बंगाल: महिलाओं ने जलकुंभी से बनाई राखी


भौमिक ने कहा, “जलकुंभी के उन्हीं पौधों से राखी बनाई जा सकती है जिनके तनों की लंबाई कम से कम ढाई फीट हो। पौधों को धोया जाता है, पत्तियां अलग की जाती हैं और तनों को सुखाया जाता है। इसके बाद तनों के भीतर के रेशे को निकाल कर राखी बनाई जाती है।”


भाषा भाषा
देश Updated On :

कृष्णगंज। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) से जुड़ी महिलाओं ने जलकुंभी के फूलों से पर्यावरण अनुकूल राखियां बनाई हैं। 

ईको क्राफ्ट नामक गैर सरकारी संगठन के सचिव स्वप्न भौमिक ने कहा कि अपनी तरह की इस अनोखी पहल में राखियों को रंगने के लिए रासायनिक रंगों का इस्तेमाल नहीं किया गया। 

उन्होंने कहा कि माझदिया क्षेत्र में एक स्वयंसेवी संगठन के सदस्यों ने ऐसी चार सौ से अधिक राखियां बनाई हैं।

भौमिक ने कहा कि देवाशीष बिस्वास नामक कारीगर ने तालाबों से जलकुंभी एकत्र की और उन्होंने महिलाओं को राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया। 

उन्होंने कहा, “जलकुंभी के उन्हीं पौधों से राखी बनाई जा सकती है जिनके तनों की लंबाई कम से कम ढाई फीट हो। पौधों को धोया जाता है, पत्तियां अलग की जाती हैं और तनों को सुखाया जाता है। इसके बाद तनों के भीतर के रेशे को निकाल कर राखी बनाई जाती है।”

भौमिक ने कहा कि हावड़ा जिले में रेलवे मजदूर संघ ने सौ जलकुंभी राखियों का ऑर्डर दिया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा हुगली जिले में स्थित बंदेल और नदिया जिले में 150-150 राखियां भेजी गई हैं।

उन्होंने कहा कि आकार के हिसाब से राखियों मूल्य पांच, दस और 15 रुपये निर्धारित किया भौमिक ने कहा कि इससे पहले एनजीओ ने जलकुंभी से थैले और रस्सियां बनाई थी।