अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में सीएजी आमदनी-चढ़ावे और खर्च की जांच करेगी। दरगाह के खादिमों की दोनों अंजुमनों की जांच अब सीएजी करेगी। सीएजी जांच के लिए केंद्र सरकार ने इसको लेकर आदेश जारी किया है। वहीं इस सीएजी जांच के लिए राष्ट्रपति से भी मंजूरी ली जा चुकी है। दरअसल, निजी संस्थाओं की सीएजी जांच के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया ने हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने की जानकारी दी।
दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट और अंजुमनों के अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह को जानकारी दी और आर्डर कॉपी दिखाई। हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति की मंजूरी और केंद्र सरकार के आदेश को रिकॉर्ड पर लाने को कहा है।आदेश जारी होने के बाद जल्द ही जांच शुरू होगी।
अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर खादिमों की दो अंजुमन यानी संस्थाएं हैं। दरगाह में दान पात्र में चढ़ावे की रकम सरकार की देखरेख में संचालित होने वाली दरगाह कमेटी को मिलती है। जायरीनों यानी श्रद्धालुओं को दरगाह में दर्शन का काम खादिम करते हैं। सैकड़ों की संख्या में दरगाह से जुड़े खादिमों को जियारत के लिए आने वाले श्रद्धालुओं से पैसे मिलते हैं। अंजुमनों को कितने पैसे मिलते हैं, उनका रिकॉर्ड किस तरह तैयार किया जाता है। खर्च कैसे किया जाता है।
खादिमों को जो पैसे दिए जाते हैं, उनमें से दरगाह पर कितना पैसा खर्च किया जाता है। वेलफेयर के लिए कितने काम होते हैं और जायरीनों यानी श्रद्धालुओं की कोई आर्थिक मदद की जाती है या नहीं, सीएजी अब इसकी जांच करेगा। खादिमों की अंजुमने रजिस्टर्ड हैं या नहीं और क्या हुआ नियमों के मुताबिक ही संचालित होती हैं, इसकी भी जांच होगी।क्या अंजुमनों को जायरीनों से पैसे लेने का अधिकार है या नहीं, इसकी भी जांच होगी। फिलहाल पिछले पांच साल की आमदनी-खर्च और चढ़ावे का आडिट होगा। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार के वित्त विभाग ने आदेश भी जारी कर दिया है। दोनों अंजुमनों के पिछले पांच साल की आमदनी और खर्च की जांच होगी
सूत्रों के मुताबिक सीएजी के दो अफसरों की टीम को जांच व आडिट के लिए नामित भी कर दिया गया है। सीएजी आमतौर पर निजी संस्थाओं की जांच नहीं करती है। सीएजी सिर्फ सरकारी संस्थाओं, सरकारी मदद से चलने वाली संस्थाओं और सार्वजनिक धन इस्तेमाल होने वाली संस्थाओं की ही जांच करता है। निजी संस्थाओं की जांच के लिए राष्ट्रपति का आदेश जरूरी होता है।
केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय ने पिछले साल 15 मार्च को दरगाह की अंजुमनों को सेक्शन बीस सी के तहत नोटिस जारी किया गया था। यह नोटिस केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह पर जारी किया गया था। नोटिस के जरिए अंजुमनों की आमदनी और खर्च की जांच सीएजी से कराए जाने पर जवाब मांगा गया था।
सूत्रों के मुताबिक गृह मंत्रालय को यहां विदेशी फंडिंग होने और जियारत के बदले मिलने वाली रकम को गलत कामों में इस्तेमाल किए जाने की शिकायत मिली थी। खादिमों की अंजुमनों ने राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह के नोटिस का जवाब दिया और साथ ही नोटिस कोदिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। अल्पसंख्यक मंत्रालय के नोटिस को पिछले साल 23 मई को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
नोटिस के जवाब और हाईकोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया कि खादिमों को जियारत यानी दर्शन कराने के बदले श्रद्धालु अपनी खुशी से बख्शीश यानी दक्षिणा देते हैं। इसी पैसे से खादिमों के परिवार का खर्च चलता है। खादिम दरगाह में सेवा भाव से काम करते हैं और श्रद्धालुओं की मदद करते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में कहा गया था कि राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना निजी संस्था की CAG जांच नहीं कराई जा सकती
हाईकोर्ट में यह भी कहा गया था कि नोटिस में किन्हीं विशेष बिंदुओं पर जवाब नहीं मांगा गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था। केंद्र सरकार की तरफ से कई तारीखों पर जवाब दाखिल नहीं किया गया। पिछले दिनों हुई सुनवाई में केंद्र सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि अंजुमनों की याचिका औचित्यहीन हो गई है क्योंकि इस मामले में राष्ट्रपति ने जांच को मंजूरी दे दी है और केंद्र सरकार ने आदेश भी जारी कर दिए हैं।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने इसकी कॉपी कोर्ट और याचिकाकर्ता के अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह को भी दिखाई। कोर्ट ने इसे रिकॉर्ड पर लाए जाने और आदेश की कॉपी याचिकाकर्ता अंजुमनों के अधिवक्ता को देने को कहा है। दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले में अब अगले हफ्ते सुनवाई होने की उम्मीद है। अंजुमनों की तरफ से अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नोटिस को चुनौती दी गई थी इस पर आदेश जारी हो चुका है। ऐसे में अंजुमनों को अब या तो अपनी याचिका में संशोधन करना होगा या फिर नई अर्जी दाखिल करनी होगी।