नई दिल्ली। कोरोना वायरस के नए स्वरूप ‘ओमीक्रोन’ को लेकर दुनियाभर में दहशत और आशंकाओं का दौर शुरू हो गया है। भारत में सरकार और विभिन्न एजेंसियां भी सतर्क हैं। वायरस के इस स्वरूप को लेकर चल रही चर्चा के बीच, इसके विभिन्न बिंदुओं पर पेश हैं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)-दिल्ली के ‘कम्युनिटी मेडिसिन’ विभाग के प्रमुख एवं कोरोना वायरस रोधी टीका संबंधी परीक्षण के मुख्य अन्वेषक रहे डॉक्टर संजय राय से ‘भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब…
सवाल: कोरोना वायरस के नए स्वरूप को लेकर अब तक जो तथ्य सामने आए हैं, उस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: वायरस का स्वरूप बदलना चलता रहता है। यह कोई पहला और आखिरी स्वरूप नहीं है। हजारों बार स्वरूप बदलते हैं। अब तक जो साक्ष्य सामने आए हैं उससे यह पता चलता है कि इस स्वरूप से तेजी से संक्रमण होता है और यह टीकों को बेअसर कर सकता है। अगर ऐसा है तो यह चिंता का विषय है क्योंकि दुनिया में ज्यादातर देशों के अधिकतर लोगों में प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) टीकों की वजह से है। भारत में ज्यादातर लोगों में संक्रमण की वजह से बनी स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता (नेचुरल इम्युनिटी) है।
सवाल: क्या इसका मतलब यह है कि यह नया स्वरूप भारत के लिए कम चिंताजनक है?
जवाब: अभी हमें यह देखना है कि क्या यह स्वरूप स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता को भी बेअसर कर रहा है या नहीं। अब तक जितने भी स्वरूप आए हैं, वे इस ‘इम्युनिटी’ को बेअसर नहीं कर पा रहे थे। अगर यह स्वरूप स्वाभाविक ‘इम्युनिटी’ को बेअसर नहीं कर पा रहा है तो फिर भारत के ज्यादातर लोग सुरक्षित होंगे और यहां के लिए चिंता की बात नहीं होगी।
सवाल: वर्तमान समय में भारत में कितने लोगों में स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता मौजूद होगी?
जवाब: मेरे हिसाब से देश में 60 से 70 फीसदी लोगों में स्वाभाविक ‘इम्युनिटी’ है। आईसीएमआर ने 68 फीसदी लोगों में स्वाभाविक ‘इम्युनिटी’ की बात की है। जो लोग डेल्टा स्वरूप वाले वायरस के संक्रमण के बाद स्वस्थ हुए, उनमें सबसे ज्यादा प्रतिरोधक क्षमता है। सीरो-सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि दिल्ली में 90 फीसदी से अधिक लोगों में एंटीबॉडी हैं।
सवाल: स्वाभाविक प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए कोरोना वायरस के इस नए स्वरूप के खिलाफ भारत में बने टीकों के किस हद तक कारगर रहने की संभावना है?
जवाब: भारत के कोवैक्सीन और चीन के टीके (साइनोवैक) के ही कारगर होने की संभावना सबसे ज्यादा दिखाई देती है। जैसे संक्रमण के बाद शरीर में स्वाभाविक एंटीबॉडी बनती है, उसी तरह ये दोनों टीके भी एंटीबॉडी बनाते हैं। बाकी टीके ‘स्पाइक प्रोटीन’ के विरुद्ध एंटीबॉडी बनाते हैं। अगर ‘स्पाइक प्रोटीन’ इतना बदल जाएगा तो हो सकता है कि वायरस का यह स्वरूप इन टीकों से बनी एंटीबॉडी को बेअसर कर दे। दूसरी तरफ, कोवैक्सीन पूरे वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। ऐसे में अगर संक्रमण हो जाए तो हो सकता है कि व्यक्ति गंभीर स्थिति में नहीं जाए। हालांकि फिलहाल आगे का अध्ययन होना है।
सवाल: फिलहाल सरकार और लोगों के स्तर पर क्या किया जाना चाहिए?
जवाब: फिलहाल जरूरी यह है कि अफरा-तफरी नहीं मचाई जाए। अनावश्यक रूप से डरने की जरूरत नहीं है। सतर्क रहने की जरूरत है। यह काम सरकार के स्तर पर हो सकता है कि इसकी नियमित रूप से निगरानी की जाए और इसके संक्रमण के स्तर, इसकी भयावहता पर नजर बनाए रखी जाए। लोगों को कोरोनो प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना चाहिए।