दिल्ली जल संकट: आज़ादी के 76 साल बाद भी मेहनतकश पानी के लिए मोहताज


दिल्ली जल बोर्ड 1000 एमजीडी पेयजल उपलब्ध कराने का दावा करता है। इसमें से लगभग 52 प्रतिशत या तो चोरी हो जाता है या बर्बाद हो जाता है। कई स्थानों पर पाइपलाइन टूटी हुई हैं जिससे पानी और भी बर्बाद होता है।


नागरिक न्यूज नागरिक न्यूज
देश Updated On :

दिल्ली में बीते कुछ सालों से जैसे ही गर्मी शुरू होती है वैसे ही जल संकट की गम्भीर समस्या भी शुरू हो जाती है। इसी दिल्ली में केजरीवाल सरकार 700 लीटर मुफ़्त पानी देने का वायदा करके सत्ता में आयी थी। लेकिन दिल्ली में जल संकट के पैमाने का अन्दाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इलाक़ों में पानी के टैंकर के इन्तज़ार में भोर से कतार लग जाती है और इनके आते ही कुछ जगहों पर तो महज़ 10-15 मिनट में टैंकर खाली हो जाते हैं। जल संकट की यह स्थिति राजधानी के दक्षिणी क्षेत्र से लेकर पूर्वी क्षेत्र तक मिल जायेगी। एक तरफ़ एक टैंकर 10 मिनट में खाली हो जा रहे हैं, दूसरी तरफ़ एक दशक से दिल्ली सरकार इस मसले पर ज़ुबानी जमाख़र्च के सिवाय कोई ठोस क़दम तक नहीं उठा पायी है। इस समस्या के लिए कोई नयी योजना लेना तो दूर की बात है, उल्टे इस संकट का विस्तारीकरण ज़रूर हुआ है। यमुना किनारे तालाब बनाने की योजना सिर्फ़ गड्ढों को खोदकर पूरी कर दी गयी! इसी तरह वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्टों में जमी गाद की इतनी मोटी परत हो गयी कि पानी भी शिथिल पड़ गया है। इतना ही नहीं जल संकट का एक और सबसे बड़ा कारण यह है कि जनता के हिस्से के पीने का 52% पानी या तो चोरी हो रहा है या फिर बर्बाद हो रहा है।

दिल्ली में मुख्यतः तीन वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट हैं : वज़ीराबाद, चन्द्रावल और ओखला। ये तीनों वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्ट दिल्ली जल बोर्ड के अधीन संचालित हैं। इन वॉटर ट्रीटमेण्ट प्लाण्टों द्वारा यमुना से पानी लेकर उसे साफ़ करके आगे सप्लाई किया जाता था। हाल में ही यह सूचना आयी कि पानी में गाद, पत्ते व अन्य कचरा आ रहा था, जिसके कारण प्लाण्ट्स की मशीन काम नहीं कर रही थी। हालाँकि तकनोलॉजी इस समस्या का भी समाधान कर सकती है, लेकिन जब समस्या जनता की हो, तो समस्याओं के समाधान में पूँजीपतियों की नुमाइन्दगी करने वाली सरकारों की कोई दिलचस्पी क्यों होगी?

2013 से गाद निकालने के काम का ठेका दिये जाने के बावजूद, गाद नहीं निकाली गयी, जिसके परिणामस्वरूप पिछले दस वर्षों के दौरान तालाब की गहराई 4.26 मीटर से घटकर मात्र 0.42 मीटर रह गयी है। सितम्बर 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक स्थगन आदेश के कारण गाद निकालने का काम रोक दिया गया था और 2015 में स्थगन हटाये जाने के बाद इसे फिर से शुरू किया गया था। यहाँ यह रेखांकित करने की ज़रूरत है कि 2013 से 2014 के बीच लगभग नौ महीनों में पाँच लाख क्यूबिक मीटर गाद हटायी गयी थी।

कथनी नहीं करनी से दूर होगा जल संकट

दिल्ली जल बोर्ड 1000 एमजीडी पेयजल उपलब्ध कराने का दावा करता है। इसमें से लगभग 52 प्रतिशत या तो चोरी हो जाता है या बर्बाद हो जाता है। कई स्थानों पर पाइपलाइन टूटी हुई हैं जिससे पानी और भी बर्बाद होता है।

गर्मी के दिनों में ज़ाहिरा तौर पर पानी की खपत बढ़ जाती है। पानी की बढ़ी हुई माँग पूरी करने के लिए ठोस तैयारी नहीं होती है। इसका परिणाम है कि दिल्ली में, ख़ासकर मज़दूर इलाक़ों में, पानी की क़िल्लत हो रही है। अब समस्या यह है कि वर्तमान सरकार इस पर राजनीति तो ख़ूब कर रही है, लेकिन पानी की उपलब्धता बढ़ाने की ओर कोई ठोस क़दम नहीं उठा रही है।

अदालत के निर्देश पर हरियाणा ने वर्ष 2014 में मुनक नहर के माध्यम से दिल्ली को उसके हिस्से का पूरा पानी देना शुरू किया था। इससे द्वारका, बवाना व ओखला के तीन जल उपचार संयन्त्र (डब्ल्यूटीपी) शुरू हो सके। उसके बाद से पानी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कोई उल्लेखनीय क़दम नहीं उठाया गया। मुनक(करनाल) नहर में हरियाणा से साढ़े पाँच सौ से अधिक क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है जिससे कि 425 क्यूसेक पानी वज़ीराबाद जलाशय में पहुँच सके। चन्द्रावल व वज़ीराबाद प्लाण्ट के लिए इतना पानी ज़रूरी है। यमुना से पानी वज़ीराबाद जलाशय में आता है। एक दशक से इस जलाशय की सफ़ाई नहीं हुई है। इस कारण गाद जमा होने से जलाशय की भण्डारण क्षमता कम हो गयी है। इस समस्या को दूर करने के लिए प्रत्येक दो से तीन वर्ष में जलाशय की सफ़ाई ज़रूरी है। लेकिन दिल्ली जल बोर्ड यह काम नहीं कर रहा है।

गर्मी के मौसम में नदी के किनारों में जमा पानी भी समाप्त हो जाता है। आम आदमी पार्टी की सरकार ने कुछ वर्ष पहले यमुना किनारे तालाब बनाने की घोषणा की थी। तालाब बनाने का काम सिर्फ़ कुछ गड्डे खोदकर ख़त्म हो गया। यदि यमुना किनारों पर पानी भण्डारण की व्यवस्था होती तो गर्मी के मौसम में इस तरह की परेशानी नहीं होती।

वर्तमान में दिल्ली में हर साल औसत 1,170 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रति दिन) पानी की ज़रूरत होती है। जबकि फ़िलहाल लगभग 1,000 एमजीडी पानी ही उपलब्ध हो रहा है।

भारत में बढ़ता जल संकट

भारत में भूजल स्तर तेज़ी से घट रहा है और पारे का स्तर बढ़ रहा है। इसकी वजह से देश के कई राज्यों में लगातार सूखे की स्थिति बनी हुई है। पानी की उपलब्धता के बिना नहाने, बर्तन धोने और पीने के पानी जैसी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने में भी बाधा आ रही हैं।

भारत की राजधानी दिल्ली का भूजल स्तर भी ख़तरे के निशान पर पहुँच चुका है। इसके अलावा, असमान और अकुशल वितरण से भी कोई मदद नहीं मिलती। साथ ही, अभी भी भारत में अधिकांश जल आपूर्ति की ज़रूरत खेती के लिए होती है जिसके कारण बाक़ी क्षेत्रों में जल आपूर्ति की समस्या पैदा हो जाती है।

पानी का एक बड़ा हिस्सा उद्योगों में भी इस्तेमाल होता है। नतीजतन, जब देश का जल स्तर गिरता है, तो इसका असर अनाज, फल, सब्ज़ियों और दूसरे उत्पादों के उत्पादन पर पड़ता है। इस साल भी महाराष्ट्र के सतारा, जालना, बीड और नासिक जैसी जगहों पर भयंकर सूखा पड़ रहा है। इसी तरह नई दिल्ली, आन्ध्र प्रदेश आदि में भी कुएँ सूखने की समस्या है।

ज़ाहिरा तौर पर यह पूँजीवादी विकास का मॉडल ही है जो, अन्तिम विश्लेषण में, जल आपूर्ति की इस समस्या के लिए ज़िम्मेदार है। इस “विकास” के मॉडल के अन्तर्गत जहाँ एक तरफ़ तो आम मेहनतकश आबादी पानी की बूँद-बूँद के लिए तरस रही है, वहीं अमीरज़ादे रेन डांस पार्टी जैसे अय्याशियों में पानी जैसे प्राकृतिक और वास्तव में सामाजिक संसाधनों की बर्बादी कर रहे हैं। इसके अलावा, इसी “विकास” के मॉडल के तहत जल संसाधनों का गम्भीर कुप्रबन्धन और दोहन भी हुआ है, जिसके कारण भारत में जल संकट पैदा हुआ है। शहरों में पानी की समस्या से बचने के लिए जल संसाधनों के प्रबन्धन में महत्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है, जिसकी उम्मीद पूँजीवादी सरकारों से कम ही की जा सकती है।

यह रिश्ता क्या कहलाता है?

एक तरफ़ दिल्ली में लोग पानी की एक-एक बूँद को मोहताज हो रहे हैं, दूसरी तरफ़ आम आदमी पार्टी की शह पर टैंकर माफ़िया ख़ूब धड़ल्ले से पानी का गोरखधन्धा कर रहे है। आम आदमी पार्टी के नेता-मन्त्री एक तरफ़ अपने आप को पाक साफ़ दिखाते हुए ख़ूब ज़ुबानी जमाख़र्च कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ टैंकर माफ़िया को संरक्षण भी दे रहे हैं। अवैध ट्यूबवेलों की खुदाई इसी आम आदमी पार्टी के नाक के नीचे हो रही है। भूमिगत जल का दोहन कर टैंकरों के ज़रिये पॉश इलाक़ों में ख़ूब पानी की सप्लाई दी जा रही है। इसी के साथ हरियाणा की मुनक नहर से आने वाले पानी की चोरी सीधे बवाना में नहर से की जा रही है। नहर के किनारे टैंकर लगा दिये जाते हैं, पानी भरकर इस पानी को अलग-अलग इलाक़ों में बेचा जा रहा है।

दिल्ली के संगम विहार, रोहिणी, वज़ीराबाद से लेकर बवाना तक में ये टैंकर माफ़िया फैले हुए हैं। इनकी पहुँच स्थानीय प्रशासन से लेकर पुलिस, नेता-मन्त्रियों तक है।

इस बीच पानी की आपूर्ति पर भाजपा और आम आदमी पार्टी के नेता-मन्त्रियों के बीच ख़ूब ज़ुबानी जंग चल रही है। इन तमाम आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच भाजपा और आम आदमी पार्टी का चेहरा पूरी तरह से नंगा हो रहा है। उपराज्यपाल और जल मन्त्री दोनों अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़कर दिल्ली में पानी की कमी का कारण जनसंख्या और झुग्गी-बस्तियों के विस्तार होने को बता रहे हैं। ज़ाहिरा तौर पर, अपनी नाकामी छिपाने के लिये ये दोनों ‘तू नंगा तू नंगा’ का खेल खेल रहे हैं और सारी समस्या का ठीकरा मेहनतकश जनता के सिर पर फोड़ रहे हैं, जो दिल्ली में सबकुछ चलाती है और सबकुछ बनाती है और जिसकी मेहनत की लूट के दम पर यहाँ के धन्नासेठों, नेताओं-मन्त्रियों और नौकरशाहों की कोठियाँ चमक रही हैं। भाजपा और आम आदमी पार्टी जनता की तकलीफ़ों के प्रति कितने सवेंदनशील हैं, ये तो साफ नज़र आ रहा है।

केजरीवाल सरकार ने 700 लीटर मुफ़्त पानी देने का जो वायदा किया था उसे केवल अमीरज़ादों के लिए निभाया है। एक तरफ़ तो दिल्ली के मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग की सोसायटियों में पानी की दिक्क़त होने पर उसे तुरन्त प्रभाव से ठीक कर दिया जाता है, उनके कुत्ते और गाड़ी धोने के लिए भी पर्याप्त पानी का सप्लाई किया जाता है; वहीं दूसरी तरफ़ मज़दूर बस्तियों में पानी की इतनी भयंकर समस्या है कि आये दिन विवाद सामने आते रहते हैं। मज़दूर आबादी हफ़्ते भर के लिए पानी स्टोर करके रखती है। इस पानी की गुणवत्ता भी बहुत ख़राब है और पीने लायक नहीं है, जिसके कारण गन्दे पानी से होने वाली कई बीमारियाँ मज़दूर इलाकों में फ़ैल रही हैं। इन इलाक़ों में 350 से 450 टीडीएस के बीच ही पानी की सप्लाई होती है। लेकिन इन सबके बावजूद दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पानी की समस्या के लिए कोई समाधान नहीं किया जाता है।

आज मज़दूर इलाक़ों में पानी को लेकर जनता के जुझारू आन्दोलन संगठित करने की आवश्यकता है। जनता को उनके इस बुनियादी हक़ के प्रति जागरूक बनाये जाने की आवश्यकता है। इस दिशा में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी व कई अन्य जन संगठन मिलकर उचित क़दम उठाने की तैयारी कर रहे हैं।

(दिल्ली से अदिति की रिपोर्ट)