पिता की ‘प्रियदर्शनी’ और देश की ‘आयरन लेडी’


इंदिरा गांधी ने अपने निर्णयों और कार्यों के जरिए देश के लोगों में धर्म और जाति का भेद मिटा, एक सूत्र में पिरोने का काम किया, साथ ही अपने निर्भीक फैसलों और दृढ़ निश्चय के चलते वह ‘देश की आयरन लेडी’ कहलाईं।


शिवांगी गुप्ता शिवांगी गुप्ता
देश Updated On :

‘मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।’

ऐसे महान विचारों वाली महिला थीं, आयरन लेडी कही जाने वाली भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। जिनकी 103वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। इसी उपलक्ष्य में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी दादी को याद करते हुए, ट्वीट कर श्रद्धांजलि अर्पित की है।

इसी के साथ ही देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इंदिरा जी को याद करते हुए, ट्वीट के जरिए उनकी जंयती पर उन्हें नमन किया है।

ऐसे कहलाईं ‘इंदिरा प्रियदर्शनी’

जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू के यहां 19 नवंबर 1917 को जन्मी कन्या को उनके दादा मोतीलाल नेहरू ने इंदिरा नाम दिया था। वहीं उनके सलोने रूप की वजह से पिता ने उसमें प्रियदर्शिनी भी जोड़ दिया। अपने दादा और पिता की तरह ही इंदिरा देश सेवा में लग गईं। जिसके बाद वह देश की ऐसी राजनेता बनीं, जिन्होंने पूरी दुनिया की राजनीति पर अमिट छाप छोड़ी।

यह वही इंदिरा गांधी हैं जिन्होंने 1962 में भारत और चीन के युद्ध के दौरान अपने गहने दान कर दिए थे, ताकि युद्ध के लिए हथियार खरीदें जा सकें। देश की सेवा करते हुए उन्होंने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली और इसके बाद भी एक बार फिर 1980 में वह इस पद पर आसीन हुईं।

उन्होंने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में अपने कार्यों के जरिए देश के लोगों में धर्म और जाति का भेद मिटा, एक सूत्र में पिरोने का काम किया। अपने निर्भीक फैसलों और दृढ़ निश्चय के चलते वह ‘देश की आयरन लेडी’ कहलाईं।

एक फैसला, जो बना उनकी मौत की वजह

उनकी कार्य कुशलता और देश के प्रति निष्ठा देख भारत सरकार ने उन्हें 1971 में भारत रत्न से सम्मानित किया। उन्होंने 1984 में अमृतसर में सिखों के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए  1 से 8 जून तक ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया।

लेकिन उनके इस कदम के लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस ऑपरेशन से नाराज उनके अंगरक्षक सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने ही गोली मारकर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी और हमारे देश की यह दिव्य ज्योति हमारी आंखों से ओझल हो गई। लेकिन उनका प्रकाश पुंज हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गया।