जस्टिस बीआर गवई ने ली देश के चीफ जस्टिस पद की शपथ

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई भारत के मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद की शपथ दिलवाई। गवई देश के पहले बौद्ध चीफ जस्टिस हैं। साथ ही, पूर्व चीफ जस्टिस के जी बालाकृष्णन के बाद वह अनुसूचित जाति वर्ग के दूसरे चीफ जस्टिस हैं। शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के जजों के अलावा जस्टिस गवई की माँ और परिवार के लोग भी शामिल हुए।

देश के 52वें चीफ जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। वह एक राजनीतिक परिवार से हैं। उनके पिता रामकृष्ण गवई एमएलसी, लोकसभा सांसद और 3 राज्यों के राज्यपाल रहे। बी आर गवई 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज बने थे। 24 मई 2019 को वह सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए। बतौर चीफ जस्टिस गवई का कार्यकाल लगभग 6 महीने का रहेगा। वह इस साल 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।

सुप्रीम कोर्ट में अपने पिछले 6 साल के कार्यकाल में जस्टिस बी गवई ने कई बड़े फैसले दिए हैं। पिछले साल जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुलडोजर कार्रवाई पर देशव्यापी दिशानिर्देश तय किए थे। उस फैसले में कहा गया था कि किसी संपत्ति पर कार्रवाई से पहले उसमें रह रहे व्यक्ति को नोटिस दिया जाना चाहिए। नोटिस देने और कार्रवाई के बीच कम से कम 15 दिन का अंतर होना चाहिए।

हैदराबाद के कंचा गचीबाउली में 100 एकड़ क्षेत्र में फैले जंगल को नष्ट करने के मामले में जस्टिस गवई ने बेहद सख्त रवैया अपनाया है। उन्होंने राज्य सरकार से कहा है कि वह उस जगह को पुरानी स्थिति में लाने का एक्शन प्लान बताए। जस्टिस गवई ने यह भी कहा कि अगर राज्य के अधिकारी जंगल को वापस पुरानी स्थिति में लाने में अड़चन डालेंगे, तो उन्हें उसी जगह पर अस्थाई जेल बनाकर बंद कर दिया जाएगा।

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति के आरक्षण में उप-वर्गीकरण की अनुमति देने वाला ऐतिहासिक फैसला दिया था। जस्टिस गवई 7 जजों की इस बेंच का हिस्सा थे। उन्होंने अलग से लिखे अपने फैसले में यह भी कहा था कि अनुसूचित जाति वर्ग के जो लोग संपन्न और सक्षम हो चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ छोड़ना चाहिए।

अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने को सही ठहराने वाली बेंच का जस्टिस गवई हिस्सा थे। 2016 में हुई नोटबंदी को संवैधानिक और कानूनी दृष्टि से सही घोषित करने वाली बेंच के भी वह सदस्य रहे। चुनावी चंदे की इलेक्टोरल बांड योजना को रद्द करने का फैसला देने वाली बेंच में जस्टिस गवई भी शामिल थे।

First Published on: May 14, 2025 11:43 AM
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