ऋषि कपूर और जितेंद्र की दोस्ती के बीच दरार की शुरुआत साल 2003 में हुई थी जब ऋषि कपूर ने जितेंद्र की बेटी एकता कपूर की फिल्म कुछ तो है में काम करने के लिये अपनी हामी भरी थी। फिल्म में उनका रोल बड़ा नहीं था और महज दस दिनों की शूटिंग के लिए उनकी जरुरत थी। ये वो दौर था जब ऋषि कपूर के पास ज्यादा काम नहीं था लिहाजा उन्होंने रोल के लिए अपनी हां तो कह दी लेकिन जब वो शूटिंग लोकेशन पर पहुंचे तब उनको लगा की उनसे भारी गलती हो गयी है। उनकी आँखों के सामने टीम ने फिल्म को ओवरशूट किया, उसके बाद कई सीन्स को रीशूट किया, बीच में ही फिल्म के निर्देशक अनुराग बासु को निकाल दिया गया, फिर बारी आई कैमरामैन की और उनको भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इंतेहा तब हो गई जब ऋषि कपूर के किरदार को पूरी तरह से बदल दिया गया।
ऋषि कपूर के किरदार को एक पॉजिटिव किरदार से बदल कर फिल्म का मुख्य विलेन बना दिया गया। जब ऋषि कपूर को लगा की पानी सर के उपर से बहने लगा है तब उन्होंने एकता को समझाया की फिल्में इस तरह से नहीं बनती है। साथ ही साथ उन्होंने ये भी बताया की फिल्म की यूनिट में अनुशासन पूरी तरह से नदारद है और किसी को पता नहीं नहीं है की क्या करना है।
इस वाक्या के कुछ दिनों के बाद ऋषि कपूर के प्रोड्यूसर मित्र राहुल रवैल के भतीजे की शादी थी। जिस दिन शादी थी उसी दिन कुछ तो है की शूटिंग भी मेहबूब स्टूडियो में निर्धारित थी। शूटिंग के लिये ऋषि कपूर की जरुरत सिर्फ शाम 7 बजे तक थी। ऋषि कपूर को लगा की उनके पास इतना वक़्त होगा की घर जाकर वो अच्छी तरह से तैयार होकर शादी में पहुंच जायेंगे लेकिन एन वक़्त पर उनको बताया गया की शूटिंग शेड्यूल बदल गया है और उस दिन उनको रात में २ बजे तक मड आइलैंड में शूटिंग के लिये हाजिर रहना पड़ेगा। ये सब कुछ एकता कपूर की ज्योतिष सलाहकार सुनीता मेनन के कहने पर हो रहा था।
जब ऋषि कपूर ने इसका विरोध किया तब एकता के पिता जितेंद्र ने उनको एडजस्ट करने के लिए कहा और ये कह कर मना भी लिया की पंजाबी रिति रिवाज में शादिया देर तक चलती है। अपने दोस्त की सलाह ऋषि कपूर ने मान तो जरूर ली लेकिन जब वो मड आइलैंड के सेट पर पहुंचे तो वहा का नज़ारा कुछ अलग नही था और सब कुछ पहले जैसा ही था। पहला शॉट उनका रात 11 बजे हुआ और सेट से निकलते निकलते 2.30 बज गए। जब वो शादी के लिए पहुंचे तब तक सब कुछ ख़त्म हो चुका था। राहुल रवैल, ऋषि की हरकत से बेहद खफा हुए। ऋषि कपूर का पारा सातवे आसमान पर तब पहुंचा जब फिल्म की रिलीज के बाद उस पुरे सीन को फिल्म से निकाल दिया गया था।
फिल्म के प्रमोशन के दौरान एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी बेबाकी दिखाई और साफ साफ कह दिया की फिल्म की स्क्रिप्ट कन्फ्यूज्ड थी और उनको फिल्म की यूनिट की ओर से ठीक से निर्देश नहीं मिले। उन्होंने यह भी कह दिया की कुछ तो है की पूरी टीम टेलीविज़न इंडस्ट्री से आयी थी और फिल्म बनाने को लेकर उनके पास कोई विज़न नहीं था। ऋषि के इस इंटरव्यू को पढ़ कर जितेन्द्र आग बबूला हो उठे और उन्होंने तुरंत ऋषि कपूर को फ़ोन लगाया। ऋषि ने उनको यही बोला की लोग को ये बताना जरुरी था की उम्र के इस पड़ाव में मैंने ये रोल आखिर क्यों किया। जब ऋषि ने यह पूरा वाक्या अपने एक और जिगरी दोस्त राकेश रोशन को बताया तब राकेश ने ऋषि का समर्थन किया और माना की जितेंद्र को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
किताब में ऋषि ये भी लिखते है की 2003 का मनमुटाव अब दोनों के ही अंदर नहीं है और जब भी एक दूसरे से भी मिलते है तो सौहार्दपूर्ण तरीके से मिलते है। अपनी किताब मे ऋषि आगे ये भी लिखते है कि नीतू सिंह और उनको वो आज भी घर पर बुलाते है लेकिन मिलने की फ्रीक्वेंसी जरूर कम हो गयी है क्योंकि दोनों की दुनिया अब बदल गयी है।