निर्देशक दिबाकर बनर्जी के खोसला का घोसला के बनने की कहानी

खोसला का घोसला निर्देशक दिबाकर बनर्जी की पहली फिल्म थी लेकिन उनके करियर की ये अब तक की सबसे शानदार फिल्म को जनता तक पहुंचने में तीन साल लग गए थे।

हिंदी फिल्मो में जब भी दिल्ली शहर के चित्रण की बात आती है, दिबाकर बनर्जी की फिल्मों की बात जरूर निकलती है। चाहे वो खोसला का घोसला हो या फिर ओय लकी, लकी ओय इन सभी फिल्मों में दिल्ली शहर एक किरदार के रूप में दिखाई देता है। लेकिन शहर के चित्रण के अलावा दिबाकर बनर्जी की खोसला का घोसला का नाम बेहतरीन फिल्मों की श्रेणी में भी शुमार होता है। दिल्ली शहर को अपनी पहली पृष्ठभूमि बनाने की सबसे बड़ी वजह यही थी की अपनी पैदाइश की वजह से दिबाकर दिल्ली के हर रंग से वाकिफ थे। 

फ़िल्मी कीड़े ने दिबाकर को तब काटा जब वो मुंबई में कॉन्ट्रैक्ट एड़ एजेंसी में काम कर रहे थे। वही पर उनकी मुलकात स्क्रिप्ट राइटर जयदीप साहनी से हुई और दोनों ने आगे चलकर साथ मिलकर खोसला का घोसला का ताना बाना कर बुना। फिल्म की शूटिंग भले ही ४५ दिनों में पूरी हो गयी थी लेकिन फिल्म में दो बड़े कलाकार – अनुपम खेर और बोमन ईरानी को साइन करने के लिए उनको काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। दिबाकर के पहले फिल्म के नरेशन से ही अनुपम खेर संतुष्ट हो गए थे लेकिन आगे चलकर सेट पर अनुपम खेर ने एक नए निर्देशक में एक अच्छी फिल्म बनाने का जज़्बा और टैलंट है या नहीं इसका इम्तिहान अपने ही तरीके से फिल्म की शूटिंग के दौरान लिया। बोमन ईरानी ने शुरू में इस फिल्म को ना कह दिया था। फिल्म के लेखक जयदीप साहनी जिनको बोमन पहले से जानते थे, ने बोमन और दिबाकर के बीच कई मीटिंग कराई लेकिन उन मीटिंग का कोई फल नहीं निकला। आखिर में जयदीप साहनी ने जब बोमन ईरानी से एक घंटे अकेले में बात की तब उसके बाद ही उन्होंने फिल्म को साइन करने की अपनी हामी भरी।

असल जिंदगी में एक पारसी दिल्ली के एक रियल एस्टेट शार्क का किरदार निभा पायेगा – इस बात को लेकर बोमन को अपने ऊपर भरोसा नहीं था। इसके बाद बोमन को दिबाकर ने दिल्ली के राजेंद्र नगर के एक रियल एस्टेट एजेंट का ऑडियो सीडी दिया जिसमे उसने अपनी पुरी जिंदगी बयां की थी। अपने किरदार के लिए बोमन के पास सिर्फ यही रिफरेन्स था जिसे वो शूटिंग के दौरान अपनी गाडी में सुनते थे। 

फिल्म की शूटिंग दिल्ली के बेहद गरम माहौल में हुई थी जिसकी वजह से यूनिट के कई लोगो की तबियत भी खराब हो गयी थी। लेकिन शूटिंग के दौरान एक रात एक फ़ोन कॉल की वजह से दिबाकर काफी परेशान हो गए थे। वो फ़ोन कॉल था यूनिट के होटल की तरफ से जब पूरी यूनिट को होटल खाली करने के लिए कहा गया था लेकिन अपने काबिल असिस्टेंट्स की वजह से दिबाकर की टीम ने कैसे भी मामले को रफा दफा कर दिया था। 

फिल्म जब बन कर तैयार हो गयी थी तब दिबाकर को कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर फिल्म को रिलीज़ करने के लिए नहीं मिल रहा था। लगभग तीन साल तक दिबाकर की ये जद्दोजहद चली और इसी दौरान दिबाकर काफी निराश भी हो गए थे। इन तीन सालो ने दिबाकर की मुलाकात डिप्रेशन से करा दी और इसकी वजह से वो काफी नेगेटिव भी हो गए थे। फिर एक दिन अपनी पत्नी के साथ फिल्म के मुद्दे पर लम्बी चौड़ी बात की और उसका यही निष्कर्ष निकला की अब वो इस फिल्म को अपनी जिंदगी से भूल जायेगे। लेकिन उसके बाद भी जयदीप और दिबाकर ने हिम्मत नहीं हारी और मौका मिलते हे फिल्म जगत से जुड़े लोगो को अपनी फिल्म दिखा देते थे। लेकिन जब उन स्क्रीनिंग्स का भी फल कुछ भी निकलते ना दिखा तब अंत में दिबाकर ने हार मान ली और लगा की उनको अपनी पहली फिल्म हमेशा के लिए भूलनी पड़ेगी। उसके कुछ दिनों के बाद युटीवी ने उनसे संपर्क साधा और फिल्म के डिस्ट्रीब्यूशन का जिम्मा ले लिया। 

First Published on: June 21, 2020 11:23 AM
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