
नई दिल्ली। जब भी किसी अपराधी को फांसी की सजा सुनाई जाती है तो तमाम कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करनी पड़ती हैं। इसी प्रक्रिया में एक है फांसी के लिए रस्सी मंगाना। आमतौर पर लोग फंदे से लटकर ख़ुदकुशी कर लेते हैं पर किसी अपराध में साबित हुए दोषी को ऐसे किसी रस्सी से फांसी नहीं दी जा सकती। देश में एकमात्र बिहार के बक्सर का सेंट्रल जेल में कैदियों के बनाए गए रस्सी को ही इसके इस्तेमाल में लाया जाता है।
बक्सर का सेंट्रल जेल एक बार फिर सुर्ख़ियों मे है। पिछली दफा बक्सर सेंट्रल जेल में बनी रस्सी से निर्भया के दोषियों को दिल्ली में फांसी दी गई थी। इस बार दिल्ली से ही सटे यूपी के मथुरा में इस रस्सी के इस्तेमाल की प्रक्रिया की जा रही है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा के बहुचर्चित बामनखेड़ी कांड की गुनहगार शबनम के डेथ वारंट पर कभी भी हस्ताक्षर हो सकता है।
शबनम को मथुरा जिला कारागार में फांसी पर लटकाया जा सकता है। इसको लेकर कथित तौर पर तैयारियां शुरू हो गईं हैं लेकिन बक्सर सेंट्रल जेल को अभी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि इसको लेकर बक्सर सेंट्रल जेल को कोई आधिकारिक सूचना नहीं है। बक्सर के जेल अधीक्षक राजीव कुमार ने बताया कि उन्हें इस बाबत कोई सूचना नहीं है।
शबनम की फांसी की संभावनाओं के बीच उसके बेटे ताज ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से अपनी मां की फांसी की सजा को माफ करने की अपील की है। आपको बता दें कि 15 अप्रैल 2008 को शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने माता पिता समेत 7 लोगों की कुल्हाड़ी से निर्मम हत्या कर दी थी। निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक शबनम को फांसी की सजा सुनाई गई। राष्ट्रपति ने भी शबनम की सजा को बरकरार रखा है।
अब बात करते हैं बक्सर सेंट्रल जेल की। सवाल भी स्वाभाविक है कि आखिर फांसी देने के लिए इसी जेल से ही रस्सी क्यों मंगाई जाती है। अब तक राज्य सरकारों की विशेष मांग पर बक्सर सेंट्रल जेल ने सन् 1995 में केंद्रीय कारागार भागलपुर, 1981 में महाराष्ट्र, 1990 में पश्चिम बंगाल, 2003 में आंध्र प्रदेश, 2004 में पश्चिम बंगाल, 2012 में मुंबई और 2013, 2019 में दिल्ली को यह रस्सी दी है।
बक्सर में फांसी की रस्सियां 1930 से बनाई जा रही हैं। यहां तक कहा जाता है कि यहां बनी रस्सी से जब भी फांसी दी गई तो वो कभी फेल नहीं हुई। दरअसल ये एक खास तरह की रस्सी होती है, इसे मनीला रोप या मनीला रस्सी कहते हैं। माना जाता है कि इससे मजबूत रस्सी होती ही नहीं। इसीलिए पुलों को बनाने, भारी बोझों को ढोने और भारी वजन को लटकाने आदि में इसी का इस्तेमाल किया जाता है।
चूंकि ये रस्सी सबसे पहले फिलीपींस के एक पौधे से बनाई गई थी, लिहाजा इसका नाम मनीला रोप या मनीला रस्सी पड़ा। ये खास तरह की गड़ारीदार रस्सी होती है। पानी से इसपर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ये पानी को सोख लेती है। इससे लगाई गई गांठ पुख्ता तरीके से अपनी पकड़ को दमदार बनाकर रखती है।
बक्सर जेल में इस तरह की रस्सी बनाने वाले एक्सपर्ट हैं। यहां के कैदियों को भी इसे बनाने का हुनर सिखाया जाता है। यहां के खास बरांदा में इसे बनाने का काम किया जाता है। पहले तो रस्सी बनाने के लिए जे-34 कॉटन यार्न खासतौर पर भटिंडा पंजाब से मंगाया जाता था लेकिन अब इसे गया या पटना से ही प्राइवेट एजेसियां सप्लाई करती हैं।
बक्सर का सेंट्रल जेल के करीब गंगा नदी के काफी करीब है और इसीलिए वहां से आने वाली आर्द्रता भी इसकी मजबूती और बनावट पर खास असर डालती है। जेल में इसका आर्डर पहुंचते ही उस पर काम शुरू हो जाता है। आमतौर पर एक फांसी के लिए छह मीटर लंबाई की रस्सी का इस्तेमाल होता है लेकिन कभी कभी जिसे फांसी दी जाने वाली है, उसकी लंबाई के हिसाब से भी रस्सी की लंबाई तय होती है।
इस रस्सी की कीमत एक हजार रुपए से लेकर दो हजार रुपए के बीच बैठती है, लेकिन इस रस्सी में जो भी सामान लगता है, उसकी कीमत बढ़ गई है, लिहाजा इस बार ये रस्सी मंहगी हो गई है। माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है तो 80 किलो वजन वाले शख्स को ये आसाम से लटका सकती है। सबसे ख़ास बात ये है फांसी के लिए रस्सी यहां के कैदी ही तैयार करते हैं। हालांकि अब मशीनों का भी इसकी तैयारी में इस्तेमाल किया जाने लगा है।
फांसी के लिए रस्सी को और खास तरीके से बनाते हैं। इसमें मोम का भी इस्तेमाल करते हैं। इसको बनाने में सूत का धागा, फेविकोल, पीतल का बुश, पैराशूट रोप आदि का भी इस्तेमाल होता है। जेल के अंदर एक पावरलुम मशीन लगी है, जो धागों की गिनती कर अलग-अलग करती है। एक फंदे में 72 सौ धागों का इस्तेमाल होता है।