
स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया की पहल पर मंत्रालय ने कई आयोजनों के जरिए मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम किया।
वैसे तो हर साल 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस बार भारत के लिए यह अवसर खास रहा। ऐसा पहली बार हुआ कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का स्तर बढ़ाने के लिए ‘मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह’ का आयोजन किया। इस पूरे एक हफ्ते में मंत्रालय की ओर से नई दिल्ली में और दूसरी जगहों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए।
दरअसल, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर देश में जागरूकता का काफी अभाव है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि किसी को कोई शारीरिक दिक्कत होती है तो, वह अपना ईलाज कराने तुरंत जाता है। लेकिन अगर कोई मानसिक समस्या हो तो अधिकांश लोग इसे पहचान ही नहीं पाते। ईलाज कराने की बात तो काफी दूर की है।
इस वजह से कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में भारत में 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या की थी। इनमें से 67 फीसदी की उम्र 18 से 45 साल के बीच थी। यानी हर 3 में से 2 खुदकुशी 18 साल से 45 साल के आयु वर्ग के लोगों ने की। इससे पता चलता है कि देश की सबसे उत्पादक माने जाने वाले आयु वर्ग की आबादी किस तरह की मानसिक समस्याओं का सामना कर रही है और इससे देश को कितना नुकसान हो रहा है। जब कोरोना महामारी आई तो उस दौरान भी लोगों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ीं।
स्वास्थ्य मंत्रालय के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि तकरीबन तीन महीने पहले केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री का कार्यभार संभालने वाले मनसुख मांडविया ने इस बार विभाग को यह निर्देश दिया कि हमें मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह मनाना है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर विभाग के बड़े अधिकारियों को कहा कि हम स्वास्थ्य मंत्रालय चला रहे हैं तो स्वास्थ्य को लेकर हमें ‘समग्र सोच’ के साथ काम करना चाहिए और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ—साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रमुखता से ध्यान देना चाहिए।
पहली बार देश में मनाए जा रहे मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह की शुरुआत स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने 5 अक्टूबर को किया। इस दिन वे नई दिल्ली में यूनिसेफ के एक कार्यक्रम में शामिल हुए और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक रिपोर्ट जारी की। यूनिसेफ की इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पूरी दुनिया के 14 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हर सात बच्चे में से एक बच्चे को मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित दिक्कत है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस अवसर पर स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि बच्चों को तो देश का भविष्य माना जाता है लेकिन आज हमारे पूरे विश्व के 14 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो हमें स्वाभाविक तौर पर दुनिया के भविष्य की चिंता होनी चाहिए।
स्वास्थ्य मंत्री मांडविया ने 8 अक्टूबर को ‘ग्रीन रिबन पहल’ की शुरुआत की। जैसे पूरी दुनिया में ‘रेड रिबन’ की पहचान एचआईवी—एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने की है, वैसे ही ‘ग्रीन रिबन’ का इस्तेमाल पूरी दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए किया जाता है। इस दिन मनसुख मांडविया ने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को खुद ‘ग्रीन रिबन’ दिए और इस दिन पूरे स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों ने ग्रीन रिबन लगाए।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया, ‘स्वास्थ्य मंत्री ने हमें स्पष्ट निर्देश दिए थे कि युवाओं में खास तौर पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता का स्तर बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि हम मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह की अपनी पहल से कॉलेजों को जोड़ें।’ मनसुख मांडविया के निर्देशों के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में 8 अक्टूबर को छात्रों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को लेकर विभिन्न प्रतिस्पर्धाएं आयोजित की गईं। इनमें छात्रों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पुरस्कृत भी किया गया। यहां भी छात्रों ने ग्रीन रिबन लगाए।
हंसराज कॉलेज के छात्रों और इन प्रतिस्पर्धाओं को खुद स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित भी किया और उन्हें कहा कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने स्तर पर पहल करें। इस अवसर पर मनसुख मांडविया ने खुद अपने तनाव की कहानी छात्रों को बताई। मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री ने छात्रों को बताया कि जब कोराना की दूसरी लहर आई थी तो वे फार्मा मंत्री के तौर पर काम कर रहे थे और उनकी जिम्मेदारी थी कि देश में जरूरी दवाओं की उपलब्धता ठीक ढंग से बनी रहे, जरूरी मात्रा में आॅक्सिजन उपलब्ध रहे, जहां जरूरत हो, वहां वेंटिलेटर रहे।
दिन-रात वे फार्मा कंपनियों और दूसरे स्टेकहोल्डर्स के साथ इनकी उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए समन्वय करते रहते थे और दूसरे देशों से भी लगातार बातचीत करते रहते थे। उन्होंने छात्रों के सामने यह स्वीकार किया कि ऐसी स्थिति में उन्हें भी मानसिक तनाव होता था। मनसुख मांडविया ने छात्रों को बताया कि उन्होंने अपने मानसिक तनाव को कम करने के लिए साइकलिंग, प्राणायाम, नियमित व्यायाम आदि का सहारा लिया।
मनसुख मांडविया ने मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह का समापन 10 अक्टूबर को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (NIMHANS) में किया। इस अवसर पर उन्होंने संस्थान से पढ़ाई करके निकल रहे छात्रों को मनसुख मांडविया ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सेवा और जागरूकता का स्तर बढ़ाने की दिशा में काम करने को कहा।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मंत्री स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर इस तरह से दिलचस्पी लेने से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सजगता का एक माहौल तो बना है। मंत्रालय से लेकर अस्पतालों और डॉक्टरों में यह संदेश गया कि मानसिक स्वास्थ्य को भी शारीरिक स्वास्थ्य के बराबर अहमियत देनी है।’