जन्मदिन विशेष – पंकज कपूर की बेहतरीन फिल्में जो शायद आपने ना देखी हो


नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से एक्टिंग की पढाई करने वाले पंकज कपूर ने वैसे तो अपने एक्टिंग स्कूल से बहुत कुछ सीखा लेकिन स्कूल से अनुमति लेने के बावजूद जब उनके स्कूल ने उनको ये कहा की की रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म गांधी में वो काम ना करें तब उनको लगा की उनके साथ ज्यादती हो रही है। रिपर्टरी को छोड़ने की बजाय उन्होंने यह कहा की उनको निकाल दिया जाए। पंकज कपूर की शख्शियत कुछ ऐसी ही रही है। आइये बात करते है उनकी 5 ऐसी बेहतरीन फिल्मों की जो शायद आपने नहीं देखी है।



एक डॉक्टर की मौत (निर्देशक – तपन सिन्हा) (1990)

ये फिल्म सुभाष मुखोपाध्याय की एक कहानी से प्रेरित है जो कलकत्ता में में एक चिकित्सक थे जिन्होने इन-विट्रो फर्टिलिसशन के माध्यम से हिंदुस्तान के पहले बच्चे को जनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस फिल्म की कहानी भी एक डॉक्टर के बारे में थी लेकिन ये डॉक्टर कुष्ट रोग की वैक्सीन की खोज में लगा हुआ है। पंकज कपूर ने डॉक्टर दीपांकर रॉय की भूमिका को यादगार बनाने के अलावा उन्होंने नेशनल अवार्ड पर भी हाथ साफ़ किया।

राख (निर्देशक – आदित्य भट्टाचार्य) (1989)

राख पंकज कपूर के करियर की ऐसी पहली फिल्म थी जिसने उनको नेशनल अवार्ड दिलवाया। एक पुलिसवाले की भूमिका में पंकज कपूर ने खूब वाह वाही बटोरी। फिल्म का नरेशन अस्सी के दशक के हिसाब से काफी अलग था और इसलिए लोगो ने रिलीज के समय इसकी भूरी भूरी प्रशंशा की थी। इस फिल्म में आमिर खान मुख्य भूमिका में थे।

एक रुका हुआ फैसला (निर्देशक – बासु चटर्जी) (1986)

एक रुका हुआ फैसला हॉलीवुड की फिल्म 12 एंग्री मेन की कॉपी थी लेकिन देसी माहौल का जो तड़का इस फिल्म में दिया गया था उसे लोगो ने बहुत पसंद किया। फिल्म की पुरी शूटिंग एक कमरे के अंदर हुई थी और फिल्म में ना कोई स्पेशल इफ़ेक्ट था, ना मारधाड़ और ना ही कोई बड़ा सितारा लेकिन इसके स्क्रीनप्ले और अभिनय में बहुत जान थी। पंकज कपूर इस फिल्म में एक जुरर की भूमिका में थे और उनकी अदायगी बेहद अलग थी।

मक़बूल (निर्देशक – विशाल भारद्वाज) (2003)

मक़बूल में अब्बाजी के रोल के लिए पंकज कपूर शायद हमेशा नसीरुद्दीन शाह को धन्यवाद देना चाहेंगे। जब फिल्म अपने प्री प्रोडक्शन फेज में थी तब अब्बाजी के रोल के लिए विशाल भारद्वाज ने नसीर को एप्रोच किया था लेकिन नसीरुद्दीन शाह ने ये कहकर मन कर दिया की उस तरह का रोल वो पहले कर चुके है और उनकी रूचि कांस्टेबल के रोल में ज्यादा है। शायद किस्मत को भी यही मंज़ूर था की अब्बाजी के रोल में पंकज कपूर नज़र आये।

ये वो मंज़िल तो नहीं (निर्देशक – सुधीर मिश्रा) (1987)

ये वो मंज़िल तो नहीं निर्देशक सुधीर मिश्रा की पहली फिल्म थी। फिल्म की कहानी आज और कल के बीच चलती रहती है और वर्तमान को समझने के लिए अतीत का सहारा लेती है. कहानी तीन वृद्धो के बारे में है जो ट्रेन में सफर करते है और उनकी मंज़िल है खुद का कॉलेज जिसमे वो 40 साल पहले पढ़ा करते थे और अब उनका कॉलेज अपनी शताब्दी मना रहा है। पंकज कपूर ने इन्ही तीन वृद्धो में से एक के जवानी का रोल निभाया था। इस फिल्म को सालो पहले दूरदर्शन पर दिखाया गया था और फिलहाल इस फिल्म को कोई भी प्रिंट उपलब्ध नही है। सुधीर मिश्रा की अगली फिल्म इसी फिल्म की रीमेक है।