नई दिल्ली। वर्ष 2020 में, 90 प्रतिशत से ज्यादा सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा परियोजनाओं को विभिन्न क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (निवेश से जुड़े जोखिम का आकलन करने वाली एजेंसियां) के आकलन में ‘बीबीबी’ और इससे ऊपर की इंवेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग मिली। यह जानकारी आज जारी की गई सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के एक स्वतंत्र अध्ययन ‘हाउ हैव इंडियाज आरई पॉलिसीज इंपेक्टेड इट्स विंड एंड सोलर प्रोजेक्ट?’ से सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस अच्छी रेटिंग्स के पीछे सरकार से मिलने वाली अनुकूल नीतिगत सहायता के कारण बीते एक दशक में भारत की अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की वित्तीय व्यावहार्यता (financial viability) में आई मजबूती है। हाल के वर्षों में 2015 तक, अक्षय ऊर्जा की 50 प्रतिशत से भी कम परियोजनाओं को ऐसी अनुकूल रेटिंग्स मिलती थीं।
शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन समर्थित सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के अध्ययन ने यह भी रेखांकित किया कि 2020 में तीन क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने जिन 90 अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का मूल्यांकन किया था और जिन्हें इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है, उनमें से सिर्फ छह पवन ऊर्जा परियोजनाओं को निवेश-ग्रेड से नीचे की रेटिंग (below-investment-grade ratings) मिली थी।
वहीं, क्रेडिट रेटिंग्स मूल्यांकन में शामिल 44 सौर ऊर्जा परियोजनाओं में से 26 परियोजनाओं को ‘ए’ रेटिंग, जबकि उनमें से नौ परियोजनाओं को ‘ए ए’ रेटिंग मिली, जो डिफॉल्ट (कर्ज या निवेश फंसने) की बेहद कम आशंका को दर्शाता है। इसके अलावा, पांच सौर परियोजनाओं को ‘बीबीबी’ रेटिंग मिली। इसी तरह, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के मूल्यांकन में शामिल रही 46 पवन ऊर्जा परियोजनाओं में से 30 परियोजनाओं को ‘ए’ रेटिंग, जबकि अन्य 10 परियोजनाओं को ‘बीबीबी’ रेटिंग मिली।
इस अध्ययन में पाया गया है कि 2017 में सौर बिजली परियोजनाओं से बिजली की खरीद करने के लिए एक मध्यस्थ संस्था के रूप में सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) गठित करने के सरकार के फैसले ने बहुत सकारात्मक असर डाला है। केवल इसी नीतिगत निर्णय के कारण अगले 18 महीनों में टैरिफ (सौर ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पादित बिजली की प्रति यूनिट कीमत) में 24 प्रतिशत तक कमी आई। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह रहा कि इस दौरान कर्ज पर ब्याज दरों में मामूली बढ़ोतरी के बावजूद टैरिफ में यह कमी देखी गई। एसईसीआई की शुरूआत ने बैंकों को अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के अनुकूल मूल्यांकन करने के लिए, और निवेशकों को अपने निवेश पर कम रिटर्न को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया।
सीईईडब्ल्यू-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (सीईईडब्ल्यू-सीईएफ) के निदेशक गगन सिद्धू ने कहा, “लगातार मिलने वाले नीतिगत समर्थन ने 100 गीगावॉट से ज्यादा की स्थापित क्षमता के साथ चौथे सबसे बड़े अक्षय ऊर्जा बाजार के रूप में भारत को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोलर पीवी मॉड्यूल के स्थानीय स्तर पर विनिर्माण (manufacturing) को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसे नीतिगत उपाय आने वाले दशकों में सौर परियोजनाओं की लागत को और ज्यादा घटा सकते हैं। ऐसे दीर्घकालिक नीतिगत प्रभाव 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता के लक्ष्य को पाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होंगे।
भारत को 2030 के अपने लक्ष्यों को पाने के लिए सिर्फ उत्पादन के लिए सालाना 20 बिलियन अमरीकी डॉलर से ज्यादा के निवेश की जरूरत होगी। हमारे इन दीर्घकालिक और अल्पकालिक लक्ष्यों के लिए विदेशी पूंजी का उपलब्ध होना बहुत महत्वपूर्ण है।”
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के अध्ययन ‘हाउ हैव इंडियाज आरई पॉलिसीज इंपेक्टेड इट्स विंड एंड सोलर प्रोजेक्ट?’ में वर्ष 2010 से 2020 के बीच 143 सौर ऊर्जा और 101 पवन ऊर्जा परियोजनाओं का आकलन किया गया है। इनमें सौर ऊर्जा परियोजनाओं का कुल कर्ज 38,000 और पवन ऊर्जा परियोजनाओं का कुल कर्ज 43,000 करोड़ रुपये था।
सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के प्रोग्राम लीड वैभव प्रताप सिंह ने कहा, “बैटरी स्टोरेज तकनीक के साथ सौर और पवन ऊर्जा, देश में बिजली उत्पादन से कार्बन उत्सर्जन घटाने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे, जो 40 प्रतिशत से ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
हाल के दिनों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की ओर से किए गए रिकॉर्ड निवेश के साथ, भारत के मजबूत नीतिगत नेतृत्व ने सौर ऊर्जा को निवेशकों के लिए एक आकर्षक क्षेत्र बनाने में मदद की है। हालांकि, 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा क्षमता और बाद में 2070 तक नेट-जीरो जैसे आगामी लक्ष्यों को पाने की दिशा में निरंतर बढ़ोतरी के लिए, डिस्कॉम (विद्युत वितरण कंपनियों) जैसे आर्थिक नुकसान वाले क्षेत्रों को सुधारने और एसईसीआई जैसी व्यवस्थाओं से आगे जाने के लिए नीतियों की जरूरत होगी।
विशेष रूप से बिजली वितरण के क्षेत्र में लगातार नीतिगत सहायता मिलना बहुत महत्वपूर्ण होगा।” सीईईडब्ल्यू-सीईएफ के अध्ययन ने यह भी बताया कि अल्पकालिक आरई क्षमता को बढ़ाने के लिए 2015 में घोषित लक्ष्यों के साथ-साथ अन्य नीतिगत उपायों जैसे सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसईसीआई) के माध्यम से डिस्कॉम्स के जोखिम को दरकिनार करने से निवेशकों के बीच इन परियोजनाओं के बारे में जोखिम की धारणा को घटाने में मदद मिली है। बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड्स पर ब्याज दरों में कमी और प्रौद्योगिकी में सुधारों ने इन अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण की लागत घटाने में मदद की।