एक प्रोफेसर की मौत की खबर से राष्ट्र बेखबर क्यों?


चेन्नई से 320 किलोमीटर दूर तिरूवरूर स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय,तमिलनाडु के सरकारी आवास में 21 अप्रैल 2020 की दोपहर बाद प्रोफेसर कनक राजू कुर्सी पर मृत पाए गए। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिला के कोटनीवानिपालम ग्राम के एक कृषक परिवार में जन्में 42 वर्षीय कनक राजू कॉमर्स के प्रोफ़ेसर थे और एक स्कॉलर के रूप में उन्हें बेस्ट स्कॉलर का राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त था।



पुष्पराज
केन्द्रीय विश्वविद्यालय तमिलनाडु में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में सेवारत डॉ. के. कनक राजू विश्वविद्यालय स्थित प्रोफ़ेसर आवास में मृत पाए गए हैं। चेन्नई से 320 किलोमीटर दूर तिरूवरूर  स्थित केन्द्रीय विश्वविद्यालय,तमिलनाडु के सरकारी आवास में 21 अप्रैल 2020 की दोपहर बाद प्रोफेसर कनक राजू कुर्सी पर मृत पाए गए। आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम जिला के कोटनीवानिपालम ग्राम के एक कृषक परिवार में जन्में 42 वर्षीय कनक राजू कॉमर्स के प्रोफ़ेसर थे और एक स्कॉलर के रूप में उन्हें बेस्ट स्कॉलर का राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त था। 

व्यापार और वाणिज्य के वे गहरे अध्येता थे और अब तक इस विषय पर उनकी 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थी। उनकी 5 अकादमिक पुस्तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और 3 पुस्तकों को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृति प्राप्त था। उनके 50 से ज्यादा शोध आलेख अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए थे। 2011 में आन्ध्र विश्वविद्यालय से पीएचडी के बाद डॉ. कनक राजू ने 2015 में बेस्ट बिजनेस एकेडमिक अवार्ड ,2016 में डिसटिंग्सड टीचर अवार्ड इन मैनेजमेंट ,2016।में तमिलनाडु का यंग मैनेजमेंट सांटिस्ट अवार्ड और इसी वर्ष आन्ध्र प्रदेश का बेस्ट सिटिजन ऑफ़ आंध्र प्रदेश का सम्मान प्राप्त किया था।

सवाल यह है कि प्रधानमंत्री पोषित लॉकडाउन आपदा काल में एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय में सेवारत एक प्रोफ़ेसर की विश्वविद्यालय परिसर में हुई मौत से राष्ट्र अब तक बेखबर क्योँ है? एक प्रतिभाशाली प्रोफेसर की मौत अगर विश्वविद्यालय परिसर में हुई तो इस मौत के बाद विश्वविद्यालय ने ना ही मृतक प्रोफ़ेसर की मौत के लिए श्रद्धांजली सभा की, ना ही तमिलनाडु सहित राष्ट्रीय मीडिया को इस खबर से अवगत कराया गया।

ज्ञात जानकारी के अनुसार 22 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के प्रशासकीय परिसर में कुलपति, रजिस्टार, सहित 50 से ज्यादा अधिकारी –प्राध्यापक मौजूद थे। बावजूद प्रधानमंत्री घोषित सोशल डिस्टेंस थ्योरी के तहत लॉकडाउन काल में एक प्रोफ़ेसर दूसरे प्रोफ़ेसर या कर्मचारी से संवाद नहीं करते थे। मैनें इस बावत जानकारी प्राप्त करने के लिए जब विश्वविद्यालय परिसर के तकनीकी प्रबंधक कनकराज को फोन किया तो उन्होंने बताया कि प्रोफ़ेसर कनक राजू अलग प्रकृति के साधक इन्सान थे। वे कभी नॉरमल फ़ूड नहीं लेते थे। वे लगातार 15 दिन फल खाकर ही रह जाते थे। घंटो योग-मेडिटेशन करते थे। उन्होंने बताया कि मौत के बाद उनके कमरे में कुछ भोज्य पदार्थ मौजूद पाए गए हैं इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि उनकी मौत भूखजनित वजहों से हुई हो। 

मैंने जब विश्वविद्यालय के कुलसचिव एस. भुवनेश्वर को फोन किया तो महोदय ने आश्चर्यजनक अंदाज में सवाल पूछा कि प्रोफ़ेसर की मौत सही खबर है लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जब मौत की वजह किडनी फेल होना बताया गया है तो यह मौत पूरी तरह प्राकृतिक है और इस मौत को खबर से अलग रखना चाहिए। मैंने जब यह पूछा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्या अपने फैकल्टी प्रोफ़ेसर की मौत पर कोई श्रद्धांजलि सभा आयोजित किया था। कुलसचिव ने बताया कि सोशल डीस्टेंसिंग की वजह से खुली श्रद्धांजलि सभा का आयोजन नहीं किया गया पर विश्वविद्यालय की ओर से सभी फैकल्टी मेंबर के पास ऑनलाईन श्रद्धांजलि सन्देश भेजा गया था। 

कुलसचिव ने ऑनलाईन श्रद्धांजलि सन्देश मेरे पास भेजने का वादा किया पर किसी तरह का सन्देश भेजने में वे अक्षम रही इसलिए कि यथार्थ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने प्रोफ़ेसर की मौत के उपरांत किसी का तरह का औपचारिक श्रद्धांजलि सन्देश किसी के पास भेजा ही नहीं था। कुलसचिव ने मुझसे बार–बार सुझाया कि ‘प्रोफ़ेसर की मौत को खबर बनाने से रोकने में ही विश्विद्यालय का हित है। विश्विद्यालय कुछ वर्ष पूर्व स्थापित हुआ है और अभी उत्थान के दौर में ऐसी ख़बरों से विश्वविद्यालय विवाद का विषय बनेगा’। 

केन्द्रीय विश्वविद्यालय तमिलनाडु में कॉमर्स विभाग के अध्यक्ष वेलमुरगन ने कनक राजू को अपने विषय का विलक्षण ज्ञानी बताते हुए इस मौत को बहुत बड़ा अकादमिक नुकसान बताया। नन्निलम थाना की थाना प्रभारी महोदया अंजनी ने इस मामले के पुलिस अनुसन्धान के बारे में मुझे कुछ भी बताने से इंकार किया। पुलिस सूत्रों के अनुसार बंद कमरे में प्रोफ़ेसर के द्वारा फोन ना रिसीव करने की शिकायत पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने बंद दरवाजे को तोड़ने के बाद पुलिस को सूचित किया।

भारतीय अपराध संहिता के अनुसार बंद कमरे में मौत के बाद पुलिस की मौजूदगी में ही कमरे के अन्दर प्रवेश करना होगा और पुलिस मृतक के कक्ष को अपराध अनुसंधान की दृष्टि से सील करेगी। मृत प्रोफेसर की अंत्येष्टि उनके आन्ध्र प्रदेश स्थित पैतृक ग्राम में हुई। उनके परिवार में बड़े भाई और बहन हैं, जो अंग्रेजी या हिंदी ना जानने के कारण मुझसे किसी तरह का संवाद नहीं कर पाए। कनक राजू के भतीजे कोलिमाला इश्वरा राव बीटेक के छात्र हैं। इन्होंने बताया कि उनके परिवार में कनक राजू अकेले शिक्षित व्यक्ति थे। कानून की जानकारी ना हो पाने की वजह से तिरुवरुर पुलिस प्रोफ़ेसर की मौत के अनुसन्धान के मामले में सहयोग नहीं कर रही है। 

ईश्वर राव के अनुसार –‘मेरे चाचा  पूरी तरह से स्वस्थ इंसान थे और उन्हें कभी किडनी ,लीवर ,हृदयरोग ,मधुमेह या रक्तचाप की कोइ शिकायत नहीं थी। हमारे परिवार में खेती के लिए एक एकड़ मात्र जमीन है और इस छोटी सी खेती गरीबी में मेरे पिता और दादा नें चाचा को उच्च शिक्षा का हौसला प्रदान किया था। उन्हें 13 माह पूर्व केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अच्छी नौकरी प्राप्त हुई थी और वे परिवार की बेहतरी के लिए बड़े सपने देखते थे।

प्रोफ़ेसर कनक राजू की मौत स्वाभाविक और प्राकृतिक मौत नहीं है। रोहित वेमुला की तरह यह संस्थानिक मौत है। अपने प्रोफेसर की मौत के बाद श्रद्धांजलि जारी नहीं करना और मीडिया को एक प्रोफ़ेसर की मौत की खबर से अनजान रखना केन्द्रीय विश्वविद्यालय तमिलनाडु को कठघरे में खड़ा करता है। अगर प्रोफेसर लॉकडाउन से पूर्व अपने परिवारजन के साथ होते तो सोशल डीस्टेंसिंग के एकांत का तनाव या कोइ अन्य अज्ञात वजह उनकी मौत का कारण नहीं बनता। 

मौत के कारण की सही पड़ताल के लिए उच्च स्तरीय न्यायिक जांच गठित कर तत्काल मेडिकल बोर्ड गठित करने की जरूरत है। बिहार के श्रमिक रामजी महतो ने दिल्ली से बेगूसराय पैदल चलते हुए वाराणसी में जब इसी 16 अप्रैल को भूख से तड़प कर अपनी जान गंवा दी थी तो उस अनजान श्रमिक की मौत को लावारिश होकर कहीं गायब होने से बचाने के लिए मैंने पीआर की भूमिका की थी। बिहार के मुख्यमंत्री ने मृतक की लाश को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। मुझे एक पैदल श्रमिक की मौत और एक प्रोफ़ेसर की मौत में आज ज्यादा फर्क नहीं दिख रहा है। 

प्रधानमंत्री का लॉकडाउन अगर मेरे जवारी श्रमिक रामजी महतो की मौत के लिए जिम्मेवार था तो प्रोफ़ेसर डॉ. के कनक राजू की मौत के लिए भी सीधे तौर से प्रधानमंत्री का लॉकडाउन जिम्मेवार है। मेरे लिए एक श्रमिक की भूख से हुई मौत और प्रोफ़ेसर की संदिग्ध मौत में खुद की मौत प्रतीत होती है। हमारे लिए एक प्रोफेसर की मौत, एक मजदूर की मौत से बड़ी खबर नहीं है। बावजूद हमारे लिए खबर की मौत पत्रकारिता की मौत है, हमारे लिए खबर की मौत इन्सानियत की मौत है इसलिए एक प्रोफेसर की 8 दिन पूर्व हुई मौत की खबर को प्रधानमंत्री की छवि बिगड़ने के भय से रोक देना पत्रकारिता के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। क्या आप एक प्रतिष्ठित प्रतिभावान प्रोफेसर की मौत के खिलाफ सवाल उठाने के लिए तैयार हैं? क्या प्रधानमंत्री जी प्रोफ़ेसर की मौत लिए अगली बार माफ़ी मांग लेंगे?

(लेखक यायावर पत्रकार हैं।)