हांगकांग की स्वायत्तता और चीन का बढ़ता हस्तक्षेप


1997 में चीन का ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ बनने के बाद हांगकांग के लोगों को हमेशा ये अंदेशा रहता था कि चीन उनकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है। विदेश और रक्षा मामलों में मिले अधिकार की वजह से हांगकांग के लोग चीनी कानून का विरोध करते आए हैं।


Ritesh Mishra Ritesh Mishra
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नई दिल्ली। चीन में गृहयुद्ध के दौरान साम्यवादियों ने वहां के शासक कुओमिन्तांग पर जीत के बाद चीनी जनवादी गणराज्य की नींव 1 अक्टूबर, 1949 को पड़ी। चीन को शुरू से ही एक विस्तारवादी राष्ट्र के तौर पर जाना जाता है। आज भी चीन भारत के कई हिस्सों पर अपना दावा करता है। तईवान के साथ भी इसी को लेकर चीन के साथ विवाद है। बात करें हांगकांग की तो डेढ़ सौ से भी ज्यादा सालों तक ब्रिटिश उपनिवेश रहे हांगकांग को आज ही के दिन 1984 में चीन को सौंपने के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।

हांगकांग में चीनी अत्याचार विश्वभर में छिपा नहीं है। पिछले कई दशक से वहां के लोग लोकतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हांगकांग की बात करें तो, ब्रिटेन और चीन ने अगले 13 वर्षों में सत्ता का हस्तांतरण पूरा करने का फैसला लिया। 19 दिसंबर 1984 को ब्रिटेन की ओर से प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर और चीनी प्रधानमंत्री झाओ जियांग ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

दोनों देश के प्रधानमंत्री के बीच संयुक्त सहमति पत्र में तय हुआ कि 1997 तक हांगकांग को चीन को सौंप दिया जाएगा। संयुक्त घोषणा-पत्र में कहा गया कि एक जुलाई 1997 को हांगकांग को पुन: पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को सौंप दिया जाएगा और इस स्थानांतरण की अवधि होगी 50 साल। इस क्षेत्र को ‘हांगकांग स्पेशल एडमिनिस्ट्रेटिव रीजन’ (एसएआर) कहा गया।

ब्रिटेन इसके लिए इस गारंटी पर राजी हुआ कि उसे हांगकांग में ‘विदेश और रक्षा मामलों के अलावा बाकी हर क्षेत्र में ज्यादा स्वायत्तता मिलेगी। मौजूदा वक्त में चीन और हांगकांग के बीच सिर्फ राजनीतिक संघर्ष ही नहीं होता बल्कि दोनों देशों के लोगों के बीच सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक समेत कई मुद्दों पर मतभेद और विवाद होते रहते हैं।

हांगकांग को लगता है कि चीन उनके आतंरिक मामलों में न सिर्फ हस्तक्षेप करता है बल्कि नए कनून थोपता है जिसका ताजा उदाहरण है नए प्रत्यर्पण बिल में बदलाव का। अधिक स्वायत्तता मिलने के बाद भी यहां का प्रशासन एक कानून लेकर आया जिसके अंतर्गत अगर यहां का कोई व्यक्ति चीन में कोई अपराध करता है तो उसे जांच के लिए प्रत्यर्पित किया जा सकेगा। इसे वहां के लोगों ने हांगकांग की स्वायतत्ता पर हमला माना।

1997 में चीन का ‘विशेष प्रशासनिक क्षेत्र’ बनने के बाद हांगकांग के लोगों को हमेशा ये अंदेशा रहता था कि चीन उनकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है। विदेश और रक्षा मामलों में मिले अधिकार की वजह से हांगकांग के लोग चीनी कानून का विरोध करते आए हैं। हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों की संख्या अच्छी-खासी है।

इसी साल अगस्त में चीन के नए कानून के खिलाफ हांगकांग में काफी विरोध हुआ और वो हिंसक भी हुआ था। चीन ने हांगकांग पर अपना नियंत्रण मजबूत बनाने के लिए अपनी संसद में हांगकांग में विवादास्पद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का मसौदा पेश किया था। इसे 1997 के बाद से हांगकांग की क्षेत्रीय स्वायत्तता एवं निजी स्वतंत्रता के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है।

चीन के इस नए कानून को लेकर विश्व भर में आलोचना हुई लेकिन इसको लेकर चीन का अपना अलग तर्क है। उसका तर्क है कि इस नए कानून के पीछे उन विदेशी ताकतों को रोकना है जो चीन के लिए आतंरिक या वाह्य तौर पर ख़तरा हैं। जिस समझौते के तहत हांगकांग चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना, उसको लेकर वहां के लोगों में काफी मतभेद है।

हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक वहां चीन के हस्तक्षेप को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। वैश्विक महामारी कोरोना के चलते वहां सब कुछ शांत रहा लेकिन एक बार फिर लोकतंत्र समर्थक सड़कों पर आंदोलित हैं। वैसे चीन के कम्युनिस्ट पार्टी समर्थकों की तादात और संसद में उनकी संख्या अच्छी-खासी है। ऐसे में चीन का हांगकांग में लगातार बढ़ रहा दखल विश्वभर में चर्चा का विषय बन गया है।