जब एक मजदूर ने सुझाया ‘धरती के लाल’ का यादगार दृश्य…


हिंदी फिल्मी दुनिया को सपनों की दुनिया जैसा मायावी बनाकर बड़े पर्दे पर पेश करने वाले अनेक चेहरे हैं…उनकी कहानियां भी फिल्मों जैसी ही रोचक अजूबी और मायावी हैं… आइए शामिल होते हैं ऐसी ही कुछ पुरानी यादों में…वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार शर्मा के लेख में ‘धरती के लाल’ फिल्म की एक कहानी ….


अजय कुमार शर्मा
मनोरंजन Updated On :

नई दिल्ली। ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा निर्देशित फिल्म ‘धरती के लाल’ के मुख्य पात्र के रूप में बलराज साहनी ने बहुत सार्थक अभिनय किया था। उन्होंने अपनी इस फिल्म से जुड़े हैं एक रोचक अनुभव को अपनी आत्मकथा में साझा किया है।

यह अनुभव इस फिल्म के एक महत्वपूर्ण दृश्य जिसमें बूढ़ा किसान भूख के कारण अपना दम तोड़ रहा था से जुड़ा हुआ है। शूटिंग के लिए कोलकाता के फुटपाथ और सड़क का सेट स्टूडियो के अंदर ही लगाया गया था। पहले कैमरा दूर रखकर ‘ लोंग शॉट’ लिया गया। लेकिन लॉग शॉट लेते समय सहायक निर्देशक और कैमरा विभाग की लापरवाही से फुटपाथ पर लगे बिजली के खंभों की रोशनी ना जलाई गई। इस गलती का एहसास तब हुआ जब क्लोजअप के लिए कैमरा किसान के निकट लाया गया। अब क्या किया जाए… तब तक स्टूडियो की बत्तियां बुझाई जा चुकी थीं।

अंधेरी रात में बूढ़े किसान के चेहरे पर रोशनी डालने का बहाना एकमात्र बिजली के खंभे की रोशनी की थी जो कि जलाई ही नहीं गई थी। सब एक दूसरे को दोष देने लगे। अगर यह दृश्य दोबारा लिया जाता तो तीन-चार घंटे और लगते और पूरी शिफ्ट बर्बाद हो जाती और खर्च भी बहुत होता, जबकि फिल्म ‘इप्टा’ द्वारा सामूहिक तौर पर बहुत सस्ते में बनाई जा रही थी। तभी लाइटिंग विभाग के एक मजदूर ने सुझाव पेश किया कि शुरू में किसान के क्लोजअप को अंधेरे में रखा जाए और जब वह बोल रहा हो तो उसके चेहरे पर दूर से आ रही किसी मोटर की बत्ती की रोशनी डाली जाए और ज्यों ज्यों वह बेहोशी के आवेग में आता जाए रोशनी बढ़ती जाए। आखिर, उसके मरते ही शॉट कट करके किसी और एंगल से दिखाया जाए कि इधर किसान का परिवार रोता-कलपता हुआ उसकी लाश पर गिर पड़ता है और उधर एक चमकती हुई मोटर जैसे उनकी मुसीबत पर हंसती हुई बिल्कुल पास से गुजर जाती है। यह सुनकर सब आश्चर्यचकित रह गए और अश अश कर उठे। अंत में ऐसा ही किया गया।

‘धरती के लाल’ का संगीत पंडित रविशंकर ने दिया था। उपर्युक्त दृश्य के पीछे उन्होंने केवल एक बांसुरी की आवाज भरी मानो जैसे मरने के बाद किसान की आत्मा सचमुच अपने खेत की ओर उड़ कर चली गई हो। इस प्रकार यह फिल्म का एक अत्यंत मार्मिक दृश्य बन गया। पढ़े- लिखे लोगों की गलती से पैदा हुई अड़चन को एक मजदूर ने कला में बदल यादगार बना दिया था।
चलते चलते…
बलराज साहनी को अपने समय में एक स्टार का रुतबा हासिल था लेकिन वह हमेशा आम लोगों से मिलने जुलने में खुशी महसूस करते थे। अपनी पुस्तक ‘यादें’ में उन्होंने इस बारे में विस्तार से लिखा भी है। उनके दोस्तों में रावलपिंडी के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता योगीनाथ का बेरोजगार भतीजा था तो कनेरी गुफा में शौकिया गाइड का काम करने वाला महात्रे भी। अंधेरी की चाल में में रहने वाली सीता थी जिसे उन्होंने अपनी बहन बनाया और उससे राखी बनवाने उसकी चाल तक जाते रहे तो ओम प्रकाश नाम का पैर कटा फौजी भी है जिसके साथ वे उसके घर उसकी मां से मिलने चंडीगढ़ गए। समाज के प्रति उनकी इसी प्रतिबद्धता के चलते उन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था जिसे उन्होंने बड़ी विनम्रता से अस्वीकार कर दिया था।