
गोल्डी यानि विजय आनंद अपने समय के हिट निर्देशक थे। अपने भाई देव आनंद के बैनर नवकेतन के लिए कई हिट फिल्म बनाने के बाद बाहर के निर्माता निर्देशक भी उनसे फिल्म बनाने के लिए संपर्क करने लगे।
फिल्म “जॉनी मेरा नाम” प्रदर्शित होने के कुछ दिन बाद ऐसा संयोग बना कि गोल्डी ने दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर, तीनों को साथ लेकर एक फिल्म बनाने की योजना बनाई। इस बात की विस्तृत जानकारी प्रख्यात फ़िल्म पत्रकार अनिता पाध्ये की मराठी पुस्तक “एक होता गोल्डी” में मिलती है।
उस दौर में मुशीर (मुशीर आलम), रियाज़ (मोहम्मद रियाज़) नामक निर्माता जोड़ी ने दिलीप कुमार को लेकर ‘बैराग’ फिल्म बनाई थी। मुशीर- रियाज़ की एक बड़े बजट की फिल्म बनाने की तमन्ना थी। लिहाज़ा, मुशीर रियाज़ ने गोल्डी से सम्पर्क किया। गोल्डी ने अपने मन की बात मुशीर को बताई। दोनों का कहना था कि वे दिलीप कुमार से तो बात कर सकते हैं लेकिन देव आनंद और राजकपूर से उन्हें ही बात करनी होगी।
चूँकि ‘गाइड’ की कहानी में आवश्यक सुधार गोल्डी ने किया था जिससे उनके भाई के चरित्र को प्रमुखता प्राप्त हुई थी । दिलीप कुमार और राज कपूर के मन में इस बात को लेकर कोई शक न हो, इसीलिए गोल्डी ने फिल्म की कहानी और पटकथा, उस दौर में हिट हो रहे सलीम-जावेद की जोड़ी से लिखवाने का निर्णय लिया।
सलीम-जावेद और गोल्डी की 10-15 मुलाकातें हुई और तीनों ने मिलकर कहानी तैयार की। इस कहानी का आधार ‘ईस्ट साइड वेस्ट साइड’ नामक रोमियो जुलियट की कहानी पर बनी फिल्म थी। मूल कथा में कई बदलाव करके उसे भारतीय रंग में ढाला गया।
कहानी के अनुसार मुंबई की रेल व्यवस्था और पश्चिम की रेल लाइनों पर दो गुंडों का राज है। एक रोमियों की तरह का आधुनिक गुंडा है, तो दूसरा मराठी भाषी है और धोती चप्पल पहनता है। आधुनिक गुंडे की भूमिका देव आनंद के लिए थी, तो मराठी भाषी गुंडे की भूमिका दिलीप कुमार के हिसाब से लिखी गई थी। गुंडों की दुश्मनी तो थी, पर आधुनिक गुंडा, दूसरे गुंडे की बहन से अनजाने ही प्रेम करने लगता है।
एक दिन अचानक नायिका का अपहरण हो जाता है। दिलीप कुमार समझते हैं कि देव आनंद ने ही नायिका को उठाया होगा, पर उसे मारने के लिए पहुँचने पर पता चलता है कि यह काम देव आनंद का नहीं है। राज कपूर की भूमिका इस घटना के बाद शुरू होती है। वे एक हँसमुख इंसान हैं जो दोनों ही गुंडों को जानता है।
राज कपूर दोनों को समझाते हैं कि अपहरण किसी तीसरे ने ही किया है, जो तुम दोनों से अधिक शक्तिशाली है। अब एक हो जाओ और उस गुंडे का मुकाबला करो। नायिका को बचाने की खातिर दोनों दुश्मनी छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। गोल्डी ने देव आनंद को कहानी सुनाई। उन्हें कहानी पसंद आई। फिर वे दिलीप साहब के घर पहुँचे।
गोल्डी ने दिलीप कुमार को विस्तार से कहानी सुनाई, कहानी सुन लेने के बाद दिलीप कुमार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। हां इतना ज़रूर कहा कि “मेरे पास भी एक कहानी है। दिलीप कुमार ने जो कहानी सुनाई, उसमें उन्हीं की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। कहानी सुनकर गोल्डी कुछ न कह पाए, पर वे समझ गए की अगर उनकी कहानी पर फिल्म बनी, तो वे निर्देशन में हर बार टोकाटाकी करेंगे।
देव आनंद भी इससे नाराज़ होंगे। गोल्डी का मानना था कि दिलीप कुमार, राज कपूर, देव आनंद ही नहीं, मर्लिन मनरो भी क्यों न हो, मेरी फिल्म में काम करते हुए कलाकार को अपने आपको मुझे सौंप देना होगा। फिल्म बनाना निर्देशक का हक है। यदि कलाकार का निर्देशक पर विश्वास न हो, तो उसे उस निर्देशक के साथ काम नहीं करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार किस प्रकार के रोल में जचेंगे।
चलते चलते
इस फिल्म के लिए गोल्डी ने दिलीप कुमार पर दही हंडी ( गोविंदा) का गीत देना तय किया था। दिलीप कुमार की फिल्म ‘गंगा जमुना’ तभी प्रदर्शित हुई थी। नायिका की भूमिका के लिए उन्होंने वैजयंतीमाला का नाम सोचा था। दिलीप कुमार को उन्होंने रोमांस नहीं दिया था, क्योंकि वह एक ऐसे गुंडे की भूमिका थी, जो सामर्थ्यशाली बनना चाहता है।
राज कपूर का शरीर तब अधिक भारी नहीं हुआ था। देव आनंद हमेशा से रोमांटिक भूमिकाएँ करते आए थे, सो उनकी भूमिका उनकी छवि के अनुकूल थी। परंतु देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार को लेकर फिल्म बनाने की गोल्डी की इच्छा अधूरी रह गई। अगर इन तीनों महारथियों को लेकर फिल्म बन पाती, तो वह शायद बॉक्स ऑफिस पर ‘शोले’ से भी बड़ा रिकॉर्ड बनाती।