नई दिल्ली। रूस के साथ ‘‘दो जमा दो’’ रक्षा एवं विदेश मंत्री स्तरीय वार्ता में भारत ने उसके पड़ोस में ‘‘असाधारण सैन्यीकरण’’ और उत्तरी सीमा पर ‘‘बिना उकसावे वाली आक्रमकता’’ को देश के समक्ष प्रमुख चुनौतियां बताया।
वार्ता में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में दावा किया कि भारत अपनी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और अपने लोगों की निहित क्षमताओं के कारण चुनौतियों से पार पाने को लेकर आश्वस्त है।
सिंह के अतिरिक्त वार्ता में विदेश मंत्री एस जयशंकर, उनके रूसी समकक्ष सर्जेइ लावरोव और रूस के रक्षा मंत्री जनरल सर्गे शोइगु हिस्सा ले रहे हैं।
रक्षा मंत्री सिंह ने कहा, ‘‘महामारी, हमारे पड़ोस में असाधारण सैन्यीकरण, आयुधों का विस्तार और 2020 के ग्रीष्म से हमारी उत्तरी सीमा पर बिना उकसावे की आक्रामकता से कई चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।’’
यद्यपि सिंह ने पूर्वी लद्दाख में बिना उकसावे की आक्रामकता का उल्लेख करते हुए चीन का नाम नहीं लिया।
उन्होंने ध्यान दिलाया भारत की विकास आवश्यकताएं विशाल हैं तथा उसकी रक्षा चुनौतियां ‘‘वैध, वास्तविक और फौरी’’ हैं। उन्होंने कहा कि भारत को ऐसे भागीदारों की आवश्यकता है जो देश की आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील हो और प्रतिक्रिया दे सके।
उन्होंने कहा कि भारत एवं रूस के रक्षा संबंधों में हाल के समय में ‘‘अभूतवपूर्व’’ ढंग से प्रगति हुई है।
जयशंकर ने अपनी टिप्पणी में कहा कि भारत एवं रूस के संबंध बदल रहे विश्व में ‘‘बहुत करीबी एवं समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वे (संबंध) असाधारण रूप से स्थायी रहे हैं।’’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘हम वैश्विक भूराजनीतिक माहौल के एक महत्वपूर्ण चरण में मिल रहे हैं जिसमें बहुत बदलाव हो रहे हैं विशेषकर कोविड-19 महामारी के बाद में।’’ उन्होंने आतंकवाद, हिंसक उग्रवाद और चरमपंथ को क्षेत्र की प्रमुख चुनौती करार दिया।
जयशंकर ने कहा, ‘‘करीबी मित्र एवं सामरिक भागीदार के रूप में भारत एक रूस हमारे साझा हितों को सुरक्षित रखने और अपने लोगों की शांति एवं समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति का मध्य एशिया सहित व्यापक प्रभाव पड़ेगा।