12 दिसंबर 1950 को कर्नाटक के बेंगलुरु में रामोजी राव गायकवाड़ और जीजाबाई की चौथी संतान के रूप में रजनीकांत का जन्म हुआ। परिवार ने मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर ही उनका नाम शिवाजी रखा। पिता पुलिस में हवलदार थे। रजनीकांत का शुरुआती जीवन मुश्किलों से भरा था। वह पांच वर्ष के थे जब उनकी मां का देहांत हो गया। थोड़े बड़े हुए तो पिता सेवानिवृत्त हो गए। परिवार बेंगलुरू के हनुमंत नगर में बस गया। घर की हालत कुछ अच्छी नहीं थी, इसलिए बहुत छुटपन में ही रजनीकांत पर पैसा कमाने की जिम्मेदारी आन पड़ी।
शुरू में कुली का काम करते हुए उन्होंने आचार्य पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की और रामकिशन मिशन में उच्च शिक्षा ग्रहण की। 20 बरस का होते-होते उन्होंने चेन्नई से लेकर बेंगलुरु तक कई नौकरियां कीं। इसके बाद उन्हें बेंगलुरु ट्रांसपोर्ट सर्विस में बस कंडक्टर की नौकरी मिल गई और वहां से अभिनय के प्रति उनका पुराना प्रेम परवान चढ़ने लगा। उन्होंने स्थानीय स्तर पर नाटकों आदि में भाग लेना शुरू कर दिया। बीटीएस द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भी वह अभिनय किया करते थे। इसके अलावा बस में सवार लोगों की टिकट काटने का उनका अंदाज और विशेष अंदाज में सीटी बजाना लोगों को बहुत पसंद आता था। वहीं, बस चालक राज बहादुर से उनकी दोस्ती हुई, जिनके प्रयासों से उनकी सफलता का रास्ता हमवार हुआ।
उन्हें थिएटर में पहला मौका मशहूर नाट्य लेखक और निर्देशक टोपी मुनिअप्पा ने दिया। महाभारत की कथा पर आधारित एक नाटक में दुर्योधन के किरदार में उनका अभिनय खूब सराहा गया। उनके अभिनय को देखकर राज बहादुर ने उन्हें मद्रास फ़िल्म संस्थान में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया और वहां का खर्चा उठाने में भी उनकी मदद की। नाटकों में अभिनय के दौरान मशहूर फ़िल्म निर्देशक के. बालचंदर की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने रजनीकांत को तमिल सीखने तथा बोलने की सलाह दी। के. बालचंदर ने 1975 में ‘अपूर्व रंगांगल’ फिल्म में रजनीकांत को मौका दिया। उनके अभिनय को तमाम लोगों ने सराहा। हालांकि रजनी को पहली वास्तविक सफलता इसके अगले साल आई बालचंदर की एक और फिल्म ‘मुंडरू मुडिचू’ से मिली तथा उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
रजनीकांत के अभिनय और सफलता के इस सफर में राज बहादुर और के बालचंदर के योगदान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दादा साहब फालके पुरस्कार इन्हें समर्पित कर दिया।
सिनेमा जगत के इस सर्वोच्च सम्मान के लिए चुने जाने पर रजनीकांत ने कहा, ‘‘मैं यह पुरस्कार अपने दोस्त राज बहादुर जिसने मेरी अभिनय की प्रतिभा को पहचाना और मुझे प्रोत्साहित किया, अपने बड़े भाई सत्यनारायण राव गायकवाड़ जिन्होंने गरीबी से लड़ते हुए मुझे अभिनेता बनाने के लिए बहुत बलिदान दिए और अपने गुरु के. बालचंदर को समर्पित करता हूं जिन्होंने इस रजनीकांत को बनाया।’’
पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनकी पत्नी लता रजनीकांत हैं और उनकी दो बेटियां ऐश्वर्या और सौंदर्या हैं। ऐश्वर्या ने अपनी किताब ‘स्टैंडिंग ऑन ऐन ऐप्पल बॉक्स’ में लिखा है कि उनके पिता ने कभी सुपरस्टार की तरह बर्ताव नहीं किया।
फ़िल्म समीक्षक नमन रामचंद्रन ने रजनीकांत की जिंदगी के सफर को किताब की शक्ल दी है। ‘रजनीकांत : द डेफिनिटिव बायोग्राफी’ में उनके शिवाजी राव गायकवाड़ से सुपरस्टार रजनीकांत बनने की सारी कहानी बयां की गई है। पेंगुइन द्वारा प्रकाशित इस किताब के अनुसार बस यात्रियों को टिकट देने में रजनीकांत से तेज कोई नहीं था। वह अपने अंदाज़ में मुसाफिरों को टिकट देते थे। उनके मशहूर अंदाज़ के चलते ही लोग किसी दूसरी बस में जाना पसंद नहीं करते थे और उनकी बस का इंतज़ार करते थे। उनका यह विशिष्ट अंदाज बाद में उनके करोड़ों प्रशंसकों में बेहद लोकप्रिय हुआ।
रजनीकांत की कहानी हर उस इंसान का प्रेरित करती है जो अपनी जिंदगी में कुछ करना और कुछ बनना चाहता है। उन्होंने अपनी मेहनत से फर्श से अर्श तक का सफर पूरा किया और इस दौरान बेहद सादगी से अपनी उम्र के हर पड़ाव का मजा लेते रहे। अपने झड़ते बालों और सफेद होती दाढ़ी को कभी छिपाने की कोशिश नहीं करने वाले रजनीकांत पर्दे पर भले ही तरह-तरह के करतब दिखाते हों, लेकिन ‘मेकअप’ उतरते ही वह बेहद सहज, सरल, मिलनसार और मददगार इंसान हो जाते हैं