दिल बेचारा रिव्यू – अपना सबसे शानदार अभिनय का नमूना सुशांत सिह राजपूत ने दिल बेचारा के लिये बचा कर रखा था

दिल बेचारा देखने के बाद एक बात जरूर पक्की है की सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने के लिए जो भी आवाज़ें उठ रही है वो और बुलंद होंगी और इसके पीछे दो वजहें है - सुशांत की बेहतरीन अदाकारी जो अब कभी देखने को नहीं मिलेगी और दूसरी फिल्म में उनका रुलाने वाला किरदार।

ये कहना गलत नहीं होगा की दिल बेचारा देख कर यही लगता है की अपना सबसे शानदार अभिनय का नमूना सुशांत ने अपनी आखरी फिल्म के लिए छुपा कर रखा था। ये देख कर बेहद दुःख भी होता है की अपने इस किरदार के माध्यम से सुशांत लोगो को जिंदगी जीने के और मौत से लड़ने के फलसफे सिखाते है। 

फिल्म की कहानी मैनी और कीजी के बारे में है। मैनी यानी की सुशांत जिंदगी को खुल कर जीने में विश्वास रखता है। इसके बिलकुल उलट कीजी (संजना सांघी) है जो कैंसर से पीड़ित है और हमेशा एक ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर चलती है। कीजी अपनी जिंदगी से दुखी है और जिंदगी को देखने का उसका दृष्टिकोण निराशावादी है। लेकिन जब दोनों की मुलाक़ात होती है तब शुरू की तकरार के बाद आगे चल कर दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते है और फिर उनकी दोस्ती प्यार में बदल जाती है। मैनी, कीजी को हमेशा खुश रखने की कोशिश करता है लेकिन अंत में खुद की मौत के पहले मैनी, कीजी को खुश रहने के नुस्खा जरूर सीखा देता है। 

फिल्म की कहानी हॉलीवुड की सुपर हिट फिल्म द फाल्ट इन आवर स्टार्स पर आधारित है। दिल बेचारा की शुरुआत जमशेदपुर में होती है और कहानी आगे बढ़ते हुए पेरिस का रुख करती है। अगर अभिनय की बात करें तो सुशांत और संजना, जिनकी ये पहली फिल्म है, फिल्म में काफी जंचे है और दोनों की केमिस्ट्री लोगो को पसंद आएगी। देख कर बेहद अफ़सोस होता है की ये फिल्म सुशांत सिंह की आखिरी फिल्म है और इसके बाद इस शानदार टैलेंट के दीदार लोगो को नहीं हो पाएंगे। एक बड़े ही शानदार टैलेंट को बॉलीवुड ने खो दिया है।

इस फिल्म में सुशांत और संजना के अलावा बांग्ला फिल्मो की जानीमानी अदाकारा स्वस्तिक मुखर्जी भी नज़र आएगी और उनका किरदार भी कीजी की मां की भूमिका के रोल मे काफी शानदार है। सैफ अली खान इस फिल्म में स्पेशल अपीयरेंस में नज़र आएंगे और जब वो परदे पर आते है तब उनको देख कर अच्छा लगता है। कास्टिंग की दुनिया के मंजे हुए खिलाडी मुकेश छाबडा की ये पहली निर्देशित फिल्म है और कहना पड़ेगा की उनकी मेहनत साफ़ नज़र आती है। कई जगहों पर वो चूक गए है लेकिन फिल्म के विषय को लेकर उनके विचार काफी फोकस्ड और साफ़ है पहली फिल्म होने की वजह से उनको माफ़ किया जा सकता है। फिल्म का पूरा बेस इमोशंस पर टिका हुआ है और दो मंजे हुए कलाकारों की वजह से मुकेश छाबडा इस चीज़ को पर्दे पर उभारने में सफल रहे है। फिल्म में संगीत एआर रहमान का है और उनके गाने बेहद ही साधारण है. रहमान का जादू इस फिल्म में नज़र नहीं आता है और इस फिल्म की कमजोर कडी वही लगते है। 

फिल्म की शुरुआत सुशांत के एक ट्रिब्यूट से होती है जहा पर उनको गिटार बजाते हुए देखा जा सकता है। रजनीकांत की नक़ल जो उन्होंने फिल्म की शुरुआत में की है वही से वो चौथे गियर में आ जाते है और पूरी फिल्म में वही मोमेंटम बरक़रार रखते है। दिल बेचारा की कहानी आपको अस्सी के दशक में बनी कई फिल्मों की याद दिलाएगी जिसमे से राजश्री बैनर्स की अँखियो के झरोखो से प्रमुख है। ये फिल्म आपको रुलायेगी और हसायेंगी और हर वक़्त आपको इस बात का एहसास दिलाएगी की आप एक बड़े ही होनहार अभिनेता की आखिरी फिल्म देख रहे है। इस फिल्म को और कुछ नहीं तो सुशांत सिंह राजपूत के उम्दा अभिनय के लिए जरूर देखिये।

First Published on: July 24, 2020 8:46 PM
Exit mobile version