बृहस्पति के चंद्रमाओं की उत्पत्ति का नया खुलासा


एक कंप्यूटर सिमुलेशन के आधार पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि परिग्रहीय तश्तरी (CPD यानी किसी ग्रह के आसपास पदार्थों की तश्तरी) के भीतरी भाग की छायाओं ने बाहरी हिस्से में ठंडी जगहें निर्मित की होंगी, जिससे चंद्रमाओं के निर्माण के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनीं।


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16वीं सदी के पहले दशक की शुरुआत में, गैलीलियो गैलीली ने पहली बार बृहस्पति के चार सबसे बड़े चंद्रमाओं – आयो, युरोपा, गैनीमीड और कैलिस्टो – को देखा था। सदियों बाद भी वैज्ञानिक यह समझने में जुटे हैं कि अरबों साल पहले गैस, धूल और बर्फ की घूमती हुई तश्तरी से इनका निर्माण कैसे हुआ होगा।

हाल ही में एक कंप्यूटर सिमुलेशन के आधार पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि परिग्रहीय तश्तरी (CPD यानी किसी ग्रह के आसपास पदार्थों की तश्तरी) के भीतरी भाग की छायाओं ने बाहरी हिस्से में ठंडी जगहें निर्मित की होंगी, जिससे चंद्रमाओं के निर्माण के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनीं।

दी प्लैनेटरी साइंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन से यह समझने में मदद मिलती है कि तश्तरी के तापमान में बदलाव ने बृहस्पति के चंद्रमाओं के निर्माण को कैसे प्रभावित किया। वैज्ञानिकों ने बृहस्पति की इस प्राचीन तश्तरी का एक 2डी मॉडल तैयार कर उसकी संरचना, घनत्व, तापमान और छायाओं के प्रभावों का विश्लेषण किया है।

सिमुलेशन से पता चला कि डिस्क का भीतरी हिस्सा घना और अपारदर्शी था, जिससे गर्मी अंदर कैद रहती थी और रोशनी बाहर नहीं जा पाती थी। वहीं, बाहरी हिस्सा झीना और पारदर्शी था। जब 2000 केल्विन तापमान पर तपता हुआ नवजात बृहस्पति विकसित हो रहा था तब इस डिस्क का भीतरी भाग फैलने लगा और बाहरी हिस्सों पर लंबी छायाएं पड़ने लगीं। इन छायाओं ने कुछ क्षेत्रों को बेहद ठंडा बना दिया, और ये ठंडे क्षेत्र लगभग 80,000 साल तक बने रहे।

इन ठंडी जगहों ने चंद्रमाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन क्षेत्रों में अमोनिया, हाइड्रोजन सल्फाइड और कार्बन डाईऑक्साइड जैसी गैसें संघनित होकर जम गईं, जिससे युरोपा वगैरह के ठोस हिस्से बने। सबसे ठंडा क्षेत्र बृहस्पति से लगभग 6,29,000 कि.मी. दूर था, जो युरोपा की कक्षा से मेल खाता है।

अगर यह सिद्धांत सही है तो बाहरी चंद्रमाओं – गैनीमीड और कैलिस्टो – की तुलना में भीतरी चंद्रमाओं – आयो और युरोपा – में अधिक मात्रा में वाष्पशील गैसें होनी चाहिए। भावी अंतरिक्ष मिशन, जैसे युरोपियन स्पेस एजेंसी का JUICE और नासा का युरोपा क्लिपर, इन चंद्रमाओं की संरचना का गहराई से अध्ययन कर इस सिद्धांत की जांच करेंगे।

हालांकि, यह अध्ययन बृहस्पति के चंद्रमाओं के निर्माण को समझने के लिए एक मज़बूत मॉडल प्रस्तुत करता है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएं भी हैं। यदि चंद्रमाओं का निर्माण अपेक्षा से अधिक समय तक चला था तो छायाओं से हुआ ठंडा प्रभाव उनके रासायनिक तत्वों को प्रभावित नहीं कर पाया होगा। इसके अलावा, युवा सूर्य की गतिविधियों में हुए बदलावों ने भी बृहस्पति की तश्तरी को प्रभावित किया होगा, जिसे यह मॉडल पूरी तरह नहीं दर्शा सकता।

बहरहाल, बृहस्पति के चंद्रमाओं के निर्माण की प्रक्रिया को जानने से पूरे ब्रह्मांड में ग्रहों के निर्माण से जुड़े रहस्यों को सुलझाने में मदद मिल सकती है।



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