
नई दिल्ली। चीन के वुहान से निकला SARS-CoV-2 जिसे बाद में कोरोना वायरस का या Covid-19 नाम दिया गया अभी भी विश्व के लिए ख़तरा बना हुआ है। मौजूदा समय में भी भारत सहित कई देश इससे जूझ रहे हैं। हालांकि भारत में कोरोना वैक्सीन जरूर बन गई है और लोगों का टीकाकरण भी किया जा रहा है लेकिन हालात अभी भी सुधरे नहीं हैं। देश में आज भी रोजाना कोरोना के काफी मामले सामने आ रहे हैं। वुहान से निकला एक ऐसा वायरस जिसने दुनिया की रफ़्तार को ही थाम दिया।
साल 2020 का कोरोना काल दुनिया के लिए एक भयावह स्वरुप रहा जिससे न सिर्फ जान-माल को काफी नुकसान हुआ बल्कि विश्व की ही अर्थव्यवस्था एक तरह से क्षतिग्रस्त हो गई। आज भी लोग उसे एक बुरे सपने की तरह देखते हैं और सोचते हैं कि किस तरह से उन्होंने इस परिस्थिति का सामना किया। आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा बड़ा देश भारत भी कोरोना से अछूता नहीं रह पाया। इस वायरस की मार सबसे अधिक माध्यम और गरीब वर्ग के लोगों ने सही।
जब देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा तो लोगों की नौकरी चली गई और फिर शुरू हुआ देश की आजादी के बाद का सबसे बड़ा मानव प्रवास। नौकरी जाने, काम-धंधा बंद हो जाने से लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया। बड़े शहरों से लोग हजारों किलोमीटर दूर अपने घरों की ओर पैदल ही रवाना हो गए। लोगों के सामने यही सवाल था कि कोरोना से पहले भूख ही उन्हें मार डालेगी।
कोरोना वायरस से सम्पूर्ण विश्व में एक आपातकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। जहां एक तरफ भारत में लोग बेरोजगारी से जूझ रहे थे, वही दूसरी तरफ कोरोना वायरस ने सबका रोजगार भी छीन लिया। सबसे अधिक नुकसान मजदूरी करने वालों को हुआ। मजदूर बेरोजगारी से तंग आकर अपना जीवन यापन करने के लिए शहर से गांव पैदल ही लौट आए, क्योकि सारे परिवहन यातयात बंद कर दिए गए थे। गरीब परिवार को नाम मात्र का राशन मिला जिससे वह अपने परिवार का सही से भरण पोषण नही कर सका। कोरोना वायरस गरीबों के लिए एक विपदा बन कर आया, जिसे उन्होंने बड़े मुश्किल से काटा।
30 जनवरी 2020 को देश में पहले कोरोना संक्रमण की पुष्टि की गई थी। चीन के वुहान से लौटे एक छात्र में कोरोना के लक्षण मिलने के बाद उसकी जांच की गई तो उसे संक्रमित पाया गया। उस समय तक भारत में हालात बिल्कुल सामान्य थे। फ़रवरी में भी कुछ मामले बढ़े। 22 मार्च तक देश कोरोना मामलों की संख्या बढ़कर 500 पहुंच गई थी। दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात में शामिल होने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी काफी संख्या में लोग आए थे। इसके बाद वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए जबकि काफी संख्या में जमाती मरकज में ही रुके रहे।
मार्च में दिल्ली के दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात में शामिल होने हजारों लोगों में से 6 लोगों की अचानक कोरोना वायरस महामारी मौत होने से हड़कंप मच गया। मरने वाले सभी लोग तेलंगाना के थे। अब ये डर हो गया कि यहां जमात में शामिल होने आए सैकड़ों में लोगों में कोरोना फैल चुका है। इन जमातियों के जरिए अब तक न जाने कितने लोग अनजाने में कोरोना के चपेट में आ चुके होंगे और अभी आगे न जाने कितने लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण फैला देंगे।
देश में बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को 14 घंटों के लिए जनता कर्फ्यू लगाया। इसके दो दिन बाद ही पूरे देश में 21 दिनों के लिए सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की। ये एक आपातकाल जैसे हालात से निपटने के लिए किया गया था। पीएम ने अपने सम्बोधन में कहा था ‘ हिन्दुस्तान को बचाने के लिए, हिन्दुस्तान के हर नागरिक को बचाने के लिए, आपको बचाने के लिए, आपके परिवार को बचाने के लिए लोगों के घरों से बाहर निकलने पर पूरिम तरह से पाबंदी लगाई जा रहे है।’
कोरोना के बढ़ते केस के चलते पीएम मोदी ने 14 लॉकडाउन की अवधि बढाकर 3 मई की और ये भी कहा कि अगले एक सप्ताह तक सम्पूर्ण लॉकडाउन का कड़ाई से पालन कराया जाएगा। इसके बाद 17 मई को लॉकडाउन को बढ़ाकर 31 मई किया गया। सरकार ने 30 मई को लॉकडाउन के पांचवे चरण की घोषणा की। मार्च से मई तक देश के लोगों को कुल 54 दिन लॉकडाउन में रहना पड़ा।
इन सबके बीच जो सबसे बड़ी दिक्कत आई वो थी लोगों के सामने जीविका का संकट। देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई से हजारों की संख्या में लोग रोजगार जाने के बाद अपने घरों की ओर निकल चुके थे। यातायात के साधन बंद हो चुके थे ऐसे हालात में लोग साइकिल से और पैदल ही घर की तरफ निकल पड़े। इस दौरान फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने लोगों की काफी सहायता की और खुद के पैसों से बसों का इंतजाम कर लोगों को उनके घर पहुंचाया। इस दौरान पीएम ने भी 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा कर दी जो देश की GDP का दस प्रतिशत थी।