Nutan’s birth anniversary: एक सांवली लड़की कैसे बनी रुपहले पर्दे की बेहतरीन अभिनेत्री

हिंदी सिनेमा के उस दौर में जब अभिनेत्रियों के लिए गोरा रंग और गठीला बदन प्राथमिक शर्त होती थी तब एक दुबली-पतली और सांवले रंग की लड़की ने फिल्मी दुनिया में प्रवेश कर अपने अभिनय से सबको अचंभित कर दिया. आधे-अधूरे मन से फिल्मों में आयी इस लड़की ने बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों को पीछे कर दिया.

हिंदी सिनेमा के उस दौर में जब अभिनेत्रियों के लिए गोरा रंग और गठीला बदन प्राथमिक शर्त होती थी तब एक दुबली-पतली और सांवले रंग की लड़की ने फिल्मी दुनिया में प्रवेश कर अपने अभिनय से सबको अचंभित कर दिया. आधे-अधूरे मन से फिल्मों में आयी इस लड़की ने बड़ी-बड़ी अभिनेत्रियों को पीछे कर दिया. बॉलीबुड में उसने ऐसी धाक जमाई कि उसकी धमक औऱ चमक आज तक देखी औऱ सुनी जा सकती है.यह लड़की और कोई नहीं अभिनेत्री नूतन थीं. अपनी सादगी से हिंदी सिनेमा में अलग पहचान रखने वाली नूतन की आज 86वीं बर्थ एनिवर्सरी है. आज हम सुजाता, छलिया, बंदिनी जैसी बेहतरीन फिल्में देने वाली नूतन के जीवन और अभिनय के कुछ रोचक पहलुओं नजर डालते हैं.

बचपन में नूतन बहुत दुबली-पतली थीं, उनका वजन भी काफी कम हुआ करता था, रंग सांवला था लेकिन इन सबके साथ एक अच्छाई यह थी कि उनका कद ऊंचा था. उस दौर में फिल्मों में गठीले बदन की महिलाओं को लिया जाता था, जिससे दुबले पतले और सांवले लोगों को कुरूप समझा जाता था. फिल्मी दुनिया की इस हकीकत के कारण के कारण बचपन से ही नूतन खुद को दुनिया की सबसे बदसूरत लड़की समझने लगीं और लोगों से झिझकने लगी थीं. नूतन के लुक को देखकर खुद मां शोभना को लगता था कि उन्हें फिल्मों में हाथ नहीं आजमाना चाहिए.

नूतन का जन्म 4 जून 1936 में बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था. नूतन के पिता कुमारसेन समर्थ एक फिल्ममेकर तो मां शोभना समर्थ जानी-मानी अभिनेत्री थीं. वह चार बच्चों में सबसे बड़ी थीं और अभिनेत्री तनुजा की बहन थीं. उनके भाई जयदीप के जन्म से पहले ही उनके माता-पिता अलग हो गए थे. नूतन ने अपने करियर की शुरुआत 14 साल की उम्र में 1950 में फिल्म ‘हमारी बेटी’ से की थी, जिसका निर्देशन उनकी मां ने किया था. बहुत कम लोग जानते हैं कि वह 1952 में मिस इंडिया पेजेंट की विजेता भी थीं. अगले साल, उन्हें उच्च अध्ययन के लिए स्विट्जरलैंड भेजा गया क्योंकि उनकी फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थीं.

महज 8 साल की उम्र में नूतन ने मां के नक्शेकदम पर चलकर अभिनय करियर की शुरुआत की थी. 45 साल के एक्टिंग करियर में नूतन ने कई बेहतरीन फिल्में दीं और 9 बार बेस्ट एक्ट्रेस का खिताब जीता. राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर और संजीव कुमार जैसे कई बड़े अभिनेता भी इनकी खूबसूरती के कायल थे. ये उस दौर की पहली एक्ट्रेस थीं जिन्हें 40 साल की उम्र में भी लीड एक्ट्रेस का रोल मिलता था.

नूतन का करियर 45 वर्षों में फैला और वह पांच फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री जीतने वाली एकमात्र महिला अभिनेत्री थीं, जब तक कि उनकी बहन तनुजा मुखर्जी की बेटी काजोल ने 2011 में रिकॉर्ड नहीं तोड़ा. उनको चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री ले भी सम्मानित किया गया था.

नूतन ने ऐसी भूमिकाओं में अभिनय किया जिसने उन्हें एक अपरंपरागत अभिनेत्री के रूप में परिभाषित किया. नूतन अभिनेत्री स्मिता पाटिल और साधना की प्रेरणा रही हैं. फिल्म बंदिनी और सुजाता में उनके बेहतरीन अभिनय कौशल को देखा गया. ऐसी फिल्में जिन्होंने न केवल सर्वश्रेष्ठ अभिनय कौशल उदाहरण है बल्कि उनमें सामाजिक बुराइयों पर भी प्रहार है. दोनों फिल्मों का निर्देशन बिमल रॉय ने किया था.

1955 में ‘सीमा’ में नूतन की भूमिका ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पहला फिल्मफेयर पुरस्कार दिलाया. वह चार और फिल्मों – ‘सुजाता’ (1959), ‘बंदिनी’ (1963), ‘मिलन’ (1967) और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ (1978) के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार पाईं. उन्होंने 1970 के दशक के अंत तक प्रमुख भूमिकाएं निभाना जारी रखा. वह 42 साल की उम्र में ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में अपनी भूमिका के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीतने वाली सबसे उम्रदराज अभिनेत्री भी हैं.

बाद में अपने करियर में, उन्होंने ‘साजन की सहेली’ (1981), ‘मेरी जंग’ (1985) और ‘नाम’ (1986) जैसी फिल्मों में चरित्र भूमिकाएं निभाई, जो ज्यादातर एक मां की थीं. उन्होंने ‘मेरी जंग’ में अपनी भूमिका के लिए अपना आखिरी और छठा फिल्मफेयर पुरस्कार जीता, लेकिन इस बार ‘सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री’ के लिए.

नूतन की शादी 11 अक्टूबर, 1959 को लेफ्टिनेंट-कमांडर रजनीश बहल हुई. उनका इकलौता बेटा मोहनीश बहल एक फिल्म और टीवी अभिनेता है. दिलचस्प बात यह है कि उन्हें उनके पति ने फिल्म ‘बंदिनी’ में अभिनय करने के लिए राजी किया क्योंकि उन्होंने शादी के बाद अभिनय छोड़ दिया था. फिल्म बड़ी हिट साबित हुई और फिल्म में उनका चित्रण भारतीय सिनेमा के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक माना जाता है.

1991 में 54 वर्ष की आयु में स्तन कैंसर से नूतन की मृत्यु हो गई. उस समय, वह फिल्म ‘गराजना’ की शूटिंग कर रही थी, जो रिलीज नहीं हो सकी. उनकी मृत्यु के बाद उनकी फ़िल्में ‘नसीबवाला’ (1992) और ‘इंसानियत’ (1994) रिलीज़ हुईं. 1989 में जीवित रहते हुए उनकी फिल्म ‘कानून अपना अपना’ रिलीज होने वाली उनकी आखिरी फिल्म थी.

First Published on: June 4, 2022 10:15 PM
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