प्रशाांत भूषण को दोषी करार देने के न्यायालय के फैसले की आलोचना करने वाले निशाने पर


नागरिकों के समूह ने एक बयान में कहा, ‘‘हम कुछ लोगों के बयानों से बहुत चिंतित हैं जो खुद के सिविल सोसायटी का एकमात्र प्रतिनिधि होने का गलत दावा करते हैं और संसद, चुनाव आयोग तथा अब उच्चतम न्यायालय जैसे भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों पर हमला करने के हर अवसर का इस्तेमाल करते हैं।’’


मंज़ूर अहमद मंज़ूर अहमद
देश Updated On :

नई दिल्ली। सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और नौकरशाह समेत नागरिकों के एक समूह ने वकील प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना के एक मामले में दोषी करार देने के उच्चतम न्यायालय के आदेश की आलोचना करने वालों पर निशाना साधा है।

न्यायालय के फैसले की निंदा करने वालों को घेरते हुए इन नागरिकों ने आरोप लगाया है कि ये लोग संसद, चुनाव आयोग और शीर्ष अदालत जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ों पर आघात करने का हर अवसर भुनाते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो अपमानजनक ट्वीट के मामले में अवमानना का दोषी ठहराया था।

न्यायमूर्ति अरुणा मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस मामले में भूषण को सुनाई जाने वाली सजा पर दलीलें 20 अगस्त को सुनेगी।

नागरिकों के समूह ने एक बयान में कहा, ‘‘हम कुछ लोगों के बयानों से बहुत चिंतित हैं जो खुद के सिविल सोसायटी का एकमात्र प्रतिनिधि होने का गलत दावा करते हैं और संसद, चुनाव आयोग तथा अब उच्चतम न्यायालय जैसे भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों पर हमला करने के हर अवसर का इस्तेमाल करते हैं।’’

समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी 30 जुलाई को एक याचिका प्रेषित की थी जिसमें कहा गया कि छिपे हुए राजनीतिक एजेंडा वाले कुछ समूह जो संविधान और लोकतंत्र का एकमात्र संरक्षक होने का दावा करते हैं, को लोकतांत्रिक संस्थाओं, विशेष रूप से शीर्ष अदालत का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

पत्र पर 100 से अधिक लोगों ने दस्तखत किये हैं जिनमें मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के आर व्यास, सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रमोद कोहली, पूर्व पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्रा और पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पी सी डोगरा आदि शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि प्रशांत भूषण उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और ‘अदालत की अवमानना’ को कोई ‘दबाव समूह’ न्यायोचित नहीं ठहरा सकता।