दांतों के उपचार के लिये दिसम्बर मे मुंबई आये थे। 8 अप्रैल को उनकी अमेरिका के लिये रवानगी थी लेकिन लॉकडाउन की वजह से वो जा नहीं पाये। 14अप्रैल को जब उनकी अंतड़ियों में अल्सर फूटा जो जानलेवा साबित हुआ। ब्रींच कैंडी अस्पताल के डॉक्टर अपनी पूरी कोशिश के बावजूद रंजीत को नहीं बचा पाये। 

हिंदी फिल्मों में रंजीत चौधरी की शुरुआत फिल्म ‘खट्टा मीठा’ से हुई थी जिसमें वो अशोक कुमार के पारसी परिवार के एक सदस्य थे। कारवां आगे बढ़ा फिल्म ‘बातों बातों’ में जिसमें वो टीना मुनीम के भाई बने और अपने वायलिन की तान फिल्म उठे सबके कदम देखो रमपमपम में छेड़ा। उनकी तीसरी फिल्म थी ऋषिकेश मुखर्जी की ‘खुबसूरत’ जिसमें वो अभिनेता राकेश रोशन के भाई के रोल में नजर आये। कहने की जरुरत नहीं की आम आदमी के एक किरदार को बड़े ही सजीव ढंग से रंजीत ने पर्दे पर जिया। उनके साउथ बांबे का बैकग्राउंड उनके किसी भी किरदार के बीच में रुकावट नहीं बना। रंगमंच की पृष्ठभूमि होने की वजह से फिल्में उनकी पहली पंसद कभी नहीं बनी और शायद यही वजह थी की जब तक वो हिंदु्स्तान मे रहे बेहद ही गिनी चुनी फिल्मों में काम किया। मुंबई में उनकी आखिरी फिल्म स्मिता पाटिल स्टारर चक्र थी और इसके बाद उन्होंने दस साल का एक लंबा ब्रेक लिया। ब्रेक के तुंरत बाद वो अमेरिका कूच कर गये। हिंदी फिल्मों की दुनिया उन्हें रास नहीं आई थी लिहाजा अपनी किस्मत आजमाने के लिये वो अमेरिका चले गये। 

अमेरिका में जाकर भी उन्होंने लो प्रोफाइल रखते हुये फिल्म और टेलीविजन में कुछ शानदार काम को अंजाम दिया। हिंदी फिल्मों के तीन बड़े अनिवासी भारतीय नाम – दीपा मेहता, मीरा नायर और शेखर कपूर जो बाहर रहकर अपनी फिल्मों को अंजाम देते हैं – के साथ काम करना शुरु किया। सैम एंड मी, फायर, बॉलीवुड हॉलीवुड, मिसीसिप्पी मसाला, द पेरेज फैमिली, कामसूत्र और बैंडिट क्वीन कुछ ऐसी फिल्में थी जिसके लिये शेखर, दीपा और मीरा ने रंजीत को याद किया। 

दीपा मेहता, रंजीत की कुछ इस कदर दीवानी हुई की अपनी पहली फिल्म को लिखने का दारोमदार रंजीत के कंधों पर सौपा। दोनों की दोस्ती कुछ इस कदर गाढ़ी हुई कि उसके बाद फिल्म कैमिला के लिये भी मीरा ने रंजीत को याद किया। फिल्म फायर में वो परिवार के नौकर मुंडु की भूमिका में नजर आये। दीपा अपनी फिल्म अर्थ 1947 के लिये भी रंजीत के लिये फिल्म में काम निकाल लिया थे लेकिन एन वक्त पर उनको लगा की उनकी बोलचाल की हिंदी कमजोर है। दीपा और रंजीत की दोस्ती फिल्म सैम एंड मी की शूटिंग के दौरान ही हो गई थी। फिल्म की शूटिंग दीपा के लिये एक दुखद अनुभव था लेकिन रंजीत ने उस दुखद घड़ी में दीपा मेहता का पूरा साथ दिया था। वाक्या कुछ ऐसा है कि दीपा अपनी टीम के साथ फिल्म की शूटिंग के लिये कनाडा पहुंच गई थी (जिसमे रंजीत और ओम पुरी मुख्य भूमिका में थे)। शूटिंग के ऐन वक्त पहले उनको पता चला कि कनाडियन नागरिकता ना होने से कनाडा सरकार से उनको फिल्म बनाने का ग्रांट नहीं मिल पायेगा। जब दीपा मेहता के सामने और कोई रास्ता नजर नहीं आया तब रंजीत ने उनकी पहचान ब्रिटेन के चैनल फोर और आईटीसी डिस्ट्रीब्यूशन के अधिकारियों से करवाई और उसके बाद ही फिल्म बनाने का रास्ता साफ हो सका। रंजीत के शानदार अभिनय और लिखावट का फल भी दीपा को मिला जहां 1991 के कांस फिल्म समारोह में कैमरा डी आर कटेगरी के लिये दीपा की फिल्म सैम एंड मी को हानरेबल मेंशन मिला। जब लंदन फिल्म फेस्टिवल में सैम एंड मी की स्क्रिनिंग हुई तो उस वक्त स्टार वार्स के जनक जार्ज लुकस भी मौजूद थे। दीपा के शानदार निर्देशन का फल उनको तुरंत मिला जब लुकस ने यंग इंडियाना जोन्स क्रानिकल टीवी सीरिज के निर्देशन की जिम्मेदारी दीपा को सौप दी। दीपा की इस सफलता में रंजीत का भी बड़ा हाथ था। 

मीरा नायर की मुलाकात रंजीत से पहली बार आईआईटी कानपुर में हुई थी जब वो दोनों इंटर कॉलेजियेट कंपटीशन में शिरकत कर रहे थे। इत्तेफाक की बात थी कि दोनों एक ही प्ले में साथ काम कर रहे थे लेकिन रंजीत के सटीक अभिनय ने मीरा को रंजीत का फैन बना दिया। जब मीरा नायर अपनी पहली फिल्म सलाम बांबे की कास्टिंग कर रही थी तब चिलम के किरदार के लिये उनके जहन में सबसे पहले रंजीत का ही नाम आया था लेकिन कुछ कारणवश उस रोल को आगे चलकर रघुवीर यादव ने किया। ‘सलाम बांबे’ के बाद मीरा ने अपनी लगातार तीन निर्देशित फिल्मों में उनको साईन किया। मिसीसिप्पी मसाला, द पेरेज फैमिली और कामसूत्र मे रंजीत ने अपने शानदार अभिनय का हुनर दिखाया। 

अमेरिका और कनाडा में अपने नये बेस की वजह से उनको और कई टीवी शो और फिल्मों मे काम करने का मौका मिला। रिचर्ड गेयर के साथ आटम इन न्यूयार्क, लिव श्राईबर के साथ हिस एंड हर, निकोलस केज के साथ ‘इट कुड हैपन टु यू’ और ‘डेंजल वाशिंगटन’ के साथ फिल्म मिसीसिप्पी मसाला में काम कर के रंजीत ने अपने अभिनय कौशल का दमखम दुनिया को दिखाया। टीवी पर भी उन्होंने अपने अभिनय की छटा बिखेरी। मशहूर अमेरिकी सीरीज द आफिस में उन्होंने टीवी दुनिया के कुछ दिग्गजों के साथ काम किया और इसमें स्टीव कैरेल, जान क्राजिंस्की और रिकी जरवेस जैसे नाम शामिल थे। विक्रम की भूमिका में उन्होंने लोगो को मजबूर किया की उनका नाम वो गूगल करे। द आफिस मे रंजीत एक टेली मार्केटेर के रुप में नजर आये थे। इसके अलावा उन्होंने प्रिजन ब्रेक और एचबीओ की सीरीज गर्ल्स में भी अपना हुनर दिखाया। 

रंजीत चौधरी को हम आम कलाकारो की श्रेणी में नहीं रख सकते है। रंजीत उन गिने चुने कलाकारो की श्रेणी में आते हैं जिन्होंने फिल्मों के काम अपनी शर्त पर किया और मीडिया की चकाचौध से कोसो दूर रहे। मुमकिन है कि नये जमाने के कलाकार उनकी प्रतिभा का सही तरीके से आंकलन नहीं कर पायेंगे लेकिन एक बात तो तय है कि दुनिया कूच करने से पहले रंजीत चौधरी ने उनको सीखाने के लिये काफी कुछ सौगात जरूर छोड़ दिया है।