शोले इसी फिल्म से प्रेरित है और रिलीज़ के 66 साल बाद भी इसकी चमक पूरी तरह से बरक़रार है


शोले की कहानी को अगर कम शब्दों में कहे तो वो कुछ ऐसा होगा – दो मसखरे चोर जिनका जिंदगी में कोई मकसद नही है, एक गांव को एक क्रूर डकैत के चंगुल से आजाद कराते हैं। शोले की रिलीज़से 21 साल पहले सन् 1954 मे रिलीज हुई मशहूर जापानी निर्देशक अकीरा कुरोसावा की फिल्म सेवन समुराई का सार भी कुछ ऐसा ही है। एक गरीब गांव के रहने वाले लोग अपने ऊपर हो रहेडाकुओं के आतंक से बचने के लिये सात बेरोजगार समुराई को अपने गांव की सुरक्षा की जिम्मेदारी का काम सौंपते हैं।


नागरिक न्यूज admin
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गॅाडफादर बनाने वाले फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि कई निर्देशकों के खाते में एक या दो फिल्म ऐसी होती है जिनके लिये वो जाने जाते है लेकिन अकीरा कुरोसावा के खाते मे इस तरह की नौ फिल्में है। कपोला के ये शब्द कुरोसावा के टावरिंग पर्सनालिटी को अच्छी तरह से बंया करती है। 1954 मे रिलीज हुई कुरोसावा की सेवन समुराई ने आगे चल कर दुनिया की कई फिल्मों को प्रेरित किया और कई मायनो में फिल्म बनाने के ग्रामर को भी बदला। जरा गौर फरमाइये उन फिल्मों पर जो सेवेन समुराई से प्रेरित थी – द मैगनेफिसिंयट सेवन, स्टार वार्स और खुद अपने देश की शोले। इस फिल्म ने आगे चलकर एक्शन फिल्मों का ढर्रा ही बदल दिया था। इस फिल्म ने अकीरा कुरोसावा को विश्व पटल पर ला कर रख दिया था और आज तक ये फिल्म नयी पीढ़ी के फिल्म मेकर्स के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। इस फिल्म से जुडी कुछ ऐसी भी बातें है जिसके बारे में लोगों को कम जानकारी है। सेवेन समुराई के पहले कुरोसावा ने कोई भी समुराई फिल्म नहीं बनाई थी। उनकी इस फिल्म की कहानी शुरु में महज एक सामुराई के एक दिन के दिनचर्या के बारें में थी जिसका खात्मा उसके हाराकिरी यानि की सुसाइड पर खत्म होता है लेकिन कुरोसावा को इसमे पिरोने के लिये किसी भी तरह की कोई अच्छी कहानी नहीं मिल पाई। हताश होकर उसके बाद उन्होने लगभग 500 पेज की एक कहानी दो और लोगों के साथ मिलकर लिखी जिसका नाम था सिक्स समुराई। कहानी पढ़ने के बाद उनको लगा की अभी भी इसमे कुछ कमी है और उस कमी को पूरा करने के लिये उन्होंने एक और किरदार को कहानी में जोड़ा जो की थोड़ा मजेदार था। आगे चल कर उस सातवें किरदार को जापानी फिल्मों के सुपरस्टार तोशिरो मीफुने ने उसको अपनी शानदार अदाकारी से हमेशा के लिए अमर कर दिया ।

तोशिरो मीफुने और ताकाशी शिमुरा को छोडकर फिल्म के बाकी कलाकारो का बैकग्राउंड काफी अलग था। इसाओ किमुरा एक वामपंथी थियेटर ग्रुप के संचालक थे जबकि केइको शुशिमा नृत्य की दुनिया से जुड़े थे। योशिओ शुचिया पेशे से एक डॉक्टर थे जिन्होंने आगे चलकर युएफओ के विषय पर कई पुस्तकें लिखी। जब फिल्म की शूटिंग शुरु हुई तो ये फिल्म इसके निर्माण से जुडे़ हर तय सीमा को ये पार कर गई थी। इस फिल्म के निर्माता थे जापान के मशहूर तोहो स्टूडियो और जब इसकी शूटिंग खत्म हुई जब ये अपने निर्धारित बजट से चार गुना ज्यादा पैसे इसके शूटिंग पर जा चुके थे। लगभग 150 दिन तक चली इस फिल्म की शूटिंग का आखिरी बज़़ट लगभग 5 लाख डालर का था। गौरतलब है कि जब इस फिल्म की शूटिंग चल रही थी जब उसी दौरान तोहो स्टूडियो में गाडजिला बनने की कवायद चल रही थी। इन दोनो ही फिल्मो के बजट की वजह से स्टूडियो दो बार कगांली की कगार पर खडा हो गया था और इसकी वजह से सेवेन समुराई की शूटिंग दो बार रोकनी भी पड़ी थी। फिल्म की शूटिंग इतने तनाव भरे माहौल में हुई थी कि एक वक्त ऐसा भी आया था जब तोशिरो मीफुने ने कुरोसावा को बंदुक दिखाकर धमकी दे दी थी।  लेकिन कुरोसावा को इस बात का इल्म था कि उन्होंने फिल्म की इतनी शूटिंग कर दी थी कि तोहो के पास इसको रिवाईव करने के अलावा और कोई रास्ता नही था। लेकिन शूटिंग के शेड्यूल मे बदलाव की वजह से फिल्म के कास्ट को इसके क्लाईमेक्स के दौरान खासा परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था। फिल्म के क्लाईमेक्स की शूटिंग गर्मियों के बदले कड़क सर्दियों मे करना पड़ा था जिसको लेकर फिल्म के कलाकार जरा भी खुश नहीं थे।

इस फिल्म के ओरिजनल वर्सन की अवधि 207 मिनट की थी जो सिर्फ जापान के बडे़ शहरों के सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित किया गया था। जब इस फिल्म का सेलेक्शन वेनिस फिल्म फेस्टिवल के लिये हुआ तब इसको फिर से रि-एडिट किया गया। इस रि-एडिट का नतीजा ये निकला की फिल्म लोगों को समझ में नहीं आई लेकिन फिर भी इसने अकीरा कुरोसावो को फेस्टिवल का बेस्ट निर्देशक का खिताब दिला दिया। जब तोहो ने इस फिल्म का प्रदर्शन अमेरिका में पहली बार किया जब इसकी कुल अवधि में से 50 मिनट कम कर दिये थे। साल 2002 मे पहली पार लोगों को पहली बार पूरी फिल्म देखने का मौका मिला जब इसका डीवीडी लांच किया गया। 

जापानी इतिहास के सेनगोकु पीरियड की इस दास्तां को बीबीसी के 2018 के एक पोल में अबतक की सबसे सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म घोषित किया गया था। दुनिया के हर मशहूर निर्देशक और कलाकार की टाप टेन फिल्मों की लिस्ट में ये फिल्म अक्सर अपनी जगह बनाती है। जानकर आश्चर्य होता है कि सन् 1955 के आस्कर समारोह में इसको दो कैटेगरी में नामांकित किया गया था लेकिन इसके हत्थे कोई भी अवार्ड हाथ नहीं लगा – सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म का तमगा भी नहीं।