नीतीश का कुर्सी से चिपके रहने का सातवां दाव भी सफल

राजग और महागठबंधन को मिली सीटों में बहुत कम अन्तर होने की वजह से नीतीश को मुख्यमंत्री न बनाने पर पासा पलट भी सकता था और राजग की जगह महागठबंधन की सरकार भी बन सकती थी।

नई दिल्ली। हाल ही में संपन्न बिहार विधान सभा चुनाव के नतीजे आने के पांच दिन बाद अब यह भी तय हो गया है कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? जदयू-भाजपा और कुछ अन्य दलों के मेल से बने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) यानी एनडीए के नव निर्वाचित बिहार विधान सभा के सदस्यों की बैठक में विधायक दल के नेता का चयन कर लिया गया है।

दीपावली पर्व के एक दिन बाद रविवार 15 नवम्बर 2020 को राज्य के मुख्यमंत्री निवास में संपन्न बैठक में नए नेता का निर्विरोध चयन कर लिया गया। एनडीए विधायक दल की इस बैठक में केन्द्रीय रक्ष मंत्री राजनाथ सिंह पर्यवेक्षक के रूप में रूप थे। विधायक दल की बैठक में लिए गए फैसले के मुताबिक़ राज्य के मौजूदा मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के नाम से पहले अब पूर्व मुख्यमंत्री का टैग नहीं लगेगा क्योंकि नए एनडीए के सभी नए विधायकों से नीतीश कुमार को ही अपना नया नेता चुना है।

मतलब यह कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके रहने के अपने प्रयास में नीतीश कुमार सफल रहे हैं। इस तरह सोमवार 16 नवम्बर को संभावित तौर पर गठित होने वाली राज्य की नई सरकार के कार्यकारी मुखिया नीतीश कुमार ही होंगे। नीतीश सातवीं बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। चुनाव के बाद जिस तरह के परिणाम सामने आये हैं उसमें भाजपा को उन्हें इसलिए भी उनका नेतृत्व स्वीकार करना पड़ा क्योंकि ऐसा न करने पर राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल भी सकते थे।

राजग और महागठबंधन को मिली सीटों में बहुत कम अन्तर होने की वजह से नीतीश को मुख्यमंत्री न बनाने पर पासा पलट भी सकता था और राजग की जगह महागठबंधन की सरकार भी बन सकती थी। यह बात इसलिए भी प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि चुनाव से पहले भाजपा ने यह वादा कर दिया था कि चुनाव में राजग को बहुमत मिलने पर यदि भाजपा की सीटें नीतीश की पार्टी से ज्यादा भी हुई तब भी नीतीश ही एनडीए यानी राजग सरकार के मुख्यमंत्री होंगे।

कहते हैं कि भाजपा के प्रधानमंत्री समेत अनेक नेताओं ने यह वायदा इसलिए भी किया था क्योंकि नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं को यह अहसास करा दिया था कि यदि भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में किसी तरह की बाधा पहुंचाई तो वो महागठबंधन के पक्ष में पासा पलट भी सकते हैं। संभवतः नीतीश की इसी अघोषित धमकी के चलते ही इस बार चुनाव पूर्व ही एक आवाज यह भी सुनाई देने लगी थी कि जीते कोई भी मुख्यमंत्री नीतीश ही बनेंगे। यह एक तरह से सत्ता से चिपके रहने की उनकी वैसी ही इच्छाओं का नमूना है जैसा नमूना अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में बुरी तरह हारे रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने पेश किया है।

कहना गलत नहीं होगा कि दोनों में फर्क कुछ भी नहीं है। बात इतनी सी है कि सत्ता चाहे जैसी हो, जहां की भी हो, छोटी या बड़ी, देशी हो या विदेशी जो एक बार इसका स्वाद ले लेता है फिर हमेशा ही उससे चिपके रहना चाहता है। आमतौर पर सत्ता छोड़ने में इंसान को तकलीफ़ होती है और वह इसे किसी अन्य को सौंपना नहीं चाहता चाहे कुछ भी हो जाए। अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हारने के बाद डोनाल्ड ट्रम्प जिस तरह कुर्सी से चिपके रहने की जिद में अड़े हैं उससे तो ऐसे ही संकेत मिलते हैं। ट्रम्प ने न केवल कुर्सी छोड़ने से साफ़ इनकार कर दिया है बल्कि वो तो अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए रक्षा विभाग में अपने वफादार अधिकारियों की नियुक्ति भी कर रहे हैं।

अमेरिका में ट्रम्प के चुनाव हारने के बाद कुर्सी से चिपके रहने का यह सिलसिला यही तक सीमित नहीं रहता बल्कि उनके वफादार विदेश मंत्री पोम्पियो भी इस मुहीम में आगे बढ़ कर उनका समर्थन करते हुए सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करने से भी नहीं हिचकते कि डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति पद के दूसरे कार्यकाल का सञ्चालन भी करेंगे। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए ही नहीं बल्कि खुद डोनाल्ड ट्रम्प के लिए भी बहुत शर्मनाक है। यही हाल हमारे सुशासन बाबू का भी है वो भी येन-केन प्रकारेण कुर्सी से चिपके ही रहना चाहते है।

चुनाव में हार के बाद कुर्सी से चिपके रहने की भूख भारत के बिहार में हूँबहू अमेरिका जैसी तो नहीं है लेकिन जिस तरह जदयू नेता नीतीश कुमार इस बार भी मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं उसे डोनाल्ड ट्रम्प की भोग लिप्सा से कम नहीं माना जा सकता। बिहार के चुनाव में जनादेश उनके खिलाफ आया है उनकी पार्टी को इस चुनाव में पहले के मुकाबले बहुत कम सीटों पर जीत हासिल हुई है, इस लिहाज से उन्हें किसी भी हालत में मुख्यमंत्री का पद स्वीकार नहीं करना चाहिए। लेकिन वो ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि उन्हें गठबंधन के दूसरे बड़े घटक भाजपा के नेताओं से चुनाव पूर्व ही यह भरोसा मिल गया था कि चुनाव में अगर भाजपा की सीटें नीतीश कुमार के जनता दल से ज्यादा भी मिली तो भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे।

भाजपा अपने वायदे पर कायम है लेकिन नीतीश नैतिकता त्याग चुके हैं इसीलिए इस बार भी राज्य की सत्ता के शीर्ष पर बने रहना चाहते हैं। प्रसंगवश विचारणीय मुद्दा यह भी है कि भाजपा कम सीट जीतने वाले घटक दल के नेता नीतीश को ही फिर मुख्य मंत्री क्यों बनाना चाहती है। इसके दो कारण हैं-एक यह कि यह वायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे बड़े भाजपा नेता ने किया था और भाजपा अपने नेता की बात का सम्मान करना चाहती है।

दूसरी बात यह है कि भाजपा के पास फिलहाल बिहार में नीतीश के कद का कोई नेता नहीं है । नई सरकार के गठन के बाद जैसे – जैसे भाजपा के स्थानीय और राष्ट्रीय नेताओं को यह लगने लगेगा कि नीतीश का विकल्प मिल गया है, तब उनको पदच्युत करने से भी संकोच नहीं किया जाएगा ।

बहरहाल एक बात तो साफ़ है कि इस बार नीतीश मुख्यमंत्री के रूप में खुलकर और स्वतंत्र रूप से कोई फैसला नहीं कर पायेगे। अगर वो ऐसी कोशिश करते हैं तो स्वाभाविक रूप से गलतियां करेंगे और उनकी गलतियों को भाजपा नेता किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं करेंगे। उनको फिर से मुख्यमंत्री बनाने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि अगर ऐसा न किया जाता तो शायद वो राजग छोड़ कर राजद का दामन थाम लेते। क्योंकि भाजपा को सत्ता से दूर रखने के मकसद में राजद के तेजस्वी यादव जैसे नेत्त भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने पर सहमत हो सकते थे।

First Published on: November 15, 2020 5:44 PM
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