सत्ता के नजदीकी शेतकारी संगठन के किसान नेता और भूपिंदर मान


शेतकारी संगठन के नेता स्वर्गीय शरद जोशी और भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपेंद्र सिंह मान के खिलाफ सत्ता के हितों के साथ जुड़ने का आरोप पहले भी लगा है। इन दोनों नेताओं की किसी जमाने में ताकतवर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत से नहीं बनी।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
देश Updated On :

तीन कृषि कानूनों के अमल पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, इसके बावजूद आंदोलनकारी किसान पीछे हटने को राजी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों वाली कमेटी बनाकर तीनों कृषि कानूनों पर राय मांगी है। लेकिन आंदोलनकारी किसान संगठनों ने कमेटी में शामिल लोगों पर एतराज जताया है, और कमेटी के सामने पेश होने से इंकार कर दिया है।

किसानों का तर्क है कि कमेटी में शामिल चारों सदस्यों की राय पहले से ही सरकार के कृषि कानूनों के पक्ष में है। कमेटी में शामिल दो सदस्य अशोक गुलाटी औऱ प्रमोद कुमार जोशी कृषि कानून के पक्ष में लगातार लिख रहे है। जबकि कमेटी में शामिल दो किसान संगठनों के नेता भी तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में खुलकर अपनी राय रख चुके है।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलकर कृषि कानून के पक्ष में बात की है। ये दोनों किसान नेता कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के विरोध कर रहे है। किसान संगठनों का आरोप है कि कमेटी के सारे सदस्य नरेंद्र मोदी सरकार के खासे नजदीकी है। आंदोलन कर रहे किसान संगठनों का तर्क है कि वे उनलोगों के पास जाकर अपनी बात क्या रखेंगे जो पहले से ही तीन कृषि कानूनों का समर्थन कर रहे है?

निश्चित तौर पर संकट और बढ़ गया है। क्योंकि आंदोलनकारी किसान संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट दवारा गठित कमेटी पर सवालिया निशान लगाया है। अगर आंदोलनकारी किसान संगठन कमेटी के सामने नहीं जाएंगे तो चार सदस्यों वाली कमेटी की रिपोर्ट का महत्व क्या रह जाएगा ? जिस तरह से आंदोलनकारी किसान तीन कृषि कानून को नहीं मान रहे है, उसी तरह से वे कमेटी की रिपोर्ट भी नहीं मानेंगे। फिलहाल मामले का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी में जिन विशेषज्ञों को शामिल किया गया है, वे शुरू से ही सत्ता के नजदीक रहे है। कमेटी में शामिल सरदार भूपिंदर सिंह मान औऱ शेतकारी संगठन के अनिल धनावत ने पहले ही कृषि कानूनों पर अपनी राय खुलकर रखी है। दोनों किसान नेताओं की सत्ता से नजदीकी भी जगजाहिर है। दोनों नेताओं के संगठन कारपोरेट खेती के हिमायती रहे है, खेती में कारपोरेट कंट्रोल के मुखर समर्थक रहे है।

शेतकारी संगठन के अनिल धनावत कमेटी के सदस्य है। दरअसल शेतकारी संगठन के नेता किसान संगठन चलाने के साथ-साथ राजनीति भी करते रहे है। शेतकारी संगठन के अनिल धनावत ने तीनों कृषि कानूनों का मुखर समर्थन किया है। उन्होंने कृषि कानूनों के वापस लिए जाने का जोरदार विरोध किया है। भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान ने भी तीनों कृषि बिलों का जोरदार समर्थन किया है।

शेतकारी संगठन पर सत्ता के नजदीक होने का आरोप शुरू से लगता रहा है। हालांकि शेतकारी संगठन का महाराष्ट्र में अच्छा प्रभाव है। लेकिन देश भर के किसान संगठनों के बीच इनकी साख इसलिए कमजोर है कि ये कारपोरेट के नजदीक है और आम सीमांत किसानों की हितों को लेकर मुखर नहीं रहे है।

शेतकारी संगठन के नेता स्वर्गीय शरद जोशी और भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपेंद्र सिंह मान के खिलाफ सत्ता के हितों के साथ जुड़ने का आरोप पहले भी लगा है। इन दोनों नेताओं की किसी जमाने में ताकतवर किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत से नहीं बनी। बताया जाता है कि इनके सहयोग से सत्ता ने जमीनी किसान नेताओं कमजोर किया। विरोधी तर्क देते है कि शेतकारी संगठन के स्वर्गीय शरद जोशी औऱ भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान को सरकारों ने सता का स्वाद भी चखाया। समय समय पर सत्ता ने इन्हें इनाम भी दिया।

शेतकारी संगठन के स्वर्गीय शरद जोशी और भूपिंदर सिंह मान को 1980 के दशक में महेंद्र सिंह टिकैत के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। महेंद्र सिंह टिकैत 1980-90 के दशक में देश के ब़डे किसान नेता के रुप में उभरे थे। टिकैत का आधार उतर भारत के दो राज्य के किसानों में खासा था। टिकैत का शरद जोशी और भूपेंद्र सिंह मान से कई मुद्दों पर मतभेद थे। कृषि क्षेत्र में उदारीकरण का शरद जोशी औऱ भूपेंद्र सिंह मान हमेशा समर्थन करते रहे।

दरअसल शेतकारी संगठन के शरद जोशी विदेश में नौकरी करते थे। वापस महाराष्ट्र में लौटकर वे किसान नेता बन गए। उन्होंने उस जमाने में खेती में कारपोरेट की एंट्री की वकालत की। वे खेती पर राज्य के नियंत्रण के खिलाफ थे। शरद जोशी तो इस हदतक कारपोरेट समर्थक थे कि वे संविधान से समाजवाद शब्द को हटाने की वकालत करते रहे। शरद जोशी ने राज्यसभा में जाने के लिए भाजपा से समझौता भी किया और भाजपा के समर्थन से 2004 में वे राज्यसभा में पहुंचे।

उधर कमेटी में शामिल भूपेंद्र सिंह मान का पंजाब के किसानों में जनाधार न के बराबर है। सत्ता के नजदीक भूपेंद्र सिंह मान हमेशा रहे है। केंद्र सरकार के लिए मान हमेशा अहम रहे। बेशक सरकार किसी भी दल की रही हो। पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह शरद जोशी औऱ भूपेंद्र सिंह मान से खासे प्रभावित थे। वीपी सिंह भूपेंद्र सिंह मान को राज्यसभा में लेकर गए।

भाजपा की चिंता हरियाणा में आंदोलन का तेजी होता विस्तार है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ-साथ सताधारी दल के विधायकों औऱ मंत्रियों को जनता के बीच जाना मुश्किल हो गया है। करनाल जिले के कैमला गांव की घटना के बाद भाजपा-जजपा गठबंधन में खासी घबराहट फैल गई है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का हेलिकाप्टर कैमला गांव में किसानों के विरोध के कारण उतर नहीं पाया।

हजारों किसानों ने हैलीपैड खोद दिया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष समेत कई बड़े नेताओं को मौके से निकलना पड़ा। इतना तीव्र किसान विरोध के कारण भाजपा नेता खासे परेशान है।

दरअसल पहले भाजपा नेता और भाजपा-जजपा सरकार के नुमाइंदे भ्रम फैलाकर आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश करते रहे। पहले उन्होंने यह भ्रम फैलाया कि आंदोलन में हरियाणा के किसान शामिल नहीं है। फिर जब हरियाणा में किसान आंदोलन थोड़ा तेज हुआ तो भाजपा नेताओं ने प्रचार किया कि पंजाब से लगते हरियाणा के कुछ जिलों के सिख किसान आंदोलन में शामिल है।

लेकिन जब दिल्ली सीमा पर हरियाणा के किसान अच्छी संख्या में आंदोलन में शामिल होने लगे तो भाजपा ने प्रचार किया कि हरियाणा के जाट बिरादरी के लोग दिल्ली सीमा पर आंदोलन में शामिल हो रहे है।



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