जम्मू-कश्मीर समस्या के लिए नेहरू जिम्मेदार: डॉ. जितेंद्र सिंह

शिवांगी गुप्ता शिवांगी गुप्ता
देश Updated On :

नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर को लेकर केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि ‘जम्मू-कश्मीर के भारत में देरी से विलय के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जिम्मेदार है।’

अगर सरदार पटेल को जम्मू-कश्मीर के मामले पर काम करने दिया गया होता तो जम्मू-कश्मीर का न केवल भारत में विलय काफी पहले हो गया होता।  बल्कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के जिस हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा करके रखा हुआ है। वह भी पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होता।

आज से ठीक 73 साल पहले 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया था। कश्मीर के राजा हरि सिंह ने ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर कर, कश्मीर का भारत में विलय करने का फैसला कर लिया था, लेकिन कश्मीर का भारत में विलय होने बाद आज भी कश्मीर, भारत और पाकिस्तान के लिए विवाद बना हुआ है।

जिसे लेकर इस बात पर सवाल बना हुआ है कि “क्या  भारत ने कश्मीर के साथ कोई विशेष ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ साइन किया था?” जो कि अन्य रियासतों के साथ हुए समझौतों से अलग था।

शेख अब्दुल्ला बन गए राजा हरी सिंह के सबसे बड़े दुश्मन

जिस वक्त भारत आज़ाद हुआ उस दौरान हरी सिंह कश्मीर के राजा थे। उन्होंने 1925 में राजगद्दी संभाली थी। कश्मीर में हिंदू शासन होने की वजह से मुसलमानों के साथ भेद-भाव किया जाता था। जिस वजह से राजशाही के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं।

इस आवाज को शेख अब्दुल्ला ने सबसे ज्यादा हवा दी और धीरे-धीरे वह राजा हरी सिंह के सबसे बड़े दुश्मन बन गए। जिसके बाद उन्होंने साल 1932 में ‘ऑल जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कॉफ्रेंस’ का गठन किया। जिसका नाम बाद में नेशनल काफ्रेंस किर दिया गया। उनकी मांग थी कि राज्य में जनता के प्रतिनिधित्व वाली सरकार का गठन हो।

भारत और पाकिस्तान के आजाद होने का समय नजदीक था।  इस बीच राजा हरि सिंह को भी कश्मीर के आजादी के बारे में विचार करना था। लेकिन राजा हरि सिंह कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाना चाहते थे। जो कि उस वक्त नामुमकिन था।

क्योंकि ब्रिटिश इंडिया के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सभी रजवाड़ों को यह साफ कर दिया था कि स्वतंत्र होने का विकल्प उनके पास नहीं था।

लेकिन कांग्रेस से नफरत के चलते महाराजा हरी सिंह भारत में विलय नहीं चाहते थे। वहीं पाकिस्तान में विलय का मतलब था उनके ‘हिंदू राजवंश’ पर पूर्णविराम लग जाना इसलिए  वे कश्मीर को एक आजाद प्रदेश बनाए रखना चाहते थे।

कबायलियों का कश्मीर पर आक्रमण

15 अगस्त को भारत आजाद हो गया। कश्मीर अब भी न भारत के साथ था और न पाकिस्तान के साथ, लेकिन 22 अक्टूबर को कबायली कहे जाने वाले हजारों हथियारबंद लोग कश्मीर में दाखिल हो गए। जिसके बाद वे तेजी से राजधानी श्रीनगर की तरफ बढ़ने लगे। इस हमले को पाकिस्तान की साजिश कहा गया। जिसके बाद हरि सिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी।

हालात ऐसे थे कि कश्मीर की राजधानी पर कभी भी कब्ज़ा हो सकता था। ऐसे में लार्ड माउंटबेटन ने की सलाह पर कश्मीर में भारतीय फ़ौज को भेजने से पहले हरी सिंह से ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करवा लिए गए। इसके साथ ही कश्मीर पर भारत का औपचारिक, व्यवहारिक और आधिकारिक कब्ज़ा हो गया।

वहीं साल 1948 के पाकिस्तान ने खुले आम कश्मीर घाटी में अपने सैनिक तैनात कर दिए। आज़ाद होने के कुछ महीनों के अंदर ही भारत और पाकिस्तान कश्मीर में एक दूसरे से लड़ रहे थे। इस युद्ध ने कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया।

जवाहर लाल नेहरू ने जिस जनमत संग्रह का भरोसा दिया गया था। वह कभी नहीं कराया गया। आज से 73 साल पहले राजा हरि सिंह ने कश्मीर पर शासन विवाद को निपटाने के लिए जिस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। उस विवाद का आज तक समाधान होता नजर नहीं आ रहा है।



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