
भारत में 15 अगस्त को कोरोना वायरस के वैक्सीन को लॉन्च किए जाने का दावा किया जा रहा है, जिसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर और हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक कंपनी मिलकर बना रही हैं। हालांकि अभी इसका क्लीनिकल ट्रायल यानी मानव परीक्षण होना है। इसके लिए देशभर के 12 संस्थानों को चुना गया है।आइए जानते है, भारत में कोरोना वायरस वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल यानी मानव परीक्षण की क्या है पूरी प्रक्रिया?
परीक्षण की प्रक्रिया क्या है?
दवा पहली बार मरीजों के मर्ज पर आजमाई जाती है, इस कारण इसके विपरीत असर की आशंका भी बनी रहती है। दवा जानलेवा भी साबित हो सकती है, यह बात दवा कंपनी और चिकित्सक बखूबी जानते हैं। इसलिए पहले ये प्रयोग चूहा, खरगोश, बंदर आदि के बाद इंसान पर किए जाते हैं। नई दवा के विकास के बाद उसके असर की जानकारी एवं रोग निदान के दृष्टिगत दवा की कितनी मात्रा जरूरी है, इस प्रक्रिया को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में क्लीनिकल ड्रग ट्रायल कहते हैं।
यह प्रक्रिया चार चरणों में पूरी होती है
पहले चरण में दवा को जानवरों पर आजमा कर देखते हैं। इसके बुरे असर का आकलन किया जाता है। इसी दौरान यह पता लगाया जाता है कि दवा की कितनी मात्रा मनुष्य झेल पाएगा। यह असर 40 से 45 रोगियों पर परखा जाता है। दूसरे चरण में 100 से 150 मरीजों पर दवा का प्रयोग किया जाता है। तीसरे चरण में नई दवा का एक चीनी की गोली से तुलनात्मक प्रयोग करते हैं। इसे प्लेसिबो ट्रायल कहा जाता है।यदा-कदा बीमारी विशेष की दवा जो बाजार में पहले से ही मौजूद है, उसके साथ तुलनात्मक अध्ययन-परीक्षण किया जाता है। यह प्रयोग 500 से 1000 मरीजों पर अमल में लाया जाता है।
इन तीनों चरणों की कामयबी तय होने पर इस नमूने को भारतीय दवा नियंत्रक के पास लाइसेंस हेतु भेजा जाता है। लाइसेंस हासिल हो जाने पर दवा का व्यावसायिक उत्पादन शुरू होता है। भारत में जो ह्यूमन क्लीनिल ट्रायल (मानव परीक्षण) हो रहा है उसकी सबसे खास बात ये है कि दवा के परीक्षण के लिए सिर्फ उन्ही लोगों को चुना जाएगा या चुना गया है, जो अपनी मर्जी से आगे आए हैं। उन्हें इसके बारे में सबकुछ पहले ही बता दिया जाएगा और उनकी सहमति के बाद ही उन्हें परीक्षण में शामिल किया जाएगा।
कैसी होगी इस परीक्षण पूरी संरचना
बीबीसी के मुताबिक, मानव परीक्षण की प्रक्रिया के लिए नागपुर स्थित गिल्लुर्कर मल्टी-स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर चंद्रशेखर गिल्लुरकर को चुना गया है। उनका कहना है कि पहले चरण और दूसरे चरण के परीक्षण के लिए 100 लोगों को चुना जाएगा। शुरुआत में उन लोगों को वैक्सीन देने के बाद यह जांच की जाएगी कि उनलोगों पर उसका कोई साइड-इफेक्ट तो नहीं हो रहा है। डॉ. गिल्लुरकर ने बताया कि दूसरे चरण में लोगों को 14वें दिन वैक्सीन दिया जाएगा, यह देखने के लिए कि उन लोगों में कोई एंटीबॉडिज बन रही है या नहीं। साथ ही उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता की भी जांच की जाएगी। फिर 28वें और 50वें दिन दोबारा उनकी जांच होगी। डॉ. गिल्लुरकर के मुताबिक, वैक्सीन दिए जाने से पहले और बाद में उन लोगों का कई तरह का टेस्ट भी किया जाएगा।
किन लोगों को इस परीक्षण में शामिल किया जाएगा
डॉ. गिल्लुरकर के मुताबिक, पहले तो यह सुनिश्चित किया जाएगा कि मानव परीक्षण के लिए चुने गए लोग स्वस्थ हों। सिर्फ 18 से 55 साल तक की उम्र के लोगों को ही परीक्षण के लिए चुना जाएगा। इस परीक्षण में वही लोग शामिल होंगे, जिनमें कोरोना वायरस का कोई लक्षण नहीं पाया जाएगा और जिनमें कोई कोरोना-एंटीबॉडीज नहीं होगी। बाद में और अंतिम चरण में उनपर वैक्सीन का इस्तेमाल तभी किया जाएगा जब ये सुनिश्चित कर लिया जाएगा कि चुने गए व्यक्ति को दिल की कोई बीमारी नहीं है, किडनी की कोई समस्या नहीं है, लीवर या कोई और दूसरी बीमारी नहीं है। आपको बता दें कि भारत बायोटेक उन सात कंपनियों में से एक है जो कोरोना की वैक्सीन के लिए काम कर रही है, ये हैदराबाद में स्थित है। ये पहली कंपनी है जिसे सरकार की ओर से वैक्सीन के फेज-1 और फेज-2 को रेगुलेट करने की मंजूरी मिली थी। इसके अलावा जायडस काडिला को भी ह्यूमन ट्रायल के लिए ड्रग कंटोलर जनरल की ओर से स्वीकृति मिल गई है।
(साभार – नागरिक न्यूज़)