धर्मांतरण और आरक्षण को लेकर विहिप की चेतावनी-अनूसूचित जाति के हितों पर डाका बर्दास्त नहीं


1936 में महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर ने इस मांग को अनुचित ठहराया था। संविधान सभा में भी जब इस मांग को पुन: उठाया गया तो संविधान निमार्ता डॉक्टर अंबेडकर ने इसे देश विरोधी सिद्ध करते हुए ठुकरा दिया था।


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नई दिल्ली। धर्मांतरण और आरक्षण को लेकर विश्व हिंदू परिषद- विहिप ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि वो आरक्षण को लेकर अनूसूचित जाति के हितों पर डाका कतई बर्दास्त नहीं करेंगे और राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान चलाकर इस तरह के प्रयास की पोल खोलेंगे।

विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन ने कहा कि मतांतरित अनुसूचित समाज को आरक्षण का लाभ दिलाने की मांग न केवल संविधान विरोधी और राष्ट्र विरोधी है बल्कि यह अनुसूचित जाति के अधिकारों पर खुला डाका है। जैन ने कहा कि मिशनरी व मौलवी बार-बार यही दोहराते हैं कि उनके मजहब में जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है और उनका मजहब स्वीकार करने के बाद कोई पिछड़ा नहीं रह जाता है। इसके बावजूद वे मतांतरितों के लिए बार-बार आरक्षण की मांग करते हैं, यह अनुचित मांग न केवल सामाजिक न्याय अपितु संविधान की मूल भावना के विपरीत किया गया एक षड्यंत्र है।

डॉ जैन ने आगे कहा कि 1932 में पूना पैक्ट करते समय डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण पर सहमति व्यक्त की थी। दुर्भाग्य से 1936 से ही मिशनरी और मौलवी मतांतरित अनुसूचित समाज के लिए आरक्षण की मांग सड़क से लेकर संसद तक निरंतर उठाते रहे हैं।

1936 में महात्मा गांधी और डॉक्टर अंबेडकर ने इस मांग को अनुचित ठहराया था। संविधान सभा में भी जब इस मांग को पुन: उठाया गया तो संविधान निमार्ता डॉक्टर अंबेडकर ने इसे देश विरोधी सिद्ध करते हुए ठुकरा दिया था। यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने भी इस मांग को अनुचित करार दिया था। विहिप नेता ने आरोप लगाया कि बार-बार ठुकराने के बावजूद बार-बार इस तरह की मांग के सामने आने से यह साबित होता है कि इनके पीछे अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां काम कर रही हैं।

विहिप नेता ने कहा कि संविधान सभा व संसद द्वारा बार बार ठुकराने पर ये लोग अपनी मांग को लेकर न्यायपालिका में भी जाते रहे हैं और न्यायपालिका भी इनकी अनुचित मांग को ठुकराती रही है। 1985 में सुसाइ व अन्य विरुद्ध भारत सरकार मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि मतांतरित अनुसूचित जाति को आरक्षण की मांग संविधान की मूल भावना के विपरीत है। इसके बावजूद 2004 में एक बार फिर से न्यायपालिका में ये लोग गए और वह मामला अभी तक लंबित है।

जैन ने आगे कहा कि ऐसा होने से जनसंख्या असंतुलन का खतरा बढ़ जाएगा और जिस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया है वे भी इससे वंचित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि विहिप इस राष्ट्र विरोधी मांग के विरोध में एक राष्ट्रव्यापी जनजागरण अभियान चलाएगा।