नई दिल्ली। 8 साल पहले 16 दिसम्बर की उस भयावह रात को भला कौन भूल सकता है जब राजधानी दिल्ली के सनसनाती ठंड रात में चलती बस में दरिंदों ने हैवानियत की सारी हदें लांघ दी थी। एक फिजियोथेरेपी इंटर्न और उसके दोस्त को बस में लिफ्ट देने के बहाने हैवानों ने उस निर्भया के साथ न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म किया बल्कि ऐसी शारीरिक यातनाएं दी कि लड़की का इलाज करने वाले डॉक्टर भी हैरान रह गए।
हालांकि निर्भया के दोषियों को इसी साल 20 मार्च को फांसी दे दी गई थी। घटना के बाद पूरा देश उद्वेलित हो गया था और बेटियों की सुरक्षा को लेकर देशभर में कड़े कानून बनाए जाने पर चर्चा शुरू हो गई थी। आज भी सवाल यही है कि इतने सालों के बाद हालात क्यों नहीं सुधर पाए। बेटियों की सुरक्षा को लेकर स्थिति बिल्कुल नहीं बदली है। 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में निर्भया की मौत हो गई।
निर्भया के पिता ने कहा है कि उनकी बेटी से दुष्कर्म और हत्या मामले में दोषियों का अंजाम भले ही सब देख चुके हों, लेकिन देश की सड़कों पर महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखकर लगता है कि कुछ नहीं बदला है। इस मामले में इसी साल छह में से चार दोषियों को मौत की सजा दे दी गई।
निर्भया के पिता ने जघन्य बलात्कार मामले की आठवीं बरसी के मौके पर ‘सेव द चिल्ड्रन एंड युवा’ नामक एनजीओ द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन याचिका में हिस्सा लिया है। उन्होंने कहा कि ‘लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई।’
उन्होंने एक बयान में कहा, आपने मेरे बारे में संभवत: कभी नहीं सुना होगा। मुझे लगता है कि आज आपको मेरी आवाज सुननी चाहिये। मेरा नाम बद्रीनाथ सिंह है, लेकिन 16 दिसंबर 2012 की रात के बाद से मुझे निर्भया के पिता के रूप में जाना गया। अब मुझे मेरे बाकी जीवन में इसी रूप में जाना जाएगा।
निर्भया के पिता ने कहा, ‘मुझे लगा था कि इस मामले के बाद हमारे देश में बदलाव आएगा, लेकिन जब मैं खबरें देखता हूं तो हर रोज एक बेटी पर बर्बरतापूर्ण हमले का नया मामला सामने आता है। कुछ नहीं बदला है।
आपको बता दें कि दोषियों में से एक राम सिंह ने मामले की सुनवाई शुरू होने के कुछ ही दिन बाद तिहाड़ जेल में कथित रूप से आत्महत्या कर ली थी जबकि एक किशोर को तीन साल सुधार गृह में गुजारने के बाद 2015 में रिहा कर दिया गया था।