मुंबई। स्क्रिप्ट लेखन के आधार पर सुपर स्टार का दर्जा पाने वालों में हमारे जेहन में सबसे पहले नाम सलीम – जावेद के उभरते हैं, लेकिन इससे पहले भी यह दर्जा हासिल था पंडित मुखराम शर्मा को।
‘धूल का फूल’ जिसे बीआर फिल्म्स ने बनाया था के पोस्टरों पर लिखा था पंडित मुखराम शर्मा की ‘ धूल का फूल’। इस फिल्म में बी आर चोपड़ा ने राजकुमार को हीरो लिया था। राजकुमार ने जब कहानी सुनी तो पंडित मुखराम शर्मा जी से बोले- पंडित जी आपने तो मुझे विलेन बना दिया। यह एंगल बदल दीजिए। शर्मा जी का जवाब था अगर एंगल बदल दिया तो कहानी में क्या बचेगा ? राजकुमार ने यह फिल्म छोड़ दी लेकिन कहानी नहीं बदली गई। बाद में राजकुमार वाला रोल राजेंद्र कुमार ने किया। फिल्म बनी भी और सुपरहिट भी हुई।
पंडित मुखराम शर्मा बीआर फिल्म्स के लिए नियमित फिल्में लिखा करते थे। उनके लिखने का तरीका बिल्कुल सीधा था पहले चोपड़ा साहब यानि निर्देशक बीआर चोपड़ा को कहानी सुनाई। कहानी पसंद आई तो पूरी फिल्म लिख कर दे दी गई। बीच में कभी किसी से कोई बातचीत नहीं।
एक बार चोपड़ा साहब ने उनसे कहा कि थोड़ा लिख चुके हो तो एक दिन चलकर यूसुफ साहब ( दिलीप कुमार) को सुना देंगे.. वे ऐसा ही चाहते हैं। उस समय दिलीप साहब सबसे बड़े सितारे थे लेकिन पंडित जी से उनके पास जाने से मना कर दिया। नतीजतन पंडित मुखराम शर्मा जी को यह फिल्म छोड़नी पड़ी।
यह फिल्म थी ‘ नया दौर ‘। इसकी सफलता पर हुई पार्टी में पंडित जी और दिलीप कुमार का आमना सामना हो गया। दिलीप साहब ने उनसे हंसकर कहा – सुना देने में हर्ज क्या था सुझाव तो कोई भी दे सकता है। तब पंडित मुखराम जी का जवाब था- निर्देशक से गाय की तस्वीर बनाने की बात हुई… जब तक गाय की तस्वीर पूरी ना हो जाए तब तक कोई क्या सुझाव देगा। जब मैं गाय का चित्र बना लूं और उसमें पूंछ गाय की नहीं घोड़े की लगे तो जरूर सुझाव दिया जा सकता है। अधूरी तस्वीर में सुझाव कैसा ? तो पंडित मुखराम शर्मा कायह जलवा था।
चलते चलते… बात चली है स्क्रिप्ट राइटर की तो जावेद साहब के नामकरण से जुड़ा रोचक किस्सा भी सुन लीजिए … जावेद जी का जन्म 17 जनवरी को ग्वालियर के कमला अस्पताल में हुआ । उनके वालिद यानि पिता अपने दोस्तों के साथ अस्पताल पहुंचे तो लोगों ने कहा कि जब किसी मुस्लिम के घर कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके कान में अजान पढ़ी जाती है।
उनके और उनके दोस्तों के हाथ में उस समय कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो था तो निर्णय हुआ कि इसके कान में यहीं पढ़ देते हैं… आगे चर्चा उनके नाम को लेकर हुई तो किसी ने उनके वालिद को याद दिलाया कि जब उन्होंने उनकी वालिदा यानि मां साफिया से शादी की थी तो उन्हें एक नज़्म सुनाई थी जिसकी एक लाइन थी… ‘लम्हा लम्हा किसी जादू का फसाना होगा ‘… तो क्यों न इसका नाम ‘ जादू ‘ रख दिया जाए।
इस तरह काफी वक्त तक वे सिर्फ जादू के नाम से जाने जाते रहे… लेकिन जब स्कूल में नाम लिखने की बात हुई तो कहा गया कोई संजीदा नाम ढूंढा जाए, तब ‘जादू ‘ से मिलता जुलता नाम ‘ जावेद ‘ ढूंढा गया, जिसका मतलब होता है अमर और अख्तर यानी अमर सितारा…