परदा है परदा : एक अभिशप्त फिल्म का किस्सा


फिल्म 75 प्रतिशत बन चुकी थी की तभी अचानक के. आसिफ साहब नही रहें और फिल्म फिर अधूरी रह गई … बहुत समय के बाद के. सी. बोकाडिया ने इस फिल्म को पूरा करने की कोशिश की तो संजीव कुमार दुनिया से कूच कर गए…


अजय कुमार शर्मा
मनोरंजन Updated On :

मुगले आज़म के बाद के. आसिफ साहब “ताजमहल” और “महाभारत” शीर्षक से फिल्में बनाना चाहते थे और इसकी घोषणा भी उन्होंने कर दी थी। मगर इन पर काम शुरू नहीं हो सका। इस बीच उन्होंने एक अन्य फिल्म लैला मजनू की कहानी पर बनाने का निर्णय लिया। वे इस फिल्म में लैला मजनू की प्रेम कहानी की बजाय मजनू के प्रेम को ईश्वरीय प्रेम के रूप में दिखाना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने फिल्म का नाम भी बदलकर “मोहब्बत और खुदा” तय किया। इसमें मजनू के अभिनय के लिए  गुरुदत्त का नाम तय हुआ। लैला के रूप में निम्मी का चयन किया गया तथा लैला के पति के रूप में प्राण को लिया गया। लैला के पिता का रोल जयंत और मजनू के पिता का रोल नसीर हुसैन करेंगे यह भी तय हुआ।

फिल्म की कहानी लिखने की ज़िम्मेदारी वजाहत मिर्जा और अमानुल्लाह पर छोड़ी गई। फिल्म में आठ गीत थे जिन्हें खुमार बाराबंकवी और असद भोपाली ने लिखा था और उस ज़माने के सभी मशहूर गायकों मोहम्मद रफी, तलत महमूद, हेमंत कुमार, मन्ना डे, आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर की आवाजों में यह गीत रिकॉर्ड किए गए थे। फिल्म का संगीत तैयार कर रहे थे नौशाद साहब।

गुरुदत्त उन दिनों अपने व्यक्तिगत जीवन में परेशानी के दौर से गुजर रहे थे। शराब बहुत पीने लगे थे। और एक रात उन्होंने शराब के साथ शायद नींद की गोलियां भी खा लीं और इस दुनिया से विदा हो गए। अब आसिफ साहब के सामने यह संकट था कि फिल्म का क्या किया जाए…फिल्म आधी बन चुकी थी। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की चिंता थी की अब फिल्म का क्या होगा जबकि के.आसिफ का मानना था कि गुरुदत्त जैसे कलाकार पर ऐसी कई फ़िल्मों को न्योछावर किया जा सकता है। बाद में इस फिल्म को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी यूनिट को संजीव कुमार का नाम सुझाया। पहले तय किया गया कि गुरुदत्त वाला हिस्सा रखा जाय और बाद में संजीव कुमार वह रोल करें। डिस्ट्रीब्यूटरस के यह कहने कि फिर तो पूरा रोल संजीव कुमार ही करें, आसिफ साहब तैयार हो गए।

40 दिन तक उपवास रह कर संजीव कुमार ने 20 किलों वजन कम किया। फिल्म संजीव कुमार के साथ बनाई जाने लगी। शूटिग जयपुर से 70 किलोमीटर दूर एक गांव में हो रही थी। फिल्म 75 प्रतिशत बन चुकी थी की तभी अचानक के. आसिफ साहब नही रहें और फिल्म फिर अधूरी रह गई … बहुत समय के बाद के. सी. बोकाडिया ने इस फिल्म को पूरा करने की कोशिश की तो संजीव कुमार दुनिया से कूच कर गए… उनके डुप्लीकेट का सहारा लेकर फ़िल्म किसी तरह पूरी करके रिलीज की गई, लेकिन तब तक दर्शकों के फिल्म देखने के मिजाज़ बदल चुके थे और फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गई।

इन सब रुकावटों के लिए फिल्म को अभिशप्त कहा गया और इसके लिए फिल्म में दिए जा रहे जन्नत के दृश्यों को जिम्मेदार ठहराया गया। फिल्म के कहानी लेखक और संगीतकार नौशाद को भी इस पर ऐतराज था। उन सबका कहना था कि यह  धार्मिक विषय है और इससे दर्शकों की धार्मिक भावनाएं भी आहत हो सकती है और वे विरोध भी कर सकते हैं। लेकिन आसिफ साहब नहीं माने। कुछ लोग बताते हैं उनको सपने में भी यह बात कही गई थी कि अगर आप जन्नत का दृश्य दिखाएंगे तो अशुभ होगा। लेकिन उन्होंने किसी की बात नहीं सुनी। उन्होंने देश के प्रसिद्ध चित्रकार पंडित रामकुमार शर्मा से जन्नत के कई चित्र बनवाए और उसके आधार पर एक विशेष संगीत नौशाद साहब ने तैयार किया जिसकी रिकार्डिंग लंदन में होनी थी। नौशाद साहब सहित कई लोगों का मानना था कि यह जन्नत के सीन ही थे जो फिल्म को अभिशप्त कर गए और जिसके चलते इस फिल्म से जुड़े कई लोग असमय ही मृत्यु का शिकार हो गए।

चलते चलते

इस बीच के. आसिफ़ साहब ने एक और फिल्म बनाने की कोशिश की थी जिसका नाम था “सस्ता खून महंगा पानी”। इस फिल्म में राजेंद्र कुमार, सायरा बानो, नाजिमा, जयंत और मुकरी को लिया गया था। फिल्म की कहानी वजाहत मिर्जा, चंगेजी और अमानुल्लाह खान ने लिखी थी। इस फिल्म का महूर्त शॉट फिल्माने के लिए मोहन स्टूडियो में भव्य सेट लगा था। राजेंद्र कुमार के हाथ में जूती और एक गंजे डाकू के हाथ में कुल्हाड़ी दी गई थी।

पहलवान राजेंद्र कुमार पर कुल्हाड़ी से हमला करता था और राजेंद्र कुमार मौका मिलते ही उसके सिर पर जूती लगाते। इस शॉट  के दौरान राजेंद्र कुमार को लगातार चोट लगने का खतरा बना रहता। वे उस गंजे डाकू को प्रतिदिन ₹100 इसलिए भिजवाते थे कि वह कुल्हाड़ी का वार ऐसा करें कि उनको कहीं चोट ना लगे। फिल्म की शूटिंग जोधपुर में भी हुई थी। लेकिन फिल्म के फाइनेंसर पूनम भाई शाह से आसिफ़ साहब का झगड़ा हो गया और फिल्म बंद हो गई। इस फिल्म के देहाती गेटअप को राजेंद्र कुमार ने फ़िल्म “गंवार” में प्रयोग किया जो उनके भाई नरेश कुमार ने ही बनाई थी।