नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के दोहरे गठन के विवाद में सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा के खिलाफ दर्ज जालसाजी और धोखाधड़ी के कथित मामले में पंजाब की होशियारपुर अदालत के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, होशियारपुर के समक्ष आपराधिक शिकायत की कार्यवाही पर नोटिस जारी किया और कार्यवाही पर रोक लगा दी। होशियारपुर निवासी बलवंत सिंह खेरा ने 2009 में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आपराधिक शिकायत दर्ज की थी, जिसमें एसएडी पर दो अलग-अलग संविधान प्रस्तुत करने का आरोप लगाया गया था। एक गुरुद्वारा चुनाव आयोग (जीईसी) के साथ और दूसरा भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) के साथ एक राजनीतिक दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए।
याचिकाकर्ता- सुखबीर सिंह बादल, प्रकाश सिंह बादल और दलजीत सिंह चीमा- ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसने शिकायत को रद्द करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
सुखबीर सिंह बादल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आरएस चीमा पेश हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता के.वी. विश्वनाथन प्रकाश सिंह बादल की ओर से पेश हुए, जिनकी सहायता करंजावाला एंड कंपनी के अधिवक्ताओं ने की। दलजीत सिंह चीमा की ओर से अधिवक्ता संदीप कपूर पेश हुए। यह याचिका करंजावाला एंड कंपनी ने दायर की थी। अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया कि धार्मिक होना धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है और केवल इसलिए कि एक राजनीतिक संगठन गुरुद्वारा समिति का चुनाव लड़ रहा है इसका मतलब यह नहीं है कि वह धर्मनिरपेक्ष नहीं है। इसलिए चुनाव आयोग और जीईसी (गुरुद्वारा चुनाव आयोग) के समक्ष दायर पार्टी के संविधान पर जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपों के साथ आपराधिक मामले का कोई आधार नहीं है।
आपराधिक शिकायत इस आरोप पर आधारित थी कि पार्टी ने एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने का दावा किया है और चुनाव आयोग के समक्ष दायर अपने संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन करने की घोषणा की है, जबकि वह एक धार्मिक निकाय, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के लिए चुनाव लड़ती है, धार्मिक पार्टी होने के नाते।
सुखबीर द्वारा दायर याचिका में कहा गया है- उच्च न्यायालय इस बात की सराहना करने में विफल रहा कि अधिनियम (जन प्रतिनिधित्व अधिनियम) की धारा 29-ए (5) के संदर्भ में अभिव्यक्ति ‘धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रति निष्ठा’ को परिभाषित नहीं किया गया है और धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है, इस पर एक व्यक्तिपरक ²ष्टिकोण है। धार्मिक होने को अधिनियम का विरोधाभासी या दंडनीय अपराध नहीं बनाता है।