इश्क़ ऐसा कि साहिर के जूठे प्याले भी नहीं धोती थीं अमृता प्रीतम… !

अमृता-साहिर के बीच प्यार का ये सिलसिला उस वक्त टूट गया था, जब साहिर, 1960 में गायिका सुधा मल्होत्रा पर फिदा हो गए थे। इस दरम्यान, चित्रकार इमरोज यानि इंदरजीत सिंह अमृता के दोस्त बने और आजीवन उनके साथ रहे। इन दोनों का साथ लगभग 40 साल का रहा।

नई दिल्ली। फरवरी को प्यार का मौसम कहा जाता है। ये बात और है कि प्यार का इजहार करने के लिए किसी मौसम की दरकार नहीं होती लेकिन फरवरी आते ही युवा दिलों की धड़कनें तेज़ हो जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस महीने में एक प्रेमी अपने प्यार का इज़हार अपने हमदम से करता है, और इस इज़हार-ए-इश्क़ में कुछ लोगों को कामयाबी, तो कुछ को नाकामी हासिल होती है। कुछ ऐसे ही अनकहे प्यार के किस्से है जो मुकम्मल न होकर अफ़साना ही रह गए। ऐसा ही किस्सा है साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम का।

8 मार्च 1921 लुधियाना के एक जागीरदार घराने में जन्मे अब्दुल हयी साहिर बाद में साहिर लुधियानवी के नाम से मशहूर हुए। आज भी लोग उन्हें असली नहीं बल्कि इसी नाम से जानते हैं। साहिर लुधियानवी की गज़लों में वो कशिश है कि यदि मजनूं से लैला नहीं छिनती। यदि इश्क़ की बात आती है तो शीरीं-फरहाद, हीर-रांझा, लैला-मजनूं या रोमियो-जूलियट के नाम खुद ब खुद जेहन में उतर जाते हैं। इनका इश्क़ कभी मंजिल नहीं पा सका।

“चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों, न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूं दिलनवाज़ी की न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से, न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों में न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से, चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों” ! ये गज़ल है साहिर लुधियानवी की, जिनका अमृता प्रीतम से प्यार कभी मुकम्मल नहीं हो पाया।

ये उन दिनों की बात है जब पहली बार अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी की मुलाकात दिल्ली में एक कार्यक्रम में हुई थीं। कहा जाता है कि अमृता जितनी सुंदर कविता और उपन्यास लिखती थीं, वे खुद भी उतनी ही खूबसूरत और दिलकश थीं। हालांकि अमृता प्रीतम पहले से शादीशुदा थी, बचपन में ही उनकी शादी प्रीतम सिंह से तय हो गई थी। साहिर लुधियानवी से नजर मिलने के आने के बाद उनके जीवन में बहार आ गई लेकिन वे कभी एक नहीं हो पाए।

अमृता और साहिर जब भी एक दूसरे से मिलते तो बिना कुछ कहे आंखों ही आंखों में अपनी भावना व्यक्त कर देते थे। इस दौरान साहिर लगातार सिगरेट पीते रहते थे। उनके सिगरेट को लेकर किस्सा है कि साहिर आधी सिगरेट पीने के बाद उसे बुझाकर दूसरी जला लेते। अमृता सिगरेट के बचे टुकड़ों को संभालकर रखती थी और आधी जली सिगरेट को फिर से सुलगा लेती। उन्हें ऐसा लगता था कि साहिर के हाथों को छू रही हैं और फिर अमृता को भी सिगरेट पीने की लत लग गई।

अमृता, साहिर से इस कदर इश्क़ करती थीं कि जब साहिर कभी अमृता से मिलाने उनके घर जाते थे तो वहां चाय पीते थे। दिलचस्प बात ये है कि अमृता कभी भी साहिर के जूठे प्याले भी नहीं धोती थीं। वैसे तो अमृता प्रीतम का जन्म पंजाब में हुआ था लेकिन शिक्षा उनकी लाहौर (अब पकिस्तान) में हुई थी।

साहिर और अमृता-साहिर के बीच प्यार का ये सिलसिला उस वक्त टूट गया था, जब साहिर, 1960 में गायिका सुधा मल्होत्रा पर फिदा हो गए थे। इस दरम्यान, चित्रकार इमरोज यानि इंदरजीत सिंह अमृता के दोस्त बने और आजीवन उनके साथ रहे। इन दोनों का साथ लगभग 40 साल का रहा। हालांकि इमरोज को ये पता था कि अमृता के मन में साहिर बसते थे, फिर भी उन्होंने अपना प्रेम अभूतपूर्व तरीके से निभाया।

First Published on: February 7, 2021 12:13 PM
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