मोदी है तो मुमकिन नहीं डीजल पेट्रोल की कीमतों में कमी


केन्द्र की मोदी सरकार की यह नीति सीधे सीधे किसान और आम आदमी विरोधी साबित हुई। एक रुपये के उत्पाद पर सत्तर पैसे टैक्स लेना भला किस तरह से जायज ठहराया जा सकता है ? इस पर भी सबसे भयानक असर हुआ डीजल पर बढ़ाए गये अधिभार से। मई में पेट्रोल से ज्यादा अधिभार डीजल पर लगाया गया।


संजय तिवारी
देश Updated On :

कोरोना काल लगभग बीत जाने के बाद अब देश प्रदेश के लोग नये सिरे से अपने आपको खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें सरकार से मदद की जरूरत है। लेकिन लोगों के दुर्भाग्य से केन्द्र में एक ऐसी सरकार है जो जन हित से ज्यादा राष्ट्र हित की चिंता करती है और दुर्भाग्य से उस राष्ट्र में जन के लिए कोई जगह नहीं है।

अगर होती तो लॉकडाउन की पीड़ा से बाहर निकालने के लिए जो सबसे पहला कदम उठाया जाता वो होता डीजल पेट्रोल की कीमतों में कमी। डीजल पेट्रोल भारत की उर्जा जरूरतों का सबसे प्रमुख स्रोत हैं। खेती किसानी से लेकर फैक्ट्री, माल ढुलाई और सार्वजनिक परिवहन तक सब कुछ का स्रोत डीजल पेट्रोल ही है। लेकिन मोदी सरकार ने लॉकडाउन के दंश से बाहर निकलती जनता को डीजल पेट्रोल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी करके एक और दंश दे दिया।

कोरोना काल के दौरान जब क्रूड आयल अपने न्यूनतम कीमत तक पहुंच गये थे उस समय भी मोदी सरकार ने अतिरिक्त क्रूड की खरीदारी की। ये खरीदारी भविष्य की खपत को ध्यान में रखते हुए की गयी। निश्चित रूप से ये एक अच्छा कदम था। लेकिन ये सब जनता के फायदे के लिए नहीं बल्कि सरकार अपने फायदे को ध्यान में रखकर कर रही थी। जैसे ही लॉकडाउन में ढील दी गयी और सड़कों पर वाहनों का आना जाना बढ़ा मोदी सरकार ने मई में तत्काल डीजल और पेट्रोल पर क्रमश: 13 रूपये और 10 रूपये अधिभार बढ़ा दिया।

इस बढ़ोत्तरी के कारण डीजल-पेट्रोल पर सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी बढ़कर 69 प्रतिशत हो गयी। दिल्ली में एक लीटर डीजल या पेट्रोल पर केन्द्र और राज्य सरकार का कर मिलाकर 100 प्रतिशत बैठता है। सत्तर प्रतिशत केन्द्र सरकार का कर और तीस प्रतिशत राज्य सरकार का वैट। हालांकि दिल्ली सरकार ने जुलाई 2020 में अपना तीस प्रतिशत वैट घटाकर 16 प्रतिशत कर दिया। लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ऐसे कठिन समय में भी टस से मस नहीं हुई और अपना कर बढ़ाकर रखा।

भारत के इतिहास में डीजल पेट्रोल पर इतना भारी भरकम टैक्स कभी किसी सरकार ने लगाया हो, इसकी जानकारी नहीं है। मोदी सरकार का यह फार्मूला लोगों की जेब लूटकर सरकारी खजाना भरनेवाला है। डीजल पेट्रोल अब ऐसे उत्पाद नहीं है जिसका इस्तेमाल सिर्फ अमीर लोग करते हैं। डीजल पेट्रोल की इस्तेमाल आम जन परिवहन से लेकर माल ढुलाई और खेती बारी तक होता है।

फिर ऐसे में सिर्फ इस सोच के साथ कर बढ़ाते जाना कि ये उन लोगों के लिए जिन पर फर्क नहीं पड़ता, मूर्खतापूर्ण है। केन्द्र की मोदी सरकार की इस निर्दयतापूर्ण टैक्स कार्रवाई का सीधा असर ये हुआ कि किसान के खेत की जुताई से लेकर माल ढुलाई तक सब कुछ मंहगा हो गया। इसका परिणाम भी सामने आया और किराये भाड़े से लेकर खाद्य सामग्री तक सबकुछ मंहगा हो गया जिसका परिणाम आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है।

केन्द्र की मोदी सरकार की यह नीति सीधे सीधे किसान और आम आदमी विरोधी साबित हुई। एक रुपये के उत्पाद पर सत्तर पैसे टैक्स लेना भला किस तरह से जायज ठहराया जा सकता है ? इस पर भी सबसे भयानक असर हुआ डीजल पर बढ़ाए गये अधिभार से। मई में पेट्रोल से ज्यादा अधिभार डीजल पर लगाया गया।

आमतौर पर पेट्रोल के मुकाबले डीजल पर केन्द्रीय कर इसलिए भी कम रखे जाते हैं क्योंकि डीजल का इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन और कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। डीजल का रेट बढते ही सीधे मंहगाई बढती है। लेकिन मोदी ने डीजल और पेट्रोल पर केन्द्रीय अधिभार को लगभग समान कर दिया है। इस समय मोदी सरकार एक लीटल पेट्रोल पर 33 रूपये और एक लीटर डीजल पर 32 रूपये टैक्स वसूल रही है। यह संसार में डीजल पर लगाया जानेवाला सर्वाधिक अधिभार है।

क्या मोदी नहीं जानते कि डीजल का इस्तेमाल कृषि कार्य, सार्वजनिक परिवहन और माल ढुलाई में किया जाता है? अगर जानते हैं तो क्या ये नहीं जानते कि इस टैक्स बढोत्तरी से आम आदमी की कमर टूट जीएगी? पहले ही लॉकडाउन से परेशान आम आदमी के लिए डीजल पेट्रोल में प्रति लीटर पांच दस रूपये की कमी बड़ी राहत दे सकते थे। लेकिन ऐसा हो ही गया तो फिर मोदी होने का मतलब क्या रह जाएगा? मोदी तो वो है जो आपदा में अपने लिए अलसर खोजता है। 

डीजल पेट्रोल पर निर्दयतापूर्वक लगाये गये केन्द्रीय अधिभार मोदी के बारे में उस धारणा को पक्की करते हैं कि वो टैक्स टेररिज्म चलाते हैं। उनके या उनके जैसे राष्ट्रवादी लोगों के लिए यह वैचारिक संकट भी है जिनके लिए राष्ट्र का महत्व तो है लेकिन राष्ट्र में रहनेवाले लोगों के सुख दुख का कोई महत्व नहीं है। डीजल पेट्रोल पर क्रूरतापूर्ण कर वसूली आम आदमी की नित्य प्रति परेशानियां बढ़ानेवाला है।

एक सर्वे में ये बात उभरकर सामने भी आयी है कि देश में 69 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि डीजल पेट्रोल की कीमतों में कमी लायी जाए ताकि उसे कुछ राहत मिल सके। पेट्रोलियम मंत्रालय तक ने प्रधानमंत्री कार्यालय से सिफारिश किया है कि डीजल पेट्रोल पर केन्द्रीय करों में कमी की जाए ताकि इसका लाभ आम आदमी तक पहुंच सके। लेकिन क्या प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर ध्यान देगा?

मोदी के रहते डीजल पेट्रोल की कीमतों में कमी मुमकिन नहीं लगता। केन्द्र में मनमोहन सरकार के समय में औसत 10 से 12 रूपये टैक्स लिया जाता था जिसे मोदी बढ़ाते बढ़ाते 32 से 33 रुपये तक ले गये हैं। क्या आम आदमी के हित में उसे एकदम से खत्म कर देंगे? अगर आम आदमी का इतना हित सोचते तो फिर इतना टैक्स लगाते ही क्यों?



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