नई दिल्ली। भारत सरकार के अमृत महोत्सव को राम जानकी संस्थान, नई दिल्ली के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि विकास शिल्पा केंद्र , गुंटेगेरी,पश्चिम बंगाल के सचिव सोमेन कोले ने स्वैच्छिक समर्थन देते हुए आजादी की अमृत गाथा के श्रृंखलाबद्ध पचहत्तर कार्यक्रमों की कड़ी में रविवार को 19 वां राष्ट्रीय बेबीनार आयोजित किया।
जस्टिस फॅार द डिप्राइव्ड के सहयोग से उर्दू पत्रकारिता का आजादी में योगदान विषय पर आयोजित वर्चुअल बैठक में क्रांतिकारी अशफाक उल्ला, सैयद अहमद खां, मौलवी मोहम्मद बाकर, रामकृष्ण खत्री, लक्ष्मी सहगल, मातंगिनी हजारा और रानी चेन्नम्मा को अतिथिगण प्रो.के जी सुरेश,प्रो.अख्तरुल वासे, अरविंद कुमार सिंह, मासूम मुरादाबादी आदि के सानिध्य में आरजेएस फैमिली ने श्रद्धांजलि दी।
इस अवसर पर शहीद अशफाक उल्ला खान के पौत्र अशफाक उल्ला खान और क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के पुत्र उदय खत्री की ऑडियो रिकॉर्डिंग से संदेश सुनाया गया। आरजेएस सकारात्मक भारत सूचना केंद्र जमशेदपुर से प्रभारी डा.पुष्कर बाला और केंद्र से जुड़ी निशा झा और पटना केंद्र से जुड़ी सुमन कुमारी पॅाजिटिव स्पीकर्स रहे। वहीं अन्य पॅाजिटिव स्पीकर्स रहे इशहाक खान और कुसुम प्रसाद।
अतिथियों का स्वागत ऐक्टिव मीडिया के संपादक सिराज अब्बासी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन आरजेएस ऑब्जर्वर दीप माथुर ने किया।
लेखिका और पत्रकार रिंकल शर्मा ने वेबिनार का सफल संचालन करते हुए ये शेर कहा “हिंदी और उर्दू में सिर्फ़ फर्क है इतना, वो ख़्वाब देखते हैं और हम सपना.”
आरजेएस-टीजेएपीएस केबीएसके आजादी की अमृत गाथा राष्ट्रीय वेबिनार -19 के मुख्य अतिथि प्रो के जी सुरेश – माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा आजादी के आंदोलन में वतन परस्ती और देशभक्ति के लिए कलमकारों ने उर्दू पत्रकारिता को हथियार बनाया। उर्दू को मजहब से जोड़ना सरासर ग़लत है। दक्खन से उर्दू की शुरुआत हुई।
उर्दू भी वैसे ही है जैसे मराठी, बंगाली जैसी क्षेत्रीय भाषाएं।
प्रोफेसर केजी सुरेश ने कहा कि भारतीय जनसंचार संस्थान , दिल्ली में महानिदेशक रहते हुए हमने उर्दू पत्रकारिता के सर्टिफिकेट प्रोग्राम को अपग्रेड करके फुल फ्लेज्ड पीजी डिप्लोमा प्रोग्राम इन उर्दू जर्नलिज्म बनाया। इसकी फीस बहुत कम रखी गई ताकि हर तबका पढ़ाई कर सके।
पद्मश्री से सम्मानित और खुसरो फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा की दूरियों को कम करने में आरजेएस का श्रृंखलाबद्ध अमृत गाथा राष्ट्रीय वेबीनार बहुत बड़ा योगदान दे रहा है।
अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा कि भाषाओं का कोई धर्म नहीं होता, हर धर्म को भाषाओं की जरूरत है। उर्दू भाषा हिंदुस्तान में जन्मी पली-बढ़ी और आजादी के आंदोलन में योगदान दिया। इसमें मौलवी मोहम्मद बाकर के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें धर्म को अपने श्रद्धा तक रखना चाहिए और राष्ट्रीयता से समझौता नहीं करना चाहिए।
हमें धर्म का सच्चा अनुयाई बनना चाहिए ना की भाषाओं को धर्म का ठप्पा लगाना चाहिए। यह गलत है। जिन लोगों ने आजादी दिलाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी जेलों में जीवन गुजारा और तकलीफें काटी। उनके सपनों को पूरा करने के लिए और देश को आगे बढ़ाने के लिए हमें आजादी की सुरक्षा के लिए करनी है और इसी से हम लोग क्रांतिकारियों के खून के बलिदान का हक अदा कर सकते हैं।
आरजेएस राष्ट्रीय वेबीनार के मुख्य वक्ता लेखक पत्रकार और नेता विपक्ष राज्यसभा के मीडिया सलाहकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा की आजादी में उर्दू पत्रकारिता का अहम योगदान रहा है स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाकर को सम्मान देने की जरूरत जरूरत है पूरी दुनिया में जुल्म के खिलाफ सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों के लिए जो माहौल पहले था , वही कमोवेश आज भी है। यही पत्रकारों को ताकत भी देते हैं, कि सच्चाई के लिए लड़ते रहेंगे और अपने आप को समर्पित रखेंगे। यही बात महात्मा गांधी और शहीद बाकर ने बताई।
आरजेएस राष्ट्रीय वेबिनार के अतिथि वक्ता ऑल इंडिया उर्दू एडिटर्स कांफ्रेंस के सचिव मासूम मुरादाबादी ने ओपनिंग रिमार्क्स में कहा कि पहली जंग आजादी की लड़ाई उर्दू भाषा में लड़ी गयी और इस भाषा के पत्रकारों ने अपनी जानें दे कर वतन की रक्षा की। इस में सभी धर्मों के लोग थे। ये कहना की उर्दू किसी विशेष धर्म के लोगों की भाषा है सब से बड़ा अन्याय है।
उर्दू का पहला अखबार जाम ए जहां नुमा 1822 में कोलकाता से पंडित हरि हर दत ने निकाला था और इसके सम्पादक पंडित सदा सुख थे। 1857 की क्रांति में सबसे पहले जिस पत्रकार को अंग्रेजों ने मौत की सजा दी वे दिल्ली उर्दू अखबार के सम्पादक मौलवी मोहम्मद बाकर थे।