वेलेंटाइन डे का मोहताज नहीं है प्रेम, प्रदर्शन नहीं सिर्फ एहसास ही काफी है


प्रेम एक एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है और इस एहसास में सिर्फ दिल काम करता है यहाँ दिमाग की कोई आवयश्कता नहीं होती। प्यार अनेक भावनाओं और विचारों का समावेश होता है। प्रेम एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है।


प्रदीप सिंह प्रदीप सिंह
देश Updated On :

आदिम काल से ही प्रेम को अभिव्यक्त करने के नए-नए तरीके ईजाद होते रहे हैं। आज दुनिया भर में वेलेंटाइन वीक में प्रेम को प्रदर्शित किया जा रहा है। 7 फरवरी को शुरू हुए ‘वेलेंटाइन वीक’ आज 14 फरवरी को ‘वेलेंटाइन डे’ के रूप में पूरे उरूज पर है।

वेलेंटाइन वीक की शुरुआत रोज डे से होती है जिसमें गुलाब को प्यार की निशानी के रूप में पेश किया जाता है। गुलाब की खूबसूरती किसी से छिपी नहीं है। लेकिन गुलाब जितना सुंदर है, उसके कांटे उतने ही नुकीले। गुलाब की कल्पना बिना कांटे की नहीं की जा सकती और प्रेम में बहुदा देखा गया है कि सबकुछ प्रेममय नहीं होता। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रेम और इसकी मंजिल क्या है?

दुनिया भर में प्रेम जीवन का केंद्रीय तत्व है। विश्व साहित्य प्रेम कथाओं और कविताओं से भरे पड़े हैं। भारतीय साहित्य में भी प्रेम और सौंदर्य की बहुलता रही है। हिंदी साहित्य के रीतिकालीन कवियों ने प्रेम और सौंदर्य का बहुत मांसल वर्णन किया है। उस दौर में भी प्रेम प्रदर्शन को अच्छा नहीं माना गया। रीतिकालीन कवि बिहारी का एक दोहा प्रेमी-प्रेमिकाओं के आपसी समझ का चित्रण करता है-

“कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु हीं सब बात॥”

इस दोहे में कवि ने दो प्रेमी युगल को दिखाया है की किस तरह वह दोनों ही सभी के बीच होते हुए भी आपस में आँखों के माध्यम से अपनी -अपनी बात एक दूसरे तक पंहुचा रहे हैं। नायक -नायिका दोनों ही सामाजिक भीड़ में रति भाव को बढ़ाते हैं और इस कदर बढ़ाते हैं की किसी को पता न चले। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं।

प्रेम और मनोविज्ञान :

मनोविज्ञानी रोबेर्ट स्टर्न्बर्ग के अनुसार प्यार के तीन भिन्न प्रकार के घटक हैं : “आत्मीयता, प्रतिबद्धता और जोश। आत्मीयता वो तत्व है जिसमें दो मनुष्य अपने आत्मविश्वास और अपने ज़िन्दगी के निजी सुख-दुख को साझा करते हैं।ये ज़्यादातर दोस्ती और रोमानी कार्य में देखने को मिलता है।”

प्रतिबद्धता एक उम्मीद है कि ये रिश्ता हमेशा के लिये कायम रहेगा। आखिर में यौन आकर्षण और जोश है। आवेशपूर्ण प्यार, रोमानी प्यार और आसक्ति में दिखाया गया है। प्यार के सारे प्रपत्र इन घटकों का संयोजन होता हैं। पसन्द करने में आत्मीयता शामिल होती हैं। मुग्ध प्यार में सिर्फ जोश शामिल होता हैं। रोमानी प्यार में दोनो आत्मीयता और जोश शामिल होता हैं। बुद्धिहीन प्यार में प्रतिबद्धता और जोश शामिल होता है।

प्राचीन ग्रीकों ने प्यार को चार तरह का माना है : रिश्तेदारी, दोस्ती, रोमानी इच्छा और दिव्य प्रेम। प्यार को अक्सर वासना के साथ तुलना की जाती है और पारस्परिक संबध के तौर पर रोमानी अधिस्वर के साथ तोला जाता है, प्यार दोस्ती यानी पक्की दोस्ती से भी तोला जाता हैं। आम तौर पर प्यार एक एहसास है जो एक इन्सान दूसरे इन्सान के प्रति महसूस करता है।

प्रेम एक एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है और इस एहसास में सिर्फ दिल काम करता है यहाँ दिमाग की कोई आवयश्कता नहीं होती। प्यार अनेक भावनाओं और विचारों का समावेश होता है। प्रेम एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना है जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है।

फिलहाल “प्रेम अपने आप में संपूर्ण चीज है। आपको अपनी इच्छित वस्तु मिले या ना मिले, इससे फर्क नहीं पड़ता है। प्रेम मंजिल का भी विषय नहीं है,प्रेम का अहसास ही अपने आप में प्रर्याप्त है। यह नितांत निजी, भावनात्मक और आत्मीय रिश्ता होता है।”

क्या प्रेम प्रदर्शन की चीज है :

भारत में प्यार और धन कभी प्रदर्शन की चीज नहीं रही है। लेकिन आज का दौर बाजार और विज्ञापन का है। बाजार हर एक चीज को खरीद और बेच रहा है तो विज्ञापन में हर चीज का प्रदर्शन किया जा रहा है। जो चीज जितनी निजी और आत्मीय थी बाजार उसके पीछे उतना ही ज्यादा पड़ा है। सेक्स और सौन्दर्य की आज मांग बढ़ गयी है बाजार ने उसे प्रेम का नाम देकर वैलेंटाइन डे मनवा रहा है। भावनाओं और संवंदनाओं को बाजारू बस्तु बना दिया गया है।

पूरी दुनिया में वेलेंटाइन्स डे मनाया जाता है। दुकानें सुन्दर उपहारों से सजी रहती हैं। प्रेमी युगल उपहारों का आदान प्रदान करके अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। लेकिन जीवन रुपी अथाह सागर को पार करने के लिए मांसल प्रेम नहीं वास्तविक प्रेम की जरूरत होती है।

प्रेम ने कांट्रैक्ट का रूप ले लिया है:

विडंबना है कि प्रेम का आदर्श रूप सामंतवादी युग में पाया गया। सोनी-मेहवाल, हीर-रांझा, सीरी-फरहाद, रोमियो जूलियट और लैला-मजनूं सब उसी काल में था। उसका कारण है कि उस काल में समाज की मुख्य संपत्ति भूमि थी। भूमि अचल और स्थायी संपत्ति होती है। इसलिए तब संबंध अटल और स्थायी होते थे। औद्धोगीकरण के बाद लगभग सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी से नकद के वर्चस्व के बाद से मामला पलट गया। दूसरे शब्दों में कहें तो बाजार के प्रसार के साथ ही जो चंचलता पूंजी में थी वही चंचलता अब प्रेम संबंधों में दिखाई देने लगी। यहीं से परिवार और प्रेम संबंधों का टूटना शुरू हो गया।

आज तो मुक्त और आवारा पूंजी का जमाना है। देश में जब 80 प्रतिशत से ज्यादा पूंजी बिना आधार के भटक रही है, तो संबंध कैसे स्थायी और आधारवान हो सकते हैं? पिछले तीन दशकों में श्रम के क्षेत्र से जो चीज समाप्त हुई है वह स्थायी नौकरी है। यह कांट्रैक्ट सर्विस का समय है। ठेकेदारी और अनुबंध पर श्रम को खरीदा जा रहा है। इसका सीधा असर प्रेम संबंधों पर पड़ा है। प्रेम ने आज कांट्रैक्ट का रूप ले लिया है।

दूसरे शब्दों में कहें तो मार्खेज ने “लव इन दि टाइम ऑफ कालरा” नामक प्रसिद्ध उपन्यास लिखा था उसको बदलकर यदि “लव इन दि टाइम ऑफ ब्रोकर एंड फिक्शर” का समय कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

प्रेम आहत अहम पर बहुत बड़ा मरहम है:

प्रेम हमेशा से मानवीय भावनाओं के केंद्र में रहा है। बाजार की मार ने आज उसे पिछवाड़े खड़ा कर दिया है। हर आदमी के वजूद के लिए प्रेम भावना और संवेदना आवश्यक अंग है। प्रेम आहत अहम पर बहुत बड़ा मरहम है।

कुछ चीजें समय के साथ न ही बदले तो ही उसकी ख़ूबसूरती और मायने बरकरार रहती है और उनमें से है भक्ति और प्रेम दोनों ही नितांत निजी अभिव्यक्ति है इसका सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं होना चाहिए, बल्कि महीन अभिव्यक्ति होनी चाहिए। प्रकृति में व्यक्ति और अभिव्यक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। प्रेम ऐसा तत्व है, जिसमें एक से प्रेम करने पर पूरी दुनिया हसीन लगने लगती है। एक के बहाने पूरी दुनिया हसीन दिखे तो यही प्रेम की आखिरी मंजिल है। और कहा भी गया है इस दुनियां में आकर आपने प्रेम नहीं किया या आपको प्रेम नहीं हुआ तो कहीं न कहीं हम सब अधूरे हैं।  कबीर के शब्दों में कहें तो- ‘पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए। ढाई आखर प्रेम का, पढ़ा सो पंडित होए।।’

प्रेम से बड़ा कोई ज्ञान नहीं बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है।



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