मृणाल सेन की फिल्म मृगया में घिनुआ सोरेन की भूमिका ने मिथुन को अपनी पहली ही फिल्म में बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड दिलवा दिया था। एक आदिवासी जो अपने शोषण करने वालो के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजता है की भूमिका में मिथुन ने पूरी जान डाल दी थी। एक बेहड़ ही जटिल किरदार को मिथुन ने अपने हुनर से काफी आसान बना दिया था।
मृणाल सेन को अपनी फिल्म का किरदार कैसे मिला इसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है। फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने के बाद मृणाल सेन अपने किरदार की तलाश में थे और कई लोगो से मिलने के बाद भी उनको अपने फिल्म का किरदार मिल नहीं पा रहा था। ये वही दौर था जब मृणाल सेन पुणे के फिल्म इंस्टिट्यूट मे अक्सर सेमिनार कोर्सेज लेने के लिए जाया करते थे। जब 1974 का दीक्षांत समारोह चल रहा था (ये वही साल था जब मिथुन ने अपना एक्टिंग कोर्स पूरा किया था) तब मृणाल सेन समारोह के दौरान नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा के डायरेक्टर इब्राहिम अल्काजी और फिल्म निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी के साथ बैठे हुए थे। सभी विद्यार्थियों को एक के बाद एक बुलाया जा रहा था और उनका डिप्लोमा उनके हवाले किया जा रहा था।
समारोह के ही दौरान हॉल के कोने में मृणाल सेन ने कुछ लड़को को एक साथ बैठे देखा जो आपस में बेहद ही धीमे स्वर में बात कर रहे थे। उन्ही लड़को में से एक थे मिथुन चक्रवर्ती। मिथुन की मुस्कुराहट का अंदाज़, उनकी कद काठी और लड़कियों से शरारत करने का अंदाज़ उनको भा गया। दुनिया से बेखबर मिथुन ने एक बेहद ही महत्वपूर्ण समारोह के दौरान के बीच मे अपनी मित्र मण्डली को अपनी चुलबुली शरारतो से मनोरंजित किये हुये थे। मृणाल सेन ने उनकी हरकतों पर बहुत देर तक अपनी नज़रें टिका कर रखी और अंत में यही सोचा की इतने बड़े लोग और इतने बड़े इवेंट के दौरान अगर ये लड़का इस तरह की हरकत करता है तो ये निश्चित तौर पर बेशर्म होगा।
कौतुहलवश मृणाल सेन ने आखिर में इब्राहिम अल्काजी से पूछ ही लिया की ये कौन है. इस सवाल के जवाब में अल्काजी ने उनको बताया की वो एक बंगाली विद्यार्थी है जो एक्टिंग की पढाई कर रहा है। ये सुनकर मृणाल सेन ने फ़ौरन जवाब दिया की क्या ये जरुरी है की मैं हर बंगाली को जानु। इसके बाद अल्काजी ने उनको बताया की ऐसा नहीं है और वो काफी कमाल का एक्टर है और उसका नाम मिथुन चक्रवर्ती है। अल्काजी की ओर से ऐसे शब्द किसी के लिए भी सर्टिफिकेट सरीखा हो सकता है।
कलकत्ता पहुंच कर जब मृणाल सेन ने मृगया के ऊपर फिर से काम करना शुरू किया तब वो अपने फिल्म का किरदार मिथुन के अंदर देखने लगे। लेकिन मिथुन के पास-आउट होने के बाद उनके पास कोई जरिया नहीं था जिसकी मदद से वो मिथुन तक पहुंच सके। तब उन्होंने मशहूर सिनेमाटोग्राफर केके महाजन से संपर्क साधा और मिथुन को ढूंढ़ने में उनकी मदद मांगी। उन्होंने केके महाजन को एक लम्बा टेलीग्राम सन्देश भेजा जिसमे यही लिखा हुआ था की आप कृपया मेरी मदद इस नौजवान से मिलाने में करें जो शायद एक बंगाली है और इसी साल इसको फिल्म इंस्टिट्यूट से डिप्लोमा मिला है. देखने में ये लम्बा और सांवला है और शायद इसका नाम ‘म’ से शुरू होता है. मिल जाए तो उसको बोलिये की वो फ़ौरन अपनी तसवीरें मुझे भेजे।
लेकिन केके महाजन मिथुन तक इसके पहले पहुंचे, मिथुन को इस बात की खबर पहले ही मिल गयी थी की महाजन उनको ढूंढ रहे रहे। बिना किसी देरी के मिथुन फिल्मिस्तान स्टूडियो फ़ौरन पहुंच गए जहा केके महाजन किसी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त थे। महाजन ने तब उनको सारी बातें विस्तार से बताई। लेकिन महाजन की बातें सुनकर मिथुन थोड़े परेशान हो गए क्युंकी इसका मतलब ये भी था की उनको अपने फोटो खींचवाने पर पैसे खर्च करने पड़ेगे और फिल्म इंस्टिट्यूट में लेक्चरर की नौकरी से वो पहले ही कुछ ज्यादा कमा नहीं पा रहे थे। लेकिन उनको ये भी पता था की ये उनके लिए एक सुनहरा मौका है जिसको वो अपने हाथ से कतई नहीं जाने देंगे। अपना फोटो शूट करवाने के बाद उन्होंने दादर पोस्ट ऑफिस से वो तसवीरें मृणाल सेन को भेज दी और उसके बाद पुणे चले गए।
मृणाल सेन को वो तसवीरें जल्द ही मिल गयी लेकिन उनके हेयर स्टाइल से उनको कुछ आपत्ति थी। इसी बीच मिथुन को दुलाल गुहा की फिल्म दो अनजाने, जिसमे अमिताभ बच्चन मुख भूमिका में थे, में एक छोटा रोल मिल गया। ये मिथुन की अच्छी किस्मत थी की दो अनजाने में उनके जो सीन्स अमिताभ बच्चन और ललिता पवार के साथ थे उनको लोगो ने बेहद पसंद किया। मिथुन ने अंत में कलकत्ता का रूख किया और वहा पर मीटिंग के कई दौर के बाद उन्होने अपनी पहली फिल्म के साइन कर ली। 500 रुपये का टोकन मिथुन के लिए काफी पैसे थे।