नई दिल्ली। दिल्ली हिंसा में कई लोगों की जान गई थी और करोड़ों की संपत्ति बर्बाद हो गई थी। लेकिन अभी पुलिस हिंसा में लिप्त व्यक्तियों औऱ समूहों की जांच नहीं कर पायी है। जांच के नाम पर कई पत्रकारों से भी पूछताछ का मामला प्रकाश में आया है।
ताजा घटनाक्रम में दिल्ली की एक अदालत ने पुलिस को दस लोगों के विरुद्ध जांच पूरी करने के वास्ते दी गयी अवधि 17 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी है। आरोपियों पर उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के एक मामले के संबंध में गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज है। दिल्ली पुलिस का मानना है कि यह हिंसा पूर्व नियोजित थी और कई संगठनों का इसमें हाथ है। पुलिस विभिन्न आरोपियों और विभिन्न संगठनों की भूमिका की जांच कर रही है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने जामिया समन्वय समिति के सदस्य मीरान हैदर, जामिया के छात्रों- आसिफ इकबाल तन्हा और गुलफिशा खातून, जामिया पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष शिफा उर रहमान, जेएनयू की छात्राओं और पिंजरा तोड़ सदस्यों नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, निलंबित आप पार्षद ताहिर हुसैन, पूर्व कांग्रेस पार्षद इशरत जहां और ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट’ संगठन के सदस्य खालिद तथा शादाब अहमद के विरुद्ध लंबित जांच पूरी करने के लिए पुलिस को अतिरिक्त समय दिया।
इससे पहले अदालत ने खालिद और जहां के विरुद्ध जांच पूरी करने के लिए समयसीमा बढ़ाकर 14 अगस्त कर दी थी। रहमान के मामले में जांच की समयसीमा 24 अगस्त और हैदर, हुसैन तथा खातून के मामले में 29 अगस्त तक बढ़ायी गयी थी। अदालत ने 13 अगस्त के अपने आदेश में कहा कि “गहरे, व्यापक और कई परतों वाले” षड्यंत्र की जांच अब भी जारी है और इस षड्यंत्र में विभिन्न आरोपियों के विभिन्न पक्षों के आपस में जुड़े होने की जांच की जा रही है।
अदालत ने कहा कि जांच की अवधि बढ़ाने के लिए विशेष कारण दिए गए हैं और मामले की छानबीन से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रत्येक आरोपी की जांच के लिए अकाट्य कारण मौजूद हैं। अदालत ने कहा, “मामले में कई प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ की गई है और उनके बयानों को दर्ज किया गया है जो षड्यंत्र और उसमें आरोपियों की भूमिका की ओर इशारा करते हैं।”