क्या चीन-अमेरिका की जियो-पॉलिटिक्स में फंस गया भारत ?


चीन और भारत का सीमा विवाद लंबे समय से है। लेकिन 2017 में डोकलाम में भारत और चीन के बीच हुए विवाद के बाद कोरोना संकट के दौरान लद्दाख इलाके में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के हुए विवाद के कुछ तत्कालिक कारण भी है। चीन इंडो-पैसेफिक में भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ती नजदीकी से परेशान है। क्योंकि इसका सीधा असर दक्षिण चीन सागर में चीनी गतिविधियों पर पडेगा।


संजीव पांडेय संजीव पांडेय
देश Updated On :

लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव कम होने की सूचना है। चीन ने भी इसकी पुष्टि की है। यह एक अच्छी खबर है। कोरोना महामारी के दौर में चीन से टकराव भारत के हित में नहीं है। हालांकि चीन ने यह टकराव काफी सोच-समझ कर लिया था। कोरोना की आड़ में चीन ने अपने कुछ पड़ोसियों को डराने की कोशिश की है। इसमें वियतनाम, ताइवान भी शामिल है।

हालांकि लद्दाख सीमा पर तनाव ने स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय कूटनीति चीन से मुकाबला सिर्फ अमेरिका के पिछलग्गू बनकर नहीं कर सकती है। वहीं चीन से मुकाबला सिर्फ विदेशों से हथियार खरीद कर भी नहीं किया जा सकता है। चीन का मुकाबला सिर्फ चीनी सामानों का बहिष्कार कर भी नहीं किया जा सकता है। जमीनी सच्चाई भारत के नीति निर्धारक जानते हैं। भारतीय बाजार में चीन का अरबों  डालर का निवेश है, यह एक सच्चाई है। वैसे में चीन से मुकाबले के लिए पहले भारत को मजबूत आर्थिक ताकत बनना होगा।    

चीन और भारत का सीमा विवाद लंबे समय से है। लेकिन 2017 में डोकलाम में भारत और चीन के बीच हुए विवाद के बाद कोरोना संकट के दौरान लद्दाख इलाके में भारतीय सेना और चीनी सैनिकों के हुए विवाद के कुछ तत्कालिक कारण भी है। चीन इंडो-पैसेफिक में भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ती नजदीकी से परेशान है। क्योंकि इसका सीधा असर दक्षिण चीन सागर में चीनी गतिविधियों पर पडेगा। कोरोना संकट के दौरान ही जी-7 के विस्तार के प्रस्ताव से चीन परेशान हो गया। अमेरिका का विस्तार संबंधी प्रस्ताव में भारत को शामिल करने की बात अमेरिकी राष्ट्रपति ने की थी। 

जी-7 में भारत को शामिल करने के प्रस्ताव के बाद चीन भड़क गया। उसने भारत को धमकी देते हुए कहा कि भारत आग के साथ न खेले। चीन का मानना है कि भारत जी-7 में शामिल होने का संकेत देकर चीन को डरा रहा है। चीन का तर्क है कि ट्रंप का जी-7 एक्सपेंशन प्लॉन अमेरिकी जियो-पोलिटिकल प्लॉन है। इसमें चीन को घेरने की योजना है। उस योजना में भारत भागीदार न बने। दरअसल इस समय एशियाई देश चीन और अमेरिका के बीच चल रहे जियो-पॉलिटिकल टकराव में अपनी अलग भूमिका निभा रहे है। 

चीन भारत को नेपाल, पाकिस्तान के माध्यम से घेरने की कोशिश कर रहा है। ताकि परेशान भारत अमेरिका से दूरी बनाए। वहीं अमेरिका चीन को वियतनाम, ताइवान, भारत के सहयोग से घेरने की कोशिश कर रहा है। चीन को इस बात की नाराजगी भी है कि कोरोना संकट के बीच मार्च महीनें में अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और भारत के अधिकारियों की बैठक में वियतनाम, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड को भी शामिल किया गया। चीन का तर्क है कि इस बैठक को आय़ोजित करवाने में भारत की सक्रिय भूमिका थी।

चीन को लेकर कुछ गलतफहमी दूर होनी चाहिए। चीन 1980 वाला कम्युनिस्ट चीन नहीं है। चीन अब कारपोरेट कम्युनिस्ट देश है। 1980 के आसपास भारत और चीन की जीडीपी लगभग बराबर थी। लेकिन चीन आज बड़ी आर्थिक ताकत है। आज चीन की इकनॉमी इस समय 13 ट्रिलियन डालर की है। भारत की इकनॉमी लगभग 3 ट्रिलियन डालर की है। चीन की अर्थव्यवस्था ‘मेड इन चाइना’ है, जिसका लोहा अमेरिका भी मान रहा है। जबकि भारत की अर्थव्यवस्था ‘मेक इन इंडिया’ भी नहीं बन पायी है। चीन ने जापान और जर्मनी की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड दिया है। अब चीन अमेरिका का मुकाबला कर रहा है। 

चीन की नीति विस्तारवादी है। चीन से सीधा संघर्ष वही देश कर सकता है, जिसकी इकनॉमी खासी मजबूत होगी। मजबूत इकनॉमी वाला देश ही चीन से लंबी लड़ाई कर सकता है। किसी जमाने में चीन के अपने कई पड़ोसियों से सीमा विवाद था। समय के साथ चीन कई पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद हल कर लिया। लेकिन चीन का मुख्य सीमा विवाद भारत के साथ है, जो अभी तक हल नहीं हो पाया है। 

चीन अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत के बल पर जल्द से जल्द भारत से सीमा विवाद हल करना चाहता है। लेकिन चीन सीमा विवाद का हल अपनी शर्तों पर चाहता है। हालांकि भारत चीन से मुकाबले कि लिए रणनीति बना रहा है। लेकिन भारत की रणनीति ठोस नहीं है। भारतीय रणनीति और कूटनीति दोनों में डर का भाव है। पंडित जवाहरलाल नेहरू चीन से कभी डरे नहीं थे। उनकी चीन नीति में डर नहीं था। लेकिन वर्तमान भारतीय कूटनीति में डर का भाव है। भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ लगातार बढ़ी है। लेकिन भारत लगातार बातचीत से इस मामले का हल चाहता रहा है।

चीन से संघर्ष के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती जरूरी है। लद्दाख की घटना को ही ले। लद्दाख इलाके में भारत और चीन के सैनिक आमने सामने आ गए। अगर चीनी सीमा पर दोनों पक्ष की सेना लंबे समय तक आमने-सामने रहेगी तो भारतीय सेना का खर्च खासा बढ़ जाएगा। ठंड के मौसम में सैन्य खर्च में खासी बढोतरी होगी। इसका सीधा असर कोरोना महामारी से जूझ रही भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। कोरोना ने भारत की इकनॉमी को चोट पहुंचायी है। सरकार अपने खर्च को घटा रही है। वैसे में चीन सीमा पर विवाद देश की इकनॉमी को नुकसान ही पहुंचाएगा।

 चीन इस बात को अच्छी तरह समझता है। चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने भारत को चीन से तनाव कम करने की सलाह देते हुए कहा है कि भारत कोरोना वायरस से लड़े। सख्त लॉकडाउन से देश की खराब होती अर्थव्यवस्था से लड़े। चीन ने भारत को यह भी सलाह दी है कि अमेरिका और चीन के बीच के चल रहे तनाव में भारत एक पक्ष न बने। चीन भारत और आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग से भी नाराज है।  

चीन को लेकर कुछ बातें अब स्पष्ट है। चीन अब कम्युनिस्ट देश नहीं है। चीन अब कारपोरेट कम्युनिस्ट मुल्क है। चीन की अर्थव्यवस्था में प्राइवेट कारपोरेट और पब्लिक सेक्टर का महत्वपूर्ण योगदान है। चीन की आर्थिक नीति विस्तारवादी है। यह अमेरिका की वैश्विक आर्थिक नीति से मेल खाती है। अमेरिका के तर्ज पर चीन की कंपनियां अफ्रीका से लेकर लैटिन अमेरिका तक पूंजी निवेश कर रही है। अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के संसाधनों को जमकर लूट रही है। चीनी विस्तारवाद सिर्फ आर्थिक नहीं सैन्य भी है। चीन इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके विस्तारवाद का शिकार कौन हो रहा है। 

चीनी सैन्य विस्तारवाद का शिकार पूंजीवादी ताइवान है तो कम्युनिस्ट वियतनाम भी है। चीन उस इलाके में भी घुसपैठ कर रहा है, जहां उसकी कोई दावेदारी नहीं है। जैसे साउथ चाइना सी में चीन इंडोनेशिया के नाटूना द्वीप पर अपना दावा जता रहा है। नाटूना द्वीप चीन से 1500 किलोमीटर दूर है। यह साउथ चाइना सी के 9 डैश लाइन से भी बाहर है, जिसे चीन अपना मानता है। चीन साउथ चाइना सी में कम्युनिस्ट देश वियतनाम के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन पर भी अपनी दावेदारी कर रहा है। इंडोनेशिया और वियतनाम के इलाके में चीनी नौ सेना लगातार घुसपैठ कर रही है।

भारत को चीन से मुकाबले के लिए मजबूत आर्थिक ताकत बनना होगा। लेकिन चीन की तरह आर्थिक ताकत बनने में काफी लंबा समय लगेगा। चीन की आर्थिक ताकत चीन का प्राइवेट सेक्टर अकेला नहीं है। चीन की आर्थिक ताकत चीन का पब्लिक सेक्टर है। चीन के पब्लिक सेक्टर की पेट्रोलियम औऱ रेल कंपनियों का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। भारत में रेल और पेट्रोल से संबंधित सरकारी क्षेत्र की कंपनियां अब बेची जा रही है। चीन बेल्ट एंड रोड पहल के तहत पूरे एशिया में अरबों डालर निवेश कर चुका है। वहीं भारत अपने ही विकास के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए मुंह ताक रहा है। 

 



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