अलविदा-2020ः प्रदर्शनों के साथ-साथ चीनी घात और अमेरिका से गहरी दोस्ती का बना गवाह


गत दो सालों से देश में नये साल का आगाज और समापन दोनों नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों से हो रहा है। साल-2019 का समापन और 2020 का आगाज भी दिल्ली सहित देश के कई शहरों में नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से हुआ था और साल 2020 के समापन और 2021 के प्रारम्भ के साथ भी कुछ ऐसी ही जुड़ गया है।


मंज़ूर अहमद मंज़ूर अहमद
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नई दिल्ली। साल- 2020 भारत सहित दुनिया के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा। इस साल कोरोना से जूझते संकट के बीच दुनिया के देश कई राजनीतिक घटनाक्रमों का गवाह बने जिसका दुनिया की राजनीति पर एक असर डाला। साल 2020 जहां देश में नागरिकता कानून विरोध प्रदर्शनों के साथ-साथ दूसरी कई चुनौतियों से शुरू हुआ वहीं विदेशों से रिश्तों के मामले में भी यह साल काफी उतार चढ़ाव भरा रहा। साल-2020 में चीन ने जहां भारत के साथ घात किया वहीं अमेरिका के साथ देश के रिश्तों में नई उंचाई आई। कई दशकों से लंबित राम मंदिर की नींव पड़ना साल 2020 की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक रहा। इसके अलावा साल-2020 में देश की प्रमुख पार्टी BJP का जहां कई राज्यों में मजबूती के साथ उभार हुआ वहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस कई राज्यों में सत्ता में आने के लिए संघर्ष करती दिखी। आईये नजर डालते 2020 की महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं जो देशवासियों को प्रभावित की-

अमेरिका-भारत रिश्तों में मिल का पत्थर बना 2020
साल-2020 भारत-अमेरिका के रिश्तों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रहा। 24 को फरवरी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो दिनों के दौरे पर भारत दौरे आए। इस दौरे में उनके स्वागत के लिए अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में “नमस्टे ट्रम्प” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरे ने भारत और अमेरिका के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए और दोनों देशों के बीच राजनीतिक और सामरिक रिश्तों में मजबूती आई।

चीनी घुसपैठ बना चुनौती
साल-2020 में भारत और चीन के बीच का रिश्ता काफी तल्खी भरा रहा। अप्रेल-मई के दौरान पूर्वी लद्दाख में हुई चीनी घुसपैठ ने मोदी सरकार को बैकफुट पर ला दिया। इस दौरान चीनी हरकतों से दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया और किसी भी स्थिति से निपटने के लिए दोनों देशों के सेनाएं आमने-सामने खड़ी हो गईं। हालांकि चीनी सेना अभी भी भारतीय क्षेत्र का अतिक्रमण की हुई है जिसको समाप्त कराने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और कुटनीतिक वार्ता जारी है।

केजरीवाल तीसरी बार बने दिल्ली के सीएम
साल 2020 का शुरुआत ही नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन के साथ हुआ था। इसी बीच दिल्ली में चुनावी बिगुल बजा और फरवरी 2020 में विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती और अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में BJP को आठ सीटें और कांग्रेस को शून्य मिली थी।

मध्य प्रदेश में सियासी उठापटक
2020 के मार्च आते-आते मध्य प्रदेश में एक नया सियासी उठापटक शुरू हुआ। कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई में कांग्रेस के 25 विधायकों ने बगावत कर इस्तीफा दे दिया जिसके बाद कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान फिर से सत्ता पर काबिज हो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कोरोना संकट के बीच ही 25 विधायकों की खाली हुई सीटों पर उपचुनाव में बीजेपी 19 सीटें जीत गई।

जेपी नड्डा के हाथों आई बीजेपी की कमान
2019 चुनाव के बाद मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने पर मोदी के बाद पार्टी में दूसरे कद के सबसे प्रभावशाली नेता अमित शाह को गृह मंत्री बनाया गया जिसके बाद भारतीय जनता पार्टी की कमान वरिष्ठ नेता जगत प्रकाश नड्डा को सौंप दी गयी। उन्होंने अपना ये पदभार 6 अप्रैल 2020 को बीजेपी के स्थापना दिवस पर संभाला। नड्डा के नेतृत्व में भाजपा ने बिहार चुनाव जीता साथ ही गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भी कामयाबी हासिल की।

राम मंदिर निर्माण की नींव पड़ी
भारतीय जनता पार्टी के शुरूआती दिनों से ही राजनीतिक एजेंडों में सबसे ऊपर रहने वाला राम मंदिर प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में पूरा हुआ। वैसे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी कानूनी अड़चनें तो पिछले साल खत्म हो गई थीं, लेकिन अन्य कारणों से मंदिर निर्माण की शुरुआत नहीं हो पाई थी। 2020 के 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण की नींव रखी। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरु हो गया है।

बिहार चुनाव में दो नये चेहरों का उदय
कोरोना संकट के बीच बिहार में हुए 243 सीटों पर विधानसभा चुनाव हुए जिसमे एनडीए गठबंधन 125 सीटों के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। यह चुनाव बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए एक अग्नि परीक्षा थी जिसमे वो सफल हुए। नीतीश कुमार ने सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इस चुनाव में राजद के तेजस्वी यादव बड़े नेता के तौर पर उभरे। उनके तीखे प्रचार और सरकार पर सवाल करने की शैली ने बिहार में बड़े नेता के तौर पर स्थापित कर दिया। इसी चुनाव में एनडीए से बाहर होकर चिराग पासवान ने अलग ताल ठोकी। हालांकि उनकी पार्टी चुनाव में कोई खास कमाल कर नहीं पायी, फिर भी युवा नेता के तौर पर उन्होंने अपने पिता राम विलास पासवान की मृत्यु के बाद जगह जरूर बना ली।

बीजेपी अकाली दल की 22 साल की दोस्ती में दरार
इस साल लगभग 22 सालों से चली आ रही भाजपा और अकाली दल की दोस्ती टूट गई। अकाली दल कृषि विधेयक के नाम पर एनडीए से अलग हो गया। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार सितंबर माह में 3 नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद अब वो कानून बन चुके हैं, लेकिन किसानों को कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान होगा। इसी कृषि कानूनों के विरोध में अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने 17 सितंबर 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया। और इस तरह भाजपा और अकाली दल का दशकों पुराना रिश्ता खत्म हो गया।

धारा 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में हुआ पहला चुनाव
आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट कौंसिल (डीडीसी) का चुनाव होना, साल 2020 की एक प्रमुख राजनीतिक घटनाक्रम है। धारा 370 हटने के बाद यह पहला मौका था जब वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हुई है। इस चुनाव में वहां की आम जनता ने बढ़ चढ़कर भाग लिया और घाटी में एक बार फिर से लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हुई। इस चुनाव में बीजेपी ने घाटी में शानदार प्रदर्शन किया और कमल खिलाने में सफल रही। इस चुनाव में भाजपा के सामने गुपकर गठबंधन था जिसमें नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सहित दूसरे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा और सबसे अधिक सीटें प्राप्त की। इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी।

किसान आंदोलन की धधक से दिल्ली बेहाल
गत दो सालों से देश में नये साल का आगाज और समापन दोनों नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों से हो रहा है। साल-2019 का समापन और 2020 का आगाज भी दिल्ली सहित देश के कई शहरों में नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से हुआ था और साल 2020 के समापन और 2021 के प्रारम्भ के साथ भी कुछ ऐसी ही जुड़ गया है। क्योंकि इस बार भी देश के किसानों ने नये कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सरकार से कई दौर की वार्ता के बाद भी किसानों और सरकार में अभी भी सहमती नहीं बन पाई है।

केन्द्र सरकार के द्वारा सितंबर माह में लाया गया 3 नए कृषि विधेयक जो अब कानून बन चुके हैं, ने एक तरफ तो भाजपा का अकाली दाल के साथ 22 सालों की दोस्ती तोड़ दी, तो दूसरे तरफ देशभर के किसानों को सड़क पर विरोध में उतार दिया। किसान अब कृषि बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाने का भी डर है। कृषि कानूनों के खिलाफ अक्टूबर के अंत में पंजाब में शुरू हुआ आंदोलन दिल्ली की चौखट तक आ पहुंचा है। किसानों ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघु और टिकरी बॉर्डर को कब्जे में ले लिया है। किसानों और केंद्र के बीच सातवें दौर की वार्ता के बावजूद कृषि कानूनों पर गतिरोध कायम है।