
नई दिल्ली। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने एक बार फिर भारत का मान बढ़ाया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने उन्हें अपना सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) एडवोकेट बनाया है।
‘एसडीजी एडवोकेट’ के रूप में सत्यार्थी संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को सन 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। सत्यार्थी की बाल दासता को समाप्त करने और बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलन के निर्माण में अग्रणी भूमिका रही है।
सत्यार्थी के इन प्रयासों से ही बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानून यानी आईएलओ कन्वेंशन-182 पारित हुआ। उनके इन योगदानों को देखते हुए उन्हें एसडीजी एडवोकेट बनाया गया है। कैलाश सत्यार्थी की ‘एसडीजी एडवोकेट’ के रूप में नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब एक तरफ बाल श्रम उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय वर्ष चल रहा है, वहीं दूसरी तरफ पूरी दुनिया को दो दशकों में पहली बार बाल श्रम में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है।
बाल श्रमिकों की संख्या अब बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। पहले यह संख्या तकरीबन 15.2 करोड़ थी। वहीं कोविड-19 के दुष्परिणामों ने लाखों बच्चों को खतरे में डाल दिया है। जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने सतत विकास लक्ष्य के एजेंडे में सन 2025 तक समूचे विश्वभर से बाल श्रम उन्मूलन का लक्ष्य रखा है।
एक तरफ दुनियाभर में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना महामारी के दुष्परिणामों ने लाखों बच्चों को और अधिक असुरक्षित बना दिया है। ऐसे में 2025 तक दुनिया से बाल श्रम को खत्म करने के संकल्प पर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा होता है और संयुक्त राष्ट्र ने 2030 ने सतत विकास लक्ष्य हासिल करने की जो प्रतिबद्धता जताई है, वह भी चुनौतीपूर्ण लग रही है।
वहीं वर्तमान संकट के मद्देनजर यह नियुक्ति की गई है, जिसका हम सामना कर रहे हैं। सतत विकास लक्ष्यों पर भी इस संकट का दूरगामी असर पड़ रहा है, जिसे 2030 तक हासिल किया जाना है। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक खांटी भारतीय को दुनिया के बच्चों को शोषण से बचाने के लिए चुना है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव श्री एंटोनियो गुटेरेस ने नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी को एसडीजी एडवोकेट नियुक्त करते हुए कहा, “मैं दुनियाभर के बच्चों को आवाज देने के लिए श्री सत्यार्थी की अटूट प्रतिबद्धता की सराहना करता हूं। यह समय की जरूरत है कि हम एक साथ आएं, सहयोग करें, साझेदारी बनाएं और एसडीजी की दिशा में वैश्विक कार्रवाई को तेज करने में एक दूसरे का समर्थन करें।”
इस अवसर पर सत्यार्थी ने कहा, “दुनिया के बच्चों की ओर से मैं इस नियुक्ति को स्वीकार करते हुए सम्मानित महसूस कर रहा हूं। महामारी से पहले के चार वर्षों में 5 से 11 साल की उम्र के 10,000 अतिरिक्त बच्चे हर दिन बाल मजदूर बन गए। यह वृद्धि भी संयुक्त राष्ट्र एसडीजी के पहले चार वर्षों के दौरान हुई।”
उन्होंने आगे कहा कि ‘‘हमारे पास ज्ञान है। हमारे पास संसाधन हैं। लेकिन, हमें उस राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जो बच्चों के शोषण को समाप्त करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन, नीतियां और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। वैश्विक विकास तभी समावेशी और टिकाऊ हो सकता है जब वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की पीढ़ियां भी स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित हों।’’
कैलाश सत्यार्थी देश में जन्में ऐसे पहले खांटी भारतीय हैं जिन्हें दुनिया के सर्वोच्च नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। वे चार दशकों से वैश्विक स्तर पर बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अपने संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के माध्यम से उन्होंने एक लाख से अधिक बच्चों को बाल श्रम, दासता, ट्रैफिकिंग और अन्य प्रकार के शोषण से मुक्त कराया है।
कैलाश सत्यार्थी दुनियाभर में शिक्षा का अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संगठन ग्लोबल कैंपेन फॉर एजूकेशन के संस्थापक और अध्यक्ष रहे हैं। वे यूनेस्को के शिक्षा पर बनी हाईलेबल कमेटी के सदस्य भी रहे हैं।
इसी के साथ ही सत्यार्थी कोरोना संकट में दिए गए आर्थिक अनुदानों में बच्चों को उचित हिस्सा मिले इसके लिए नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर “फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन” नामक अभियान चला रहे हैं। वे दुनियाभर में ‘हंड्रेड मिलियन फॉर हंड्रेड मिलियन’ कैंपेन भी चला रहे हैं। जिसके तहत दुनिया के हंड्रेड मिलियन यानी 10 करोड़ वंचित और गरीब बच्चों की मदद के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जा रहा है।