
प्रदीप सिंह
दुनिया में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 17 लाख पार कर गई है। दुनिया में कोरोना वायरस ने अब तक 1 लाख 2 हजार 734 लोगों की जान ले ली है। दुनिया के ताकतवर मुल्कों में शुमार अमेरिका, इटली और स्पेन में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है। यह वायरस चीन के वुहान से अन्य देशों में फैला है। दुनिया की दो महाशक्तियां अमेरिका और चीन कोरोना के सामने घुटना टेकते नजर आए।
कोरोना महामारी के चलते समूची मानवता एक अजीब भय के साए में जी रही है। हर तरफ मौत का आतंक है। दुनिया भर में मनुष्य को अवसाद में पहुंचाने वाली खबरें सुनने को मिल रही है। अधिकांश देशों में लॉकडाउन चल रहा है। लोग घरों में कैद हैं और बेहद जरूरी चीजों के साथ जी रहे हैं। आने वाले दिनों में आर्थिक मंदी की चर्चा के बीच बड़ी-बड़ी कंपनियों में छंटनी और लोगों की नौकरियां जाने की भी खबरें आने लगी है। असंगठित क्षेत्र पूरी तरह से बंद है तो अस्पतालों में लोगों के भर्ती होने और जान गंवाने की सूचनाएं विचलित करने वाली है। वैश्विक स्तर पर जहां मनुष्य सांस दबाए दुबका है वहीं प्रकृति के राहत की सांस लेने की खबर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है।
देश-विदेश की मीडिया में पर्यावरण,पानी और हवा के स्वच्छ होने पर बहस शुरू है। कहा जा रहा है कि कोरोना महामारी से मानवता भले ही आक्रांत है लेकिन प्रकृति चैन की सांस ले रही है। विभिन्न धर्मों के धर्मगुरू इसे मनुष्य को “प्रकृति का संदेश” बता कर सुधरने की नसीहत दे रहे हैं। पर्यावरणविद विकास के मौजूदा ढांचे को प्रकृति विरोधी बताते हुए समय रहते इस पर पुनर्विचार करने की गुजारिश कर रहे हैं। यह तो सच है कि लॉकडाउन की इस प्रक्रिया में खुली आंखों से भी प्रकृति के रंग-रूप में निखार नजर आता है। आसमान साफ है, वन्यजीव आबाध विचरण कर रहे हैं,पक्षियों के कलरव शहरों-महानगरों तक में सुनाई दे रही है। भारत में भी गंगा-यमुना के साफ होने का दावा किया जा रहा है। इस लेख में हम इसी बात की पड़ताल करने की कोशिश करेंगे कि जो दावे किए जा रहे हैं,क्या वैज्ञानिक तथ्य-तर्क पर खरे उतरते हैं?
वैश्विक महामारी के प्रकोप के बीच प्रकृति के नवयौवना रूप की खबरें काफी सुखद है। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, इसकी पड़ताल हम हाल ही में वेनिस से आई एक खबर से करेंगे। इटली का प्रसिद्ध शहर वेनिस अपने सौंदर्य के साथ नहरों और नदियों के लिए जाना जाता है। कभी इन नहरों में हंस और डॉल्फिन मछलियां तैरती रहती थीं।
17 मार्च, 2020 को मोटरबोट यातायात के ठहराव के कारण वेनिस नहर में एक समुद्री पक्षी तैरता दिखा। कोरोनो वायरस के भीषण प्रकोप से जूझ रहे इटलीवासियों ने इसे बेहद सकारात्मक अर्थों में लिया। खबर फैली की लॉकडाउन के बाद वेनिस की नहरों में डॉल्फिन को देखा गया। इसी दौरान एक ट्वीट में दावा किया गया है कि हंसों ने वेनिस की नहरों में ‘वापसी’ की है। लेकिन यह सच नहीं है। कुछ प्रजाति के पक्षियों का लंबे समय से वेनिस के नहरों में बसेरा है। लेकिन लॉकडाउन के बाद इस क्षेत्र में प्रदूषण कम हुआ है। साफ पानी और स्वच्छ हवा में वृद्धि दर्ज की गई है। वेनिस के मेयर के कार्यालय के प्रवक्ता ने सीएनएन से बातचीत में कहा कि पानी अब साफ दिखता है क्योंकि नहरों पर ट्रैफिक कम है, जिससे तलछट नीचे रह सकती है। लेकिन निरंतर दुखद खबरों के बीच सकारात्मक झूठी खबरें भी लोगों के चिंता को कम करती है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी इटली में लोम्बार्डी क्षेत्र के ऊपर वायु प्रदूषण की मात्रा में काफी गिरावट आई है। कम यातायात और पेट्रो ईंधन का ना के बराबर उपयोग हवा को विराम दे रहा है। न्यूयॉर्क में शोधकर्ताओं का मानना है कि क्षेत्र में कार्बन मोनोऑक्साइड के उत्सर्जन के स्तर को 50 फीसद तक कम कर दिया है।
विश्व भर में हवा-पानी-प्रकृति के सेहत में सुधार के बीच ओजोन परत में गुणात्मक सुधार हुआ है। कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस के कारण अधिकांश देशों में हुए लॉकडाउन के कारण इस बार ओजोन परत फिर से हील हो रही है। यह बहुत सुखद है। ओजोन सूर्य की पैराबैंगनी किरणों से बचाने के लिए सन स्क्रीन की तरह काम करती है। वायुमंडल में लगभग 10 किलोमीटर से 40 किलोमीटर के बीच इसकी परत रहती है। ओजोन सूर्य के उच्च आवृत्ति के प्रकाश की 93 से 99 प्रतिशत मात्रा अवशोषित कर लेती है।
हिमांशु भट्ट कहते हैं कि, पृथ्वी पर निर्मित रासायनिक गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुंचाती हैं। हर बार ठंड में अंटार्कटिका के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत का होल बड़ा हो जाता है। यह मौसम और रासायनिक उत्सर्जन स्थितियों के कारण होता है, लेकिन पिछले साल अंटार्कटिका के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत के होल में रिक़र्ड स्तर पर कमी देखी गई थी। नासा और अमेरिका की नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों का कहना था कि 1982 के बाद से इस 2019 में सितंबर और अक्टूबर के दौरान अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत का छेद सबसे छोटे आकार तक सिकुड़ गया। अब यह घटकर 64 लाख वर्ग किलोमीटर ही रह गया। नासा ने दावा भी किया था कि वर्ष 2000 से 2018 के बीच ओजोन परत का छेद 40 लाख वर्ग किलोमीटर सिकुड़ा है, लेकिन इस बार ओजोन परत फिर से हील हो रही है। जिसे लॉकडाउन से जोड़ा जा रहा है।
दुनिया के अधिकांश देशों में लॉकडाउन से उद्योगों का संचालन बंद है। सड़कों पर परिवहन सीमित है। आपातकाल के अलावा किसी को भी घरों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है। इससे वायु प्रदूषण अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। नदियों का जल साफ होने लगा है, आसमान साफ और नीला दिखाई देता है। रात की चांदनी में आसमान की तरफ टिमटिमाते तारे साफ दिखाई देते हैं। मानवीय गतिविधियां कम होने से पशु-पक्षी स्वछंद होकर घूम रहे हैं। लॉकडाउन के कारण प्रकृति को काफी फायदा पहुंचा है।
नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषण पांडे कहते हैं कि लॉकडाउन से धरनी पर ही नहीं आसमान के स्तर पर भी प्रदूषण नाममात्र रह गया है। इन दिनों सांझ ढलने के बाद शुक्र या यानी वीनस को पश्चिम के आकाश में टिमटिमाते बल्क की तरह देखा जा सकता है। कृतिका नक्षत्र अपनी अलग चमक बिखेर रहा है। इनके अलावा बृहस्पति, शनि को भी स्पष्ट देखा जा सकता है। नेप्च्यून व बुध को टेलीस्कोप से निहार सकते हैं। हालांकि पहले प्रदूषण के कारण यह संभव नहीं था।
देश की नदियों को पुनर्जीवित करने और जल संरक्षण में लगे जल पुरुष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि,“प्रकृति का यह बदलाव अस्थायी है। लालची मानव अपनी आदत से बाज नहीं आएगा। मनुष्य ने खाने से लेकर रहने तक में कोई अनुशासन नहीं माना है। यदि समाज लाभ का ही हिसाब करता रहेगा शुभ का विचार नहीं करेगा तो यही होगा।”
पोप फ्रांसिस ने एक संदेश में कहा कि इस ब्रह्मांड को इस तरह से बनाया है ताकि इसकी रचनाओं के बीच परस्पर जुड़ाव और एक दूसरे पर निर्भरता सुनिश्चित की जा सके। हम अपने लाभ के लिए प्रकृति के नियमों में हेरफेर कर रहे हैं और लालच के वशीभूत होकर अन्य प्रजातियों के निवास स्थान पर आक्रमण करते हैं। समय आ गया है कि हम अपने स्वास्थ्य और जैव विविधता के संरक्षण, पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, अंतर्संबंध, और ईश्वर की कृतियों की अखंडता के साथ जुड़ें।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक एंडरसन ने गार्जियन से बातचीत में कहा कि हम आग से खेल रहे हैं। हमारी प्राथमिकता लोगों को कोरोनावायरस से बचाने और इसके प्रसार को रोकने की है। लेकिन हमारी दीर्घकालिक नीति मनुष्य के द्वारा जैव विविधता के नुकसान को बचाना चाहिए।प्रकृति से हमारा अंतर्संबंध है, चाहे हम इसे पसंद करते हों या नहीं। यदि हम प्रकृति का ध्यान नहीं रखते हैं, तो हम अपना ध्यान नहीं रख सकते हैं। हमें भविष्य में प्रकृति को अपने सबसे मजबूत सहयोगी के रूप में सशक्त करने की आवश्यकता है।
( लेखक दैनिक भास्कर के एसोसिएट एडिटर हैं।)