
किशोर साहू अपने जमाने के मशहूर नायक, निर्माता, निर्देशक और पटकथा लेखक थे। 1937 से 1980 तक उन्होंने 22 फिल्मों में अभिनय और 20 फिल्मों का निर्देशन किया। ‘सिंदूर’, ‘साजन’, ‘गृहस्थी’ , ‘औरत’ ‘तीन बहू रानियां’ ‘घर बसा के देखो’,’पूनम की रात’,’हरे कांच की चूड़ियां’,’पुष्पांजलि’ और ‘दिल अपना और प्रीत पराई’ उनके द्वारा निर्देशित कुछ उत्कृष्ट फिल्मों थीं। आज की पीढ़ी उन्हें फिल्म ‘गाइड’ में वहीदा रहमान के पति मार्को के रूप में जानती है।
किशोर साहू ने “बहुरानी” फिल्म का निर्माण किया था। इसका निर्देशन, कथा पटकथा और संवाद तक भी उन्होंने ही लिखे थे। 20 जून 1940 को एक्सेल्सियर थिएटर मुंबई में फिल्म का शानदार प्रीमियर (उद्धघाटन) हुआ। इस अवसर पर मुंबई के मेयर जमुनादास मेहता, अध्यक्ष और भारत के प्रथम फिल्म निर्माता दादासाहेब फालके मुख्य अतिथि होकर पधारे थे। कंपनी के प्रचार अधिकारी मेहर तारापुर ने कई बड़ी और नामी हस्तियों के बीच अपनी तरफ से नई अभिनेत्री स्नेहप्रभा प्रधान को भी आमंत्रित कर दिया था।
स्नेहप्रभा प्रधान थी तो छोटे कद की लेकिन उस दिन ऊंची एड़ी के सैंडल पहनकर, रेशमी काली साड़ी में प्रीमियर में शरीक हुई और अच्छी फिल्म बनाने के लिए किशोर साहू की कई बार दिल खोलकर प्रशंसा की। कुछ ऐसा हुआ कि वह अक्सर किशोर साहू के साथ एक्सेल्सियर थिएटर में दर्शकों की प्रतिक्रिया जानने के लिए उनके साथ जाने लगी। किशोर साहू के जीवन में यो तो उनकी प्रेमिका, नैनीताल की प्रीति कुमारी पांडे थी जो शांतिनिकेतन में पढ़ रही थी और उसके बारे में साहू के परिवार और मित्रों को भी पता था। हालांकि प्रीति के माता-पिता शादी के लिए तैयार न थे। इन दोनों की मित्रता फैन लैटर के जरिए हुई थी।
किशोर साहू की शामें अब रंगीन होने लगी। स्नेहप्रभा लगभग रोज ही नई सजधज के साथ उनके पास आने लगी। इस बीच बॉम्बे टॉकीज की देविका रानी ने उन्हें अपनी एक फिल्म “पुनर्मिलन” में हीरो का रोल दिया। स्नेहप्रभा प्रधान हीरोइन के रूप में पहले ही ली जा चुकी थी। इधर किशोर साहू बीमार पड़े तो स्नेहप्रभा प्रधान ने उनके घर रहते हुए उनकी खूब सेवा की और इसी दौरान उसने किशोर के साथ अपने विवाह के लिए हां भी करा ली। किशोर के परिवार और मित्रों के लाख समझाने के बावजूद 13 सितंबर 1940 को मुंबई के रजिस्टार ऑफिस में दोनों ने सिविल मैरिज कर ली। अगले दिन पूरे देश के अखबारों में दोनों की शादी की चर्चा थी। दोनों ने मिलकर सांताक्रुज में बड़ा मकान लिया और अपने अपने परिवारों के साथ एक जगह रहने लगे। शादी के कुछ दिनों बाद ही किशोर साहू को एहसास हो गया कि यह शादी बेमेल है और स्नेहप्रभा प्रधान ने बड़ी चालाकी से उन्हें जाल में फंसाया है। एक-एक करके साहू के दोस्तों ने भी उनके घर आना छोड़ दिया।स्नेहप्रभा प्रधान को तो उनके दोस्तों का आना जाना वैसे ही पसंद नहीं था। धीरे-धीरे साहू अकेले पड़ गए।
21 दिसंबर 1940 को “पुनर्मिलन” रिलीज हुई और कई जगह रजत जयंती (जुबली) मनाई। इस बीच उनका परिवार उनको अकेला छोड़कर नागपुर चला गया। मानसिक तनाव के चलते हैं किशोर साहू को बुखार आ गया। एक दिन झगड़े में स्नेहप्रभा प्रधान ने दोनों के घर को “मेरा घर” कह दिया और यह भी कि अच्छा हो तुम नागपुर रहने चले जाओ वहां तुम्हारी देखभाल ठीक तरीके से हो पाएगी। झगड़ा इतना बढ़ा कि किशोर ने कहा कि अब वह नागपुर ही जाएंगे और कभी लौट कर नहीं आएंगे। बुखार की हालत ही में वीटी स्टेशन से कोलकाता मेल में एक सूटकेस और कुछ रुपए लेकर वह अकेले ही चल दिए। 13 सितंबर 1940 को दोनों का विवाह हुआ था और 13 जनवरी 1940 को यह दोनों अलग हो रहे थे। यानी यह विवाह कुल 4 महीने ही चला।
चलते चलते
बाद में किशोर साहू का विवाह उनकी पूर्व प्रेमिका प्रीति कुमारी पांडे के साथ ही 1 अक्टूबर 1943 को हुआ। आर्य समाज विधि से संपन्न इस विवाह में प्रीति के परिवार से कोई शामिल नहीं हुआ था। दोनों के विवाह में मात्र ₹200 खर्च हुए थे। विवाह को अंजाम तक पहुंचाने में शांतिनिकेतन के अध्यापक गुरदयाल मलिक का महत्वपूर्ण योगदान था।