कोविड के दौरान आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन के लिए सरकार ने एकजुट होकर काम किया : विश्व बैंक


विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने कोविड-19 महमारी के दौरान स्थानीय उत्पादन को गति देने के लिए एकजुट होकर काम किया जिससे उत्पादों की कीमत में कमी लाने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर से निर्भरता कम करने में मदद मिली।


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नई दिल्ली। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार ने कोविड-19 महमारी के दौरान स्थानीय उत्पादन को गति देने के लिए एकजुट होकर काम किया जिससे उत्पादों की कीमत में कमी लाने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर से निर्भरता कम करने में मदद मिली।

रिपोर्ट में कहा गया कि इस दौरान सरकार द्वारा की गई विशाल खरीदारी प्रकिया में गुणवत्ता से भी कोई समझौता नहीं किया गया।

विश्व बैंक ने जुलाई में ‘‘ भारत कोविड-19 खरीदारी : चुनौती, नवोन्मेष और सबक’’शीर्षक से एक चर्चा पत्र जारी किया। इसमें कोविड-19 के दौरान भारत के समक्ष आपूर्ति श्रृंखला की चुनौती और नवोन्मेषी तरीके से सामना करने की जानकारी दी गई है।

इसमें केंद्र सरकार द्वारा महामारी के चरम काल में चिकित्सा सामग्री की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों का गहन विश्लेषण किया गया है जिनमें सरकार द्वारा एकजुट होकर स्थानीय बाजार का विकास करने की कोशिश भी शामिल है।

रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि भारत की विशेषता जांच में निजी क्षेत्र की भागीदारी रही और करीब 50 प्रतिशत जांच प्रयोगशालाएं और पूंजी इस निजी क्षेत्र की रही, इसके साथ ही कोविड-19 संबंधी सामान के उत्पादन,आईटी समर्थित टेलीपरामर्श और गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) प्रबंधन के लिए निजी क्षेत्र से अतिरिक्त संसाधन की व्यवस्था हुई।

रिपोर्ट में कहा गया कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर कोविड-19 संबंधी सामान की मांग को लेकर दबाव था और जीवनरक्षक दवाओं की अभूतपूर्व मांग थी जिससे आपूर्ति आधारित बजार बना और कीमतों में भारी अंतर देखा गया।

इसकी वजह से भारत को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा जिनमें आवश्यक चिकित्सा उपकरणों के उत्पादन की सीमिति घरेलू क्षमता, अपर्याप्त बाजार जानकारी, राज्यों में कोविड-19 के प्रभाव में अंतर, वैश्विक मांग की वजह से कीमत और आपूर्ति पर दबाव और इससे पूर्व इस स्तर की महामारी को संभालने का अनुभव नहीं होना शामिल था।

इन सभी चिंताओं ने निपटने के लिए सरकार ने राज्यों की मदद के लिए केंद्रीयकृत खरीद की जिम्मेदारी ली। मौजूदा कानूनी कार्यढांचे और बजट के साथ तेजी से सामान की खरीद के लिए लचीला रुख अपनाया जबकि फैसले तेजी से करने के लिए समूहों को सशक्त किया।

देश ने शुरुआत में ही निर्यात पर रोक लगाई और निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन और प्रयोगशाला की स्थापना में वित्तीय मदद एवं समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

इन उपायों से शुरुआत में आयात में तेजी और बाद में स्थानीय बाजार का विकास हुआ।

केंद्रीय खरीद प्रकोष्ठ (सीपीडी) और आपात चिकित्सा प्रतिक्रिया (ईएमआर) प्रकोष्ठ जो स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत कार्य करते हैं और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने शुरुआती समय में आपूर्ति श्रृंखला को बनाए रखने की कोशिश की। इसमें खरीद एजेंट के तौर पर एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड ने मदद की।

सीपीडी ने प्राथमिक तौर पर पीपीई किट, एन-95 मास्क खरीदने पर ध्यान केंद्रित किया जो स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए जरूरी थे जबकि आईसीएमआर ने निजी क्षेत्रों के साथ मिलकर तेजी से जांच के लिए प्रयोगशाला की सुविधा स्थापित की।

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘सभी मंत्रालयों और राज्य सरकारों को साथ लेकर एकजुट सरकार का रुख अपनाया गया। साथ ही सुनिश्चित किया कि अलग-अलग खरीद, समितियों की भूमिका और जिम्मेदारी स्पष्ट हो। उद्योगों से समन्वय, निविदा की तेज प्रक्रिया, सामान भेजने से पहले तय एजेंसी द्वारा निरीक्षण ने उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद की।’’

रिपोर्ट में कहा गया कि इससे कोविड-19 संबंधी उत्पादों की कीमत में कमी लाने में भी मदद मिली, उदाहरण के लिए एन-95 मास्क की कीमत 250 रुपये से 20 रुपये पर आ गई जबकि पीपीई किट जो शुरुआत में 700 रुपये का था वह 150 रुपये में उपलब्ध हुआ।