वो कौन सी वजह थी जिससे तलत महमूद और संगीतकार नौशाद के बीच आ गयी थी दरार


संगीतकार खय्याम ने उनकी आवाज़ के बारे में ये कहा था की वो आत्मा से परिपूर्ण है। मेहँदी हसन और जगजीत सिंह की गायकी पर उनका जबरदस्त असर था। बॉलीवुड में ओवरसीज कॉन्सर्ट के चलन के पीछे इनका बहुत बड़ा हाथ था। जी हाँ, यहाँ पर बात मशहूर ग़ज़ल गायक तलत महमूद की ही हो रही है।


नागरिक न्यूज admin
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तलत महमूद का जीवन हमेशा से एक खुली किताब की तरह रहा है लेकिन ये बदकिस्मती की बात है की उस किताब को बहुत लोगो ने पढ़ा नहीं है। कहने का आशय ये है कि तलत महमूद को जो सम्मान मिलना चाहिए वो शायद उनको उतना नहीं मिला। जो भी तलत महमूद को करीब से जानते थे उनको एक भद्र पुरुष मानते थे। फ़िल्मी दुनिया के एक अभिन्न अंग होने के बावजूद उनको लेकर कोई गॉसिप ढूंढो तो शायद कभी ना मिले।  

आज से 22 साल पहले 9 मई 1998 को तलत महमूद इस फानी दुनिया से हमेशा के लिये रुखसत हो गए थे लेकिन छोड़ गए थे अपने संगीत का अमर खज़ाना जो आज भी संगीत प्रेमियों का दिल बहला रहा है। तलत महमूद का जन्म 24 फ़रवरी 1924 को लखनऊ के एक शिक्षित लेकिन रूढ़िवादी परिवार में हुआ था। काफी कम उम्र में उनका झुकाव संगीत की ओर हो गया था और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिगज्जो को वो कम उम्र में ही सुनने लगे थे। 

आगे चल कर उन्होंने लखनऊ के मॉरिस म्यूजिक कॉलेज से संगीत की तालीम ली और 16 साल की उम्र में उन्होंने रेडियो पर ग़ालिब, दाग़, मीर और जिगर मुरादाबादी की ग़ज़लों को गाना शुरू किया। उनके इस टैलेंट को देख कर जल्द ही उन्हें म्यूजिक कंपनी एचएमवी की ओर से 1941 में एल्बम बनाने का न्योता मिला और जल्द ही कलकत्ता उनका बेस बन गया।

कलकत्ता में उन्होंने अपनी शुरुआत गायक के बदले एक अभिनेता के तौर पर शुरू की थी. गौरतलब बात यह थी की उन्होंने कला के क्षेत्र में अपनी शुरुआत तपन कुमार के नाम से की थी। जल्द ही उनका आगमन बम्बई हुआ और इस बार उन्होंने तलत महमूद के नाम से ही अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत की।
जल्द ही उनकी मुलाकात संगीतकार अनिल बिस्वास से हुई और उसके बाद जब उन्होंने ग़ज़ल गायिकी के तराने छेड़े तो उसकी सफलता ने उनको सीधे फलक पर बिठा दिया। दिलीप कुमार के ऊपर फिल्माए गए गाना ए दिल मुझे ऐसी जगह ले चल ने उनको रातो रात मशहूर कर दिया। आगे चल कर वो फिल्म जगत को लोगो के बीच किंग ऑफ़ ग़ज़ल के रूप में मशहुर हो गये। अगर किसी भी फिल्म में ग़ज़ल गायिकी के लिए किसी की जरुरत होती थी तो हर संगीतकार के जहन में सिर्फ एक ही नाम आता था – तलत महमूद।

लेकिन अपने डील डौल और खूबसूरती कद काठी की वजह से अभिनय का दामन उन्होंने छोड़ा नहीं था। बम्बई आने के बाद निर्माता निर्देशक ए आर कारदार ने अपनी फिल्म दिल-ए-नादान में तलत महमूद के अपोजिट अभिनेत्री की तलाश के लिए एक आल इंडिया ब्यूटी कांटेस्ट का आयोजन तक कर दिया था। आगे चल कर तलत को 13 फिल्मो के ऑफर मिले जिसमें नूतन, माला सिन्हा, सुरैया, श्यामा और नादिरा जैसी अभिनेत्रियां शामिल थी। लेकिन तब तक तलत को इस बात का अंदाजा लग गया था की उनका असली टैलेंट कहा पर है। 

अगर तलत महमूद की फिल्मोग्राफी पर एक नज़र दौड़ाये तो ये पता चलेगा की 50 और 60 के दशक के सबसे बड़े संगीतकार नौशाद के साथ उनके कम ही गाने है। ये संगीत प्रेमियों के लिए दुख की बात है की दोनों ने एक दूसरे के साथ बहुत कम काम किया। ये एक ऐसी जोड़ी थी जिसमे अपार प्रतिभा थी लेकिन तलत महमूद की एक छोटी सी गलती ने एक ऐसा एसोसिएशन जो लंबा खींच सकता था वो बीच मे ही कट गया।
दोनों अवध की सरजमीं से थे और उर्दू को लेकर दोनों की सेंसिबिलिटी एक जैसे ही थी। तलत महमूद ने जब अनिल बिस्वास के लिए फिल्म आरज़ू में दिलीप कुमार के लिए प्लेबैक दिया तो चोटी पर पहुंचने में उन्हें ज्यादा समय नहीं लगा। उसके कुछ समय के बाद उनको नौशाद की ओर से न्योता मिला फिल्म बाबुल में दिलीप कुमार के लिये एक बार फिर से गाने का।
तलत महमूद के लिए ये एक सुनहरा मौका था अपनी इमेज को और पुख्ता करने का लेकिन फिल्म के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान उन्होंने पुरे समय सिगरेट पी जो नौशाद को नागवार गुजरी। उस वक़्त तो नौशाद ने तलत से कुछ भी नहीं कहा लेकिन उनकी सालों की ख़ामोशी ने बता दिया था की उनकी वो हरकत ठीक नहीं थी। तलत ने आगे चल कर फिल्मी इतिहासकार राजू भारतन की किताब में इस घटना के बारे में ये कहा है की उसी वक़्त उनको इस बात का एहसास हो गया था की उनकी हरकत ओछी थी।

संगीतकार एस डी बर्मन के लिए भी तलत महमूद ने कई सुपरहिट गाने गाये थे लेकिन एस डी बर्मन ने राजू भारतन की किताब नौशादनामा में इस बात का खुलासा किया था की तलत एक अच्छे गायक नहीं है। अब उनकी इस राय के पीछे की वजह क्या थी इस पर उन्होंने आगे कुछ भी नहीं कहा है। 

लेकिन भले ही फिल्म जगत में कुछ लोगो को तलत पसंद नहीं रहे हो, तलत के लिए फिल्म संगीत से जुड़े लोगो की बिरादरी उनके लिए परिवार जैसी था. चीनी प्रीमियर चाऊ एन लाई जब मुंबई पधारे थे, तब अरब सागर के किनारे बसे राज भवन में उनके स्वागत के लिए एक शानदार समारोह का आयोजन किया गया था। जब गीत संगीत का आयोजन चल रहा था, तब उसी बीच चाऊ एन लाई ने एक गाने की फरमाइश कर दी। गाना था राज कपूर की सुपरहिट फिल्म आवारा से आवारा हूँ।
  
ये इत्तेफ़ाक़ की बात थी की मौके पर मुकेश मौजूद नहीं थे और फिल्म इंडस्ट्री की ओर से महज दो गायक वहा पर उपस्थित थे – तलत महमूद और गीता दत्त। इन दोनों को ही गाने के शब्द पता नहीं थे। आनन् फानन में तलत महमूद ने फ़ौरन फ़िल्मफेयर मैगजीन से जुडे जे के जैन को अपनी परेशानी बताई। जो आईडिया उनको सुझाया गया वो ये था की वो गाने की शुरुआत आवारा हूँ से करेंगे और बाद में वो अपनी किसी और फिल्म के गाने के शब्द गा देंगे। लगभग तीन मिनट तक दोनों आवारा हूँ की धुन पर किसी और फिल्म के गाने गाते रहे। शायद ये संगीत बिरादरी से जुड़े लोगो का प्यार ही था जिसकी वजह से ये संभव हो पाया था। 

60 के आखिर में जब इलेक्ट्रॉनिक बीत फ़िल्मी संगीत पर हावी होने लगा था तब तलत महमूद को फिल्मों मे गाने के मौके भी कम मिलने लगे थे। 1971 में फिल्म वो दिन याद करो के लिए उन्होंने अपना आखिरी गाना गाया था। ये अलग बात है की एक लम्बे समय तक रिलीज़ के लिए तरसती के आसिफ की फिल्म लव एंड गॉड में भी उनका एक गाना था जो 1986 में अंतत सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी। तलत महमूद को एक बार फिर से जिन्दा करने को जरुरत इसलिए भी है क्योंकि फिल्म जगत में ग़ज़ल गायिकी अपनी अंतिम साँसे गिन रहा है।